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उर्दूनामा: क्या हर ‘जुस्तुजू’ के बाद जिंदगी में समझदारी आती है?

हम हमेशा जुस्तुजू लफ्ज का इस्तेमाल ‘प्लानिंग’ के साथ करते हैं.

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हमारा दिल एक खूबसूरत दुनिया चाहता है जहां इतनी दौलत हो, जो हमें एक बेहतर दुनिया जीने का मौका दे सके. और उस तरह की दुनिया में हमारे लिए नाराजगी या किसी दर्द के लिए कोई जगह नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इंसान हमेशा उम्मीद करता है और जिंदगी में सबसे अच्छी चीजों के लिए 'जुस्तुजू' करता है.

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'जुस्तुजू' मतलब खोज, तलाश, इच्छा.

हम हमेशा जुस्तुजू लफ्ज का इस्तेमाल 'प्लानिंग' के साथ करते हैं. मिसाल के तौर पर अगर आप अपने आसपास एक बेहतर दुनिया चाहते हैं, अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं, अगर आप खुश रहना चाहते हैं तो कोई और आपके लिए ये नहीं करने जा रहा है. आपको ही इसके लिए काम करना होगा.

ये कैसे होगा?

इसके लिए आप छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा नहीं करेंगे. लोगों को बेमतलब जज नहीं करेंगे. अपनी भावनाओं के हर समय इजहार की जरूरत महसूस नहीं करेंगे. आप ज्यादा धीरज और ज्यादा समझ रखने की कोशिश करेंगे और इन सभी चीजों के बाद जब आप अपने अंदर बदलाव महसूस करना शुरू करते हैं. तब आपने एक बेहतर दुनिया के अपने 'जुस्तुजू' को हासिल कर लिया है.

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लेकिन कभी-कभी हमारी 'जुस्तुजू' आरामतलब जिंदगी के लिए होती है, जिसमें होता है अच्छा करियर, बड़ा घर, बड़ी कार और ये फेहरिस्त लंबी होती जाती है. शायर अल्ताफ हुसैन हाली ने इसके बारे में इस खूबसूरत नज्म में लिखा है

है जुस्तुजू के ख़ूब से है ख़ूब तर कहाँ
अब ठहरती है देखिए जाकर नज़र कहाँ

पहली लाइन का मतलब है कि दिल हमेशा ही सबसे अच्छी चीजों की तलाश में रहता है. हम हमेशा पहली चीज हासिल, जो अभी तक पूरा भी नहीं हुआ है, उससे पहले ही किसी दूसरी चीज की तलाश में रहते हैं,
दूसरी लाइन का मतलब है कि किसी का दिल नहीं जानता कि कब जिंदगी में कोई ऐसा समय आए जहां कोई ये कह सके, मुझे सब कुछ मिल गया है अब कुछ नहीं चाहिए.

लेकिन क्या कभी ऐसा होगा? नहीं.

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