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एनकाउंटर ने छीन लिया कश्मीरी शायर का घर और उसकी नज्में

पुलिस और उग्रवादियों के बीच मुठभेड़ में जलकर खाक हो गया एक शायर का घर 

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कश्मीर में पिछले दिनों एक पुलिस एनकाउंटर हुआ, जिसमें 3 कश्मीरी उग्रवादी मारे गए, लेकिन इसका खामियाजा एक शायर को भुगतना पड़ा. गुलाम मोहम्मद भट उर्फ मदहोश बल्हमी ने अपने घर के साथ-साथ अपनी जिंदगी भर की रचनाएं खो दीं.

पुलिस एनकाउंटर श्रीनगर शहर के बाहरी इलाके बल्हमा गांव में हुआ. इसमें बल्हमी समेत और भी गई घर तबाह हो गए. अब यहां सिर्फ राख और मलबा बचा है.

एक शायर का दर्द

गुलाम ने 1985 में नज्मों की दो  किताबें प्रकाशित की थीं. एक 'खोने का दर्द' और दूसरी 'अबू जार की आवाज’. ये 'मदहोश बल्हमी' के नाम से लिखी गईं.

माली हालत खराब होने की वजह से गुलाम आगे कोई किताब नहीं छपवा पाए लेकिन वो लिखकर अपनी नज्में घर पर ही संभालते रहे. मुठभेड़ में गुलाम ने हजार पन्नों की बिना छपी रचनाएं खो दीं.

'मदहोश बल्हमी' का कहना है, ‘‘उग्रवादियों और सेना के बीच टकराव की कीमत कश्मीरियों को कई बार घर और चहेती चीजें खोकर चुकानी पड़ती है.’’

मुठभेड़ से पहले की घटना को याद करते हुए बल्हमी ने बताया, ‘‘मैं अपने घर पर बैठा था. कुछ लोग हाथों में हथियार लिए हुए आए और घर में घुस गए. उन्होंने बताया कि उनको आर्मी के लोग ढूंढ रहे हैं. इसलिए अच्छा है कि हम घर छोड़ कर चले जाएं. उनमें से एक ने कहा कि हम उन्हें माफ कर दें, वो हमारी कोई मदद नहीं कर सकते, क्योंकि वो जल्द ही शहीद हो जाएंगे. इसलिए वो उनको दो वक्त की नमाज अदा करने दें. मैंने अपने परिवार के साथ घर छोड़ दिया और 15 मिनट बाद वहां फायरिंग शुरू हो गई.’’

अपना दर्द बयां करते हुए मदहोशी कहते हैं:

किसने देखा अपना घर जलता हुआ, दुनिया वालों ने तो देखी रोशनी

बल्हमी को घर के जलने से ज्यादा दर्द है उनकी वो किताबें जल जाने का जो बहुत ही नायाब थीं और अब बाजार में नहीं मिलेंगी. 30 सालों से जो नज्में उन्होंने संजो कर रखी थीं, वो अब जलकर खाक हो चुकी हैं.

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