16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है, ऐसे में ओजोन परत में हुए छेद और भारत पर इसके प्रभाव पर एक नजर डालते हैं.
अंटार्टिका के ऊपर ओजोन छेद के धीरे-धीरे 2060 तक 1980 के स्तर पर लौटने की उम्मीद है. नवंबर 2018 में जारी संयुक्त राष्ट्र अध्ययन से इस बात का पता चला. इसका क्रेडिट 1987 के मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को जाता है, जिसके तहत मानव निर्मित गैस पर प्रतिबंध लगा.
लेकिन ये भारत के लिए उतनी अच्छी खबर नहीं है. हाल ही हुए एक अध्ययन से सामने आया है कि भारत में प्रदूषण उपमहाद्वीप के ऊपर ओजोन परत को खराब कर रहा है. बाउंड्री लेयर ओजोन या 'खराब' ओजोन यानी वायुमंडल का निचला हिस्सा -यहां जीवन बसता है, प्रदूषण फैलाता है.
यह एक बेरंग गैस होती है, जो तब बनती है जब सूरज की किरणें इंसानों के फैलाए प्रदूषण से टकराती हैं. 'खराब' ओजोन में ग्रीन हाउस गैस सांस के साथ अंदर जाती हैं, तो सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं.
ओजोन प्रदूषण से, सांस की तकलीफ, कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां, त्वचा कैंसर का डर, फसल की पैदावार में कमी होती है.
करीब 30% 'हानिकारक' ओजोन सिंधु-गंगा मैदानी इलाकों और और मध्य भारत से आता है. अगर इस परिस्थिति को बदला नहीं गया, तो 2050 तक 11 लाख से ज्यादा लोगों की समय से पहले मौत हो सकती है.
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