पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बड़ा उलटफेर हुआ. 42% वोट पाकर बीजेपी ने राज्य की 80 में से 71 सीटें जीती. लेकिन 20% वोट पाने के बावजूद मायावती की बीएसपी को एक सीट भी नहीं मिली. लेकिन इस तरह के अजूबे चुनाव में कम ही होते हैं.
इस बार अगर वोट शेयर का सीट में बदलाव हुआ तो? एंटी इनकंबेसी ने अपना असर दिखाया तो? और अगर कांग्रेस के वोट शेयर बढ़े तो? ये सारे ऐसे फैक्टर हैं जिनका चुनाव के नतीजों पर असर होना तय है. इन्हीं तीन फैक्टर्स को जानने की कोशिश करते हैं.
वोट शेयर और सीटों का गणित
1989 के लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी लगातार एक बड़ी पार्टी रही है. तब से लेकर 2014 के बीच, बीजेपी का वोट शेयर टू सीट्स का कनवर्जन रेट 6 से लेकर 9 तक रहा है. इसका मतलब ये हुआ कि हर एक परसेंट वोट शेयर पर बीजेपी ने 6 से 9 लोकसभा सीटें जीती है. सबसे कम 6 सीट, 1991 में थी और सबसे ज्यादा 9 सीट, 2014 के लोकसभा चुनाव में थी. दूसरे शब्दों में कहें तो, 20% वोट्स के साथ बीजेपी ने 1991 में 120 सीटें जीती थीं. लेकिन 31% वोट शेयर के साथ बीजेपी को 2014 में 282 सीटें मिली.
कांग्रेस की तुलना में बीजेपी का कनवर्जन रेट अक्सर ज्यादा रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि बीजेपी का सपोर्ट बेस कुछ इलाकों में बहुत ही मजबूत रहा है. लेकिन 9 का कनवर्जन रेट अब तक का रिकॉर्ड है. 1984 में कांग्रेस की रिकॉर्ड जीत से भी काफी ज्यादा. ऐसे में इस रिकॉर्डतोड़ 9 कनवर्जन रेट में मामूली कमी होने से भी बीजेपी को सीटों का बड़ा नुकसान हो सकता है. इस बार कनवर्जन रेट में कमी की एक बड़ी वजह है. 2014 में बीजेपी को बड़ा फायदा बहुकोणीय मुकाबलों में हुआ. इस बार लगभग हर राज्य में बीजेपी और उसके सहयोगियों का सीधा मुकाबला एक बड़े गठबंधन से है. ऐसे में कनवर्जन रेट का गिरना लगभग तय है.
बीजेपी-कांग्रेस वोट शेयर में सांप-नेवले का खेल
1996 से लेकर अब तक हर लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का कम्बाइंड वोट शेयर 50% के आस-पास ही रहा है. इस दौरान बीजेपी का औसत वोट शेयर 23% और कांग्रेस का 25%. जब भी दो में से किसी पार्टी के वोट शेयर में औसत से बड़ा अंतर होता है तो अगले चुनाव में फिर से बड़ा बदलाव होता है. टेक्निकल टर्म में इसे मीन रिवर्सल कहा जाता है. इसके हिसाब से कांग्रेस और बीजेपी के वोट शेयर में इस चुनाव में भी बड़ा बदलाव हो सकता है. लेकिन चूंकि दोनों पार्टियां मिलकर 50% वोट ही पाती हैं, इसीलिए एक में बदलाव का असर दूसरे पर पड़ता है.
ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस के वोट शेयर में बढ़ोतरी होती है तो बीजेपी को नुकसान होगा? या फिर आगे बढ़ जाएगी.
एंटी इनकमबेंसी का खतरा
एक स्टडी को कोट करते हुए राजनीतिक विश्लेषक मिलान वैष्णव ने लिखा है कि सत्ताधाऱी के फिर से जीतने की संभावना दूसरे की तुलना में 9% प्वाइंट कम हो जाती है. कुल मिलाकर, सत्ताधारी पक्ष के जीतने की संभावना उतनी ही होती है जितना हारने की. यह बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं है.
पिछले चुनाव में 8 राज्यों- बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की 273 सीटों में बीजेपी को 216 सीटें मिली थी. इनमें से पांच राज्यों में बीजेपी की सरकार है.
एंटी इनकमबेंसी का असर उन राज्यों में ज्यादा होता है, जहां केंद्र और राज्य दोनों में एक ही पार्टी की सरकार होती है. क्या बीजेपी एंटी इनकमबेंसी के बीस्ट (जानवर) को मार पाएगी. पार्टी को उम्मीद है कि ब्रांड मोदी के सहारे वो हर बीस्ट के असर को खत्म कर सकती है. लेकिन पिछले चुनाव के आंकड़ों को देखकर ऐसा आसानी से होता नहीं दिखता है.
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