9 साल का लियाकत जीशान (बदला हुआ नाम) जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल-370 हटाए जाने वाले दिन को याद करता है. इसी दिन उसका स्कूल बंद हुआ और उसी दिन उसके स्कूल में 'भाषण' प्रतियोगिता थी, जिसके लिए उसने काफी तैयारियां की थी. लेकिन वह इसमें भाग नहीं ले पाया. वह दुख के साथ कहता है, "मुझे बहुत बुरा लगा था. मैं हफ्तों से इसके लिए तैयारी कर रहा था, लेकिन यह नहीं हो पाया."
5 अगस्त को, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करते हुए अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था. इस फैसले से पहले, राज्य (अब केंद्रशासित प्रदेश) में फोन और इंटरनेट सेवाओं को पूरी तरह ठप कर दिया था और स्कूलों को बंद कर दिया था.
'हम स्कूल, अपने दोस्तों और सामान्य जिंदगी को मिस कर रहे हैं'
छठी कक्षा की छात्रा, समीरा कहती है, "मैं अपना स्कूल, अपने दोस्तों और शिक्षकों को मिस कर रही हूं. हम अपने रिश्तेदारों से बात नहीं कर पा रहे हैं." रोजाना हो रहे प्रदर्शन, पत्थरबाजी की घटनाओं और नाबालिगों को उठाए जाने और उनकी गिरफ्तारी को देखते हुए, लोगों को अपने बच्चों के लिए अलग कमरा रखना पड़ रहा है. घर में फंसकर कुछ नहीं कर पाने के कारण और दोस्तों से नहीं मिल पाने की वजह से बच्चे काफी दुखी रह रहे हैं.
छठी कक्षा के जावेद बताते हैं, "हम डिप्रेस्ड हैं. हम मरने की खबर के साथ उठते हैं. यह व्यक्ति मर गया, वो मर गया, किसी की आंखों की रोशनी चली गई. मेरे भाइयों ने पैलेट गन के कारण अपनी आंखों की रोशनी खो दी. वे बाहर गए थे, लेकिन देखिए क्या हुआ. कई और को उठाया गया या गिरफ्तार किया गया. सिर्फ बच्चों के लिए एक अलग जेल है."
‘हम सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं’
28 अक्टूबर को, श्रीनगर के सौरा में पत्थरबाजी के संदेह पर तीन लड़कों को पुलिस हिरासत में लिया गया था. हिरासत में लिए गए आरिफ कहते हैं, "जब हमें उठाया गया, हम पार्क में खेल रहे थे. हम पत्थर नहीं फेंक रहे थे. एसएचओ आया था और हमें बुरी तरह पीट दिया. फिर उसने हमें रक्षक में डाल दिया और लगातार पीटने लगा. उन्होंने हमें डंडों से भी पीटा. फिर हम पुलिस स्टेशन गए और हमें 2 दिनों तक लॉकअप में रखा गया."
आरिफ के साथ हिरासत में लिए गए 11 साल के आमिर ने कहा कि वह अपनी अम्मी को मिस कर रहा था. जब उसने अधिकारियों से अपने मां-बाप से मिलाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया.
आरिफ ने कहा, "मैं डरा हुआ हूं कि कहीं हमें पुलिस दोबारा न पकड़ ले और जेल में बंद कर दे. इसलिए मैं बिल्कुल भी बाहर नहीं निकलता हूं."
बिखरे सपने, अनिश्चित भविष्य
समीरा कहती है कि उसका भविष्य काफी निराश करने वाला लग रहा है. वो इंजीनियर बनना चाहती है, लेकिन वो नहीं जानती कि परिस्थिति उसका यह सपना पूरा होने देगी या नहीं. वह कर्फ्यू और प्रदर्शन की वास्तविकता से वाकिफ है, जिस वजह से स्कूल जाना मुश्किल हो गया है. उसने कहा, "कश्मीर की परिस्थियों को देखते हुए, सपनों को पूरा करना मुश्किल लगता है."
कश्मीरी के बच्चों का सपना डॉक्टर और इंजीनियर बनने का है. इन सबके अलावा, वे एक सामान्य जिंदगी जीना चाहते हैं.
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