वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
कविता और आवाज़: अगर राथर
इलस्ट्रेशन: कामरान अख्तर
दिसंबर 2019 को भारत में एंटी-सीएए आंदोलन के लिए हमेशा याद किया जाएगा. इस महीने सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ देशभर में छात्रों और महिलाओं के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन हुए थे, जो लोकतांत्रिक प्रतिरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया था.
एंटी सीएए प्रदर्शन देश के हर कोने में हुए. ‘तराना ए वहादत’ उन्हीं प्रदर्शनों के पलो को याद करता है.
नारा गूंजा और हाथ बजे
जज़्बात जगे और अरमान सजे
इंक़लाब ओ इंक़लाब ओ इंक़लाब इंक़लाब ओ
वो सड़कें अब ख़ामोश तो हैं
पर इंक़लाब की गवाह हैं
वो दीवारें रंगी हैं सफ़ेद
पर चीख़ रही हैं हर आन में
इंक़लाब ओ इंक़लाब इंक़लाब ओ इंक़लाब
ये नफ़रतों के सिलसिले कब ख़त्म होंगे
क्या पता?
हम उल्फतों के ही तराने गुनगुनाते जाएंगे
तुम क़त्ल करने के लिए आए हो लेकर तेग़ भी
हम अहल-ए-दिल सीना सीकर ही मुस्कुराते जाएंगे
हम उल्फ़तों के ही तराने गुनगुनाते जाएंगे
तुम लाख कर लो कोशिशें और छुपा लो आसमां
हम रोशनी की ताक में ख़ुद को जलाते जाएंगे
हम उल्फतों के ही तराने गुनगुनाते जाएंगे
तुम आज़मा लो जोर चाहे कत्ल ही कर दो हमें
हम भी जरा शौक़ ए शहादत आज़माते जाएंगे
हम उल्फ़तों के ही तराने गुनगुनाते जाएंगे
तुम क़ैद कर लो जिस्म हमारे
जेलों में ही भेज दो हमें
हम बन के हवा आज़ादी की
सब कुछ उड़ाते जाएंगे
तुम झूठ की खबरें सुनाओ नफ़रतों की सुर्खियां
हम बन के नग़मे शायरों के
सब कुछ सुनाते जाएंगे
तुम बाँट दो चाहे हमें अपनी अना की आग में
हम बन के ख़ुशबू गुलिस्तां की सबको मिलाते जाएंगे
हम उल्फ़तों के ही तराने गुनगुनाते जाएंगे
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