वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
क्या भारत में Facebook BJP का मुखपत्र है?
क्या फेसबुक देश में बीजेपी समर्थक प्रोपगैंडा चला रहा है?
क्या फेसबुक भारत में दक्षिणपंथी झुकाव रखता है?
The Wall Street Journal की एक रिपोर्ट के बाद इन सवालों ने भारत के सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तूफान खड़ा कर दिया है, जिसके अनुसार फेसबुक इंडिया ने जानबूझकर बीजेपी नेताओं के नफरत भरे भाषणों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की, ताकि सरकार को परेशानी न हो. लेकिन जो सवाल उठ रहे हैं वो ये कि क्या फेसबुक सही में बीजेपी नेताओं के लिए नियमों को ताक पर रख देता है?
अन्य घटनाओं में फेसबुक ने नफरत भरे भाषणों पर अलग तरह से कैसे काम किया? सबसे पहले, आइए देखते हैं ...
क्या कहती है रिपोर्ट?
रिपोर्ट में तीन विवादास्पद बीजेपी नेताओं - टी राजा सिंह, अनंत कुमार हेगड़े, और कपिल मिश्रा के उदाहरणों का हवाला दिया गया है - सभी नफरत भरे भाषण देने के लिए बदनाम हैं. फेसबुक के अपने कम्युनिटी गाइडलाइंस के अनुसार, इन नेताओं के पोस्ट तुरंत ही हटा दिए जाने चाहिए थे और उनके अकाउंट बंद कर दिए जाने चाहिए थे. लेकिन कथित तौर पर ऐसा नहीं हुआ. क्यों?
आइए देखते हैं कि नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ फेसबुक के दिशानिर्देश क्या कहते हैं:
फेसबुक “जाति सूचक बातों, राष्ट्रीय मूल पर टिप्पणी, धर्म, सेक्सुअल ओरिएंटेशन, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव, हिंसक या अमानवीय, अंधविश्वास, किसी को छोटा बताने, अलगाव वाले पोस्ट को hate speech मानता है
अब, अगर आप WSJ में लिखे गए तीन नेताओं के इतिहास को देखते हैं, तो टी राजा सिंह खुले तौर पर मुस्लिम विरोधी भाषण देने और समुदाय के खिलाफ नफरती बातें पोस्ट करने के लिए जाने जाते हैं. अनंत कुमार हेगड़े ने बार-बार मुसलमानों पर COVID -19 फैलाने का आरोप लगाया है. WSJ की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उनके भड़काऊ पोस्ट को पिछले हफ्ते हटाया गया.. जब WSJ ने इस मसले पर फेसबुक से जवाब मांगा. हालांकि टी राजा का कहना है कि उनका कोई ऑफिशियल फेसबुक पेज ही नहीं है और अगर कोई फैन क्लब कुछ आपत्तिजनक पोस्ट करता है तो इसके जिम्मेदार वो नहीं हैं.
फेसबुक ने दूसरे की हेट स्पीच या गलत सूचनाओं के खिलाफ कैसे कार्रवाई की?
अमेरिका को ही ले ...
2019 में, फेसबुक ने यहूदी विरोधी नेता पॉल नेहलेन और फ्रिंज दक्षिणपंथी मीडिया शख्सियत एलेक्स जोंस, लॉरा लूमर, मिलो यिआनपॉलस, और पॉल जोसेफ वॉटसन पर प्रतिबंध लगा दिया.
इस साल जून में, फेसबुक ने ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो के शेयर किए गए एक वीडियो को हटा दिया, जिसमें उन्होंने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर निराधार दावे किए थे. यहां तक कि फेसबुक ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के COVID-19 से बच्चों के 'लगभग सुरक्षित' होने के बारे में गलत जानकारी वाले एक पोस्ट भी हटा लिया था.
जब फेक न्यूज की बात आती है, तो फेसबुक सर्टिफाइड फैक्ट चेकर्स के साथ एक स्पेसिफिक ग्लोबल पार्टनरसिप चलाता है, जो ज्यादातर मामलों में स्थापित समाचार प्रकाशन होते हैं. इसमें नेताओं के पोस्ट की जांच भी शामिल है. और एक महत्वपूर्ण डिस्क्लेमर ये है कि: क्विंट की फैक्ट चेकिंग इनिसिएटिव वेबकूफ भी इसी का एक हिस्सा है.
इससे ये सोचना पड़ रहा है कि अगर राष्ट्रपति के कद के लोग हानिकारक या गलत पोस्ट के लिए फेसबुक की कार्रवाई का सामना कर सकते हैं, तो फेसबुक इंडिया को बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने से किस बात ने रोका?
ये निर्णय कौन करता है और कैसे?
इन मुद्दों को फेसबुक की पब्लिक पॉलिसी टीम निपटाती है, जिनकी जिम्मेदारियों में उनके प्लेटफॉर्म से नफरती भाषणों का पता लगाना, उनकी समीक्षा करना और गलत जानकारी हटाना शामिल है, और ये स्टेकहोल्डर्स, विशेष रूप से विशेषज्ञों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर किया जाता है.
अब, भारत में मौजूदा बहस से संबंधित, एक व्यक्ति जिसने खुद को इस राजनीतिक तूफान के सामने पाया है, वो भारत, दक्षिण और मध्य एशिया के लिए फेसबुक की पब्लिक पॉलिसी हेड, अंखी दास हैं.
कौन हैं अंखी दास?
अंखी दास एक टीम संभालती हैं, जो ये तय करती है कि प्लेटफॉर्म पर किस तरह के कंटेंट जा सकते हैं. कई वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि दास ने:
- बीजेपी के साथ राजनीतिक संबंधों का हवाला देते हुए, टी राजा सिंह के पोस्ट की जानबूझकर अनदेखी की.
- चुनाव संबंधी मुद्दों पर सत्तारूढ़ पार्टी को फेवर किया.
- COVID-19 और "लव जिहाद" के प्रसार के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराने वाले bjp नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की
इससे सवाल उठता है: कथित पूर्वाग्रह के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
क्या FB व्यावसायिक संभावनाओं की सुरक्षा कर रहा है या राजनीतिक झुकाव की ओर बढ़ रहा है?
290 मिलियन से अधिक यूजर्स के साथ, भारत फेसबुक का सबसे बड़ा बाजार है - जो दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है. पीएम मोदी 45 मिलियन से अधिक फॉलोअर्स के साथ फेसबुक पर दूसरे सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले नेता हैं. इसलिए अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई शुरू करता है, तो निश्चित रूप से काफी संख्या में फेसबुक यूजर्स की के साथ रिश्तों पर असर पड़ सकता है, जो भाजपा समर्थक भी हैं.
फेसबुक ने इस साल रिलायंस जियो के साथ 5.7 बिलियन डॉलर का सौदा किया, जो उसका सबसे बड़ा विदेशी निवेश है. इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए, बीजेपी के खिलाफ कथित कार्रवाई न करना, व्यवसाय की संभावनाओं को सुरक्षित रखने के लिए एक राजनीतिक झुकाव की तरह लगता है, जैसा कि कर्मचारियों ने दावा किया है.
जवाबदेही कहां है?
17 अगस्त को फेसबुक ने विवाद पर एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि वो किसी की राजनीतिक स्थिति के बावजूद हेट स्पीच का समर्थन नहीं करता है.
अब, अगर आरोप सही हैं, तो क्या फेसबुक की कोई जवाबदेही होगी? दुनिया भर में "हेट स्पीच" के विभिन्न मानकों का हवाला देते हुए, फेसबुक भी शब्द की सामान्य परिभाषा के आसपास जाने से बच नहीं सकता है.
एक बार फेसबुक की EMEA पब्लिक पॉलिसी के वीपी रिचर्ड ए ने लिखा था:
“ये थोडा पेचीदा है - उदाहरण के लिए हेट स्पीच पर कानून अलग-अलग देशों में अलग-अलग होते हैं और कानूनी और गैरकानूनी के बीच की रेखाएं हमेशा स्पष्ट नहीं होती हैं.”
जाहिर है दुनिया भर में हेट स्पीच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बदलती परिभाषाओं पर तर्क कुछ हद तक मान्य हैं, भारत के कानूनों और संविधान और फेसबुक के अपने कम्युनिटी गाइडलाइंस के स्पष्ट उल्लंघन में भाजपा नेताओं के खिलाफ एक्शन नहीं लिए जाने का सवाल बिल्कुल बहस का विषय है.
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