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कर्नाटक के सियासी ‘नाटक’ का लास्ट पार्ट अभी बाकी

कर्नाटक: क्या बागी MLA के बूते BJP अपना किला मजबूत कर पाएगी?

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कर्नाटक में ऑपरेशन कमल नाम का सियासी ‘नाटक’ जो जुलाई में शुरू हुआ था, इस वक्त उसका आखिरी पार्ट खेला जा रहा है. और इस नाटक से जो संदेश निकलकर सामने आ रहा है वो कर्नाटक ही नहीं पूरे देश पर असर डालेगा, ये तो तय है.

राज्य में 5 दिसंबर को 15 सीटों पर उपचुनाव होने हैं. उपचुनावों के लिए 14 नवंबर को बीजेपी ने एक लिस्ट में जिन 13 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए, उनमें सारे के सारे कांग्रेस-जेडीएस के बागी हैं. इन बागियों ने चंद घंटे पहले ही बीजेपी को ज्वाइन किया था. ये उन 17 विधायकों में से हैं जिन्होंने अचानक कांग्रेस-जेडीएस को गच्चा दे दिया था, जिसके बाद फ्लोर टेस्ट हुआ और कांग्रेस-जेडीएस के सीएम कुमारस्वामी को इस्तीफा देना पड़ा.

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सवाल ये है कि इनकी बगावत से बीजेपी में स्वागत तक रास्ता तय हो चुका है, तो दल  बदल कानून का क्या औचित्य रहा? सवाल ये भी है कि क्या आयात के सामान के बूते कर्नाटक में बीजेपी अपना किला मजबूत कर पाएगी? और सवाल ये भी है कि जिन सीटों पर बागियों को बॉस बना दिया गया है, वहां के बीजेपी नेता और टिकट दावेदार क्या करेंगे?

अब जरा इन बागियों की कहानी...

जब इन विधायकों ने कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराई तो कर्नाटक विधानसभा के पूर्व स्पीकर केआर रमेश कुमार ने इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था. साथ ही ये भी कहा कि ये मौजूदा विधानसभा भंग होने तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे. मतलब कि ये लोग बीजेपी से बगावत का ‘इनाम’ नहीं हासिल कर पाएंगे.

लेकिन 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी विधायकों को चुनाव लड़ने की परमिशन दे दी. इससे पहिया घूमकर वापस वहीं आ गया. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही बीजेपी ने इन्हें पार्टी में शामिल कराया और बहुप्रतिक्षित ‘इनाम’ यानी टिकट भी दे दिया.

तो सवाल ये उठता है कि दल बदल कानून यानी Anti-Defection Law की क्या साख बची?

दल बदल कानून बनाए जाने के पीछे मकसद यही था कि राजनीतिक दल लालच देकर विरोधी पार्टियों के विधायकों को अपने पाले में न करें - इसे रोकने के लिए कुछ नियम हों. जैसे किसी भी राजनीतिक दल के 2 तिहाई सदस्य पार्टी छोड़ने की जानकारी और सबूत दें तो स्पीकर उन्हें अलग गुट के तौर पर मान्यता दे देंगे.

संख्या इससे कम हुई तो विधायकी जाएगी. लेकिन कर्नाटक के विधायकों ने बैक डोर एंट्री का जुगाड़ कर लिया है. राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसी सरकारों को टूट-फूट का खतरा अब और खतरनाक लग सकता है.

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ये भी याद रखना चाहिए जब ये बागी बीजेपी से गलबहियां कर रहे थे तो दौरान कांग्रेस और जेडीएस ने बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि बीजेपी ने ही सभी विधायकों को तोड़ा है. और बीजेपी ऑपरेशन कमल चला रही है. उन्होंने तो बीजेपी पर करोड़ों रुपये में विधायकों को खरीदने का आरोप भी लगाया था. जब सुप्रीम कोर्ट ने इन विधायकों को फिर से चुनाव लड़ने की इजाजत दी तो साथ ही ये भी कहा कि दल बदल कानून में अब संशोधन का वक्त आ गया है क्योंकि फिलहाल ये बेअसर साबित दिख रहा है.

अब आते हैं दूसरे सवाल पर क्या बागियों के बूते बीजेपी पक्का वाला बहुमत पा लेगी और क्या उपचुनाव के बाद उसकी सरकार तलवार की धार से आराम की स्थिति में आ जाएगी?

कर्नाटक में टोटल 224 सीटें हैं . 17 विधायकों को अयोग्य ठहराया गया तो विधानसभा में संख्या रह गई 207.  इस लिहाज से बहुमत के लिए 104 सीटों की जरूरत थी. फिर 105 सीटों वाली बीजेपी ने एक निर्दलीय के समर्थन से सरकार बना ली. 15 सीटों पर 5 दिसंबर को उपचुनाव कराए जाएंगे.

2 सीटों मस्की और राजराजेश्वरी नगर पर कर्नाटक हाईकोर्ट में मामला लंबित है, लिहाजा यहां चुनाव नहीं होंगे. चुनाव होने के बाद विधानसभा में 222 सीटें हो जाएंगी. उस स्थिति में बहुमत का आंकड़ा 111 हो जाएगा. यानी बीजेपी को सत्ता में बने रहने के लिए कम से कम 6 सीटों पर जीत की जरूरत होगी.

लेकिन क्या बागियों के बूते ये लक्ष्य हासिल करना आसान है?

टिकट बंटवारे से नाराज पार्टी के पुराने नेता नेतृत्व के खिलाफ नाराजगी जता रहे हैं. एक सीट पर तो बीजेपी सांसद बीएन बछे गौड़ा के बेटे शरथ बछे गौड़ा ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है. कुमारस्वामी ने भी ऐलान कर दिया है वो बछे गौड़ा का समर्थन करेंगे. बाकी सीटों पर भी भितरघात का डर तो रहेगा ही. एक सवाल ये भी है कि क्या वोटर इन बागियों को जिताएंगे?

अभी-अभी हरियाणा में चुनाव हुए. बीजपी ने जिन 11 बागियों को टिकट दिया उनमें से सिर्फ एक चुनाव जीत पाया. वैसे भी सियासत में गुड और बैड की लाइनें ब्लर होती जा रही हैं. ऐसे में सही और गलत के बीच लाइन तो वोटर को ही खींचना है!

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