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2020: महिलाओं की स्थिति की ‘डार्क पिक्चर’ का ट्रेंड दिखाता सर्वे

महिलाओं से जुड़े वो मुद्दे जिनपर पीछे खिसकने का जोखिम हम नहीं ले सकते!

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

दिसंबर में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे(NFHS) 2019-20 के डेटा ने भारत में महिलाओं की स्थिति की तस्वीर पेश की. ये आंकड़े पिछले 5 सालों (2015-19) का रिकॉर्ड है. NFHS के इन आंकड़ों के ट्रेंड से कुछ राज्यों की डार्क पिक्चर दिखाई पड़ती है.

22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों(UT) में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2019-20 (National Family Health Survey-(NFHS) के उन डेटा के बारे में जानते हैं जिनसे हमें फिक्र होनी चाहिए. ये महिलाओं से जुड़े वो मुद्दे हैं जिनपर पीछे खिसकने का जोखिम हम नहीं ले सकते क्योंकि देश में उनकी स्थिति क्या है इसे बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं है!
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आंकड़े बताते हैं कि भारत में 7 ऐसे राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं जहां 25% से ज्यादा महिलाएं पति द्वारा हिंसा की शिकार हुईं. 8 ऐसे राज्य/केंद्रशासित प्रदेश हैं जहां सेक्स रेशियो में कमी आई और 9 राज्यों में वैसी महिलाओं की संख्या बढ़ी जिन्होंने बताया कि बचपन में उन्हें सेक्सुअली अब्यूज किया गया.

इन आंकड़ों में सभी राज्य, COVID महामारी और लॉकडाउन के दौरान के आंकड़े शामिल नहीं हैं. लेकिन सर्वे ने सतर्क कर दिया है- आगे क्या किए जाने की जरूरत है क्योंकि महामारियां महिलाओं पर अलग तरह की मुसीबतें लेकर आती हैं

वो राज्य जहां पति द्वारा हिंसा की शिकार हुईं महिलाओं की संख्या 25% से ज्यादा है- उनमें कर्नाटक, बिहार, मणिपुर, तेलंगाना, असम, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल शामिल हैं. कर्नाटक के आंकड़े ये कहते हैं कि वहां औसतन हर दूसरी महिला घरेलू हिंसा की शिकार हैं. पिछले सर्वे की तुलना में वहां ये परसेंटेज दोगुनी से भी ज्यादा है. बिहार में कमी दर्ज की गई लेकिन ये आंकड़ा घटने के बावजूद 40% है.

महिलाओं से जुड़े वो मुद्दे  जिनपर पीछे खिसकने का जोखिम हम नहीं ले सकते!
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अब बात करते हैं उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की जहां सेक्स रेशियो में गिरावट दर्ज की गई. सेक्स रेशियो के मामले में गोवा, हिमाचल प्रदेश ने सबसे खराब प्रदर्शन किया. बिहार, महाराष्ट्र, मेघालय में भी कमी आई. सबसे अप्रत्याशित कमी केरल में हुई है. जहां 2015-16 के सर्वे के मुताबिक राज्य में 1,000 मेल के मुकाबले 1,047 फीमेल थीं. पिछले 5 सालों में ये आंकड़ा घटकर 951 हो गया.

महिलाओं से जुड़े वो मुद्दे  जिनपर पीछे खिसकने का जोखिम हम नहीं ले सकते!

असम, गोवा, कर्नाटक,महाराष्ट्र, मेघालय, सिक्किम,पश्चिम बंगाल, जम्मू कश्मीर,लद्दाख ये वो 9 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश जहां बचपन में सेक्सुअल अब्यूज की शिकार हुईं महिलाओं की संख्या में बढ़त दर्ज की गई है. अच्छी बात ये है कि अब हम इन संख्याओं को रिपोर्ट कर पा रहे हैं वर्ना इसे लेकर महिलाओं का मुखर होना आसान नहीं रहा है.

महिलाओं से जुड़े वो मुद्दे  जिनपर पीछे खिसकने का जोखिम हम नहीं ले सकते!

तो क्या महिलाओं के हित में कुछ बेहतर नहीं हुआ?

ऐसा नहीं है...कुल संख्या की बात करें तो देश में महिलाओं पर पति द्वारा की जाने वाली हिंसा में कमी देखी गई है. मेन्स्ट्रुएशन के दौरान हाइजीनिक सुरक्षा के उपाय अपनाने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है. हालांकि हमारे यहां ‘पीरियड्स पॉवर्टी’ बरकरार है जबकि स्कॉटलैंड में तो इसी साल ये कानून आ गया है कि सभी महिलाओं को मेन्स्ट्रुअल प्रोडक्ट्स फ्री दी जाएगी.

वहीं, देश में उन महिलाओं की संख्या 50% बढ़ी है, जो खुद अपने बैंक अकाउंट ऑपरेट करती हैं- और हां हमारे देश में इसे हम उपलब्धि मान सकते हैं क्योंकि जनवरी 2020 में जारी हुई रिजर्व बैंक की वित्तीय समावेश (फाइनेंशियल इंक्‍लूजन) की रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं का फाइनेंशियल मामलों से जुड़ना सशक्तिकरण के लिए बेहद जरूरी है.

फिलहाल महिलाओं के लिए जितना हमने हासिल किया है उससे बहुत ज्यादा किए जाने की जरूरत है. महामारी और लॉकडाउन ने हमारी उपलब्धि को कितना नुकसान पहुंचाया है वो NHFS के इस सर्वे में शामिल नहीं है.

बड़े और खुशगवार आंकड़ों के पीछे जरूरी सवाल और चिंता नहीं छिपनी चाहिए!

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