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आज भी सांप्रदायिकता को बेनकाब करती भीष्म साहनी के ‘तमस’ की रोशनी

भीष्म साहनी का जीवन और साहित्य

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

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भीष्म साहनी एक ऐसा नाम, जिसे आम लोगों की आवाज उठाने और हिंदी के महान लेखक प्रेमचंद की जनसमस्याओं को उठाने की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले साहित्यकार के तौर पर जाना जाता है.

साहित्यकार, नाटककार, अभिनेता, शिक्षक, अनुवादक और पद्म भूषण से सम्मानित भीष्म साहनी का जन्म 1915 में पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था.

भीष्म साहनी का जीवन और साहित्य

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साहनी ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का भी हिस्सा रहे. 1942 में जेल भी गए. 1947 में रावलपिंडी दंगों के बाद ‘कांग्रेस रिलीफ कमिटी’ में काम किया. विभाजन के बाद वो भारत आ गए. बाद में वो अपने बड़े भाई और मशहूर अदाकार बलराज साहनी की छत्रछाया में इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) से जुड़े.

साहनी अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, रशियन और पंजाबी के प्रखर जानकार थे. उन्होंने अंग्रेजी में ‘बलराज माय ब्रदर’ नाम से बलराज साहनी की बायोग्राफी लिखी. 1950 में साहनी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में इंग्लिश लेक्चरर के तौर पर काम करना शुरू किया.

1957 में वो मॉस्को पहुंचे, जहां उन्होंने विदेशी भाषा प्रकाशन हाउस में अनुवादक के तौर पर काम किया. उन्होंने करीब 25 रशियन किताबों का अनुवाद हिंदी में किया जिसमें टॉलस्टॉय की ‘रिसरेक्शन’ भी शामिल है.

साहनी की कृति में शामिल उपन्यास ‘तमस’ कालजयी रचना कहलाती है. देश के विभाजन को करीब से देखने वाले साहनी ने सत्तर के दशक में इसे लिखा था. ‘तमस’ पर लोकप्रिय टीवी सीरीज भी बनी. साहनी की ये रचना सांप्रदायिकता के उस रेशे-रेशे को पकड़ता है जो आज भी हमारे समाज में गहरे तक फैली है.

1969 में साहनी को पद्म श्री और 1998 में पद्म भूषण के खिताब से नवाजा गया. 1975 में  ‘तमस’ को साहित्य अकादमी अवार्ड मिला. 2002 में साहनी साहित्य अकादमी फेलोशिप अवार्ड के भी हकदार बनें.

भीष्म साहनी के उपन्यासों की सूची में झरोखे, तमस, बसंती, मय्यादास की माड़ी, कुन्तो, नीलू नीलिमा नीलोफर शामिल हैं. उनके नाटक हानूश, कबिरा खड़ा बजार में, मुआवजे हिंदी रंगमंच के मील के पत्थर हैं.

11 जुलाई, 2003 को ‘प्रेमचंद परंपरा’ के इस चमकते सितारे ने अंतिम सांस ली.

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