कैमरा: त्रिदीप के मंडल
वीडियो एडिटर: कुणाल मेहरा
'आमार गांव'- ऐसी जगह जहां कोई खुद को छोटा महसूस नहीं करता. असम के उडालगुड़ी जिले के टांगला में बसा आमार गांव, 30 ऐसे लोगों का घर है जो लंबाई में भले ही छोटे हों लेकिन अदाकारी में इनका कद काफी ऊंचा है.
ये स्पेशल कलाकार हैं. अभिनय में किसी से कम नहीं.
2008 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पासआउट पबित्रा राभा ने डापोन की शुरुआत की. ये सभी इसी ग्रुप के सदस्य हैं. डापोन एक असमी शब्द है जिसका मतलब होता है दर्पण, यानी शीशा.
पबित्रा राभा का कहना है कि
डापोन के जरिए हम खुदको और दुनिया को दर्पण दिखा रहे हैं. हम कहना चाहते हैं कि इन लोगों का मजाक न बनाया जाए क्योंकि ये छोटे हैं. इनके भी वैसे ही सपने हैं जो आम लोगों के होते हैं. इन्हें सिर्फ सर्कस का जोकर न समझा जाए.
पबित्रा ने इनके साथ एक प्ले को डायरेक्ट किया है जिसका नाम 'की नोउ कोउ' है. ये प्ले काफी मशहूर हो चुका है और देश में 70 से ज्यादाबार इसे दिखाया जा चुका है. इस प्ले की लोकप्रियता के साथ इन बौने कलाकारों को वो सम्मान मिल रहा जिसके वो हकदार हैं.
इससे पहले, इनकी लंबाई की वजह से लोग इन्हें ताने मारते और मजाक उड़ाते थे.
डापोन के सदस्य रंजीत दास का कहना है,
लंबाई कम होने की वजह से लोग हमें ताने मारते थे. लेकिन अब कुछ बदलाव आया है. जब मैं घर जाता हूं तो मेरे परिवारवाले, दोस्त और पड़ोसी मुझसे मिलने आते हैं. मैं वहां काफी मशहूर हो गया हूं. उन्हें लगता है कि मैं काफी पैसा कमा रहा हूं. लेकिन एक बात जो सच है वो ये कि अब वो मेरा मजाक नहीं उड़ाते हैं.
आमार गांव को इन लोगों ने खुद अपने हाथों से बनाया है. ये पबित्रा के पुश्तैनी जमीन पर बना है जहां पहले जंगल हुआ करता था. पबित्रा और उसके साथियों को यहां अपना घर बनाने के लिए चार साल लग गए. आज वो आत्मनिर्भर हैं, खेती करते हैं और अपने अगले प्ले के लिए रिहर्सल कर रहे हैं.
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