ADVERTISEMENTREMOVE AD

संगम में जुटी 2 करोड़ की भीड़!ये दावा है,चुटकुला है या भीड़ घोटाला

मकर संक्रांति के स्नान के बाद कुंभ प्रशासन का दावा आया कि 14-15 जनवरी को करीब 2 करोड़ लोग जुटे, दावे की पड़ताल

छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो प्रोड्यूसर- अभय कुमार सिंह

वीडियो एडिटर- वरुण शर्मा

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रयाग में 15 जनवरी से 4 मार्च तक कुंभ मेला लगा हुआ है. हर रोज मेले से जुड़ी खबरें आ रही हैं, इन्हीं खबरों के बीच मकर संक्रांति के स्नान के बाद कुंभ प्रशासन का दावा आया कि 14-15 जनवरी को कुंभ में करीब 2 करोड़ लोग जुटे. लेकिन भीड़ के इस दावे पर सवाल उठ रहे हैं. कोई इसे आंकड़ों की बाजीगरी बता रहा है कोई 'चुटकुला'. 15 जनवरी को कुंभ की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद ही क्विंट की टीम इन आंकड़ों की पड़ताल में जुट गई. जाहिर सी बात है कि अगर 2 करोड़ लोग शहर में जुटे हैं तो शहर के रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंड पर भी भारी संख्या में भीड़ देखने को मिलेगी.

क्विंट की टीम को प्रयागराज के सिविल लाइंस, रेलवे जंक्शन, प्रयागराज स्टेशन पर दावे के मुताबिक भीड़ नहीं दिखी. सबसे बड़ी बात ये है कि ज्यादातर श्रद्धालु आज भी साधन संपन्न नहीं हैं कि अपनी गाड़ी से इलाहाबाद तक आ सके. लिहाजा लोगों को बस और ट्रेन का सहारा लेना पड़ता है. प्रयागराज और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन भी 15 जनवरी की रात '2 करोड़ के हिसाब' वाली भीड़ नहीं दिखी.

'भीड़' के दावे पर लोगों की क्या है राय?

1989 से कुंभ को कवर करने वाले पत्रकार रतिभान त्रिपाठी इन दावों को सही नहीं मानते

अब तक मेरा ये छठवां कुंभ मेला है. इस बार के कुंभ का जो निमृति है, भव्यता है, दिव्यता है. अन्य कुंभों के मुकाबले बहुत अच्छा है लेकिन जो भीड़ के दावे किए जा रहे हैं. मैं उससे इत्तेफाक नहीं रखता.
रतिभान त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार

स्थानीय पत्रकार मनीष पालीवाल इसे भीड़ घोटाला बताते हैं

जिस तरीके से सरकारी दावे किए जाते हैं. तमाम बजट जारी किया जाता है कि इतना काम हुआ. लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उससे अलग होती है. उसी तरह भीड़ की भी एक तरह से कहा जाए भीड़ घोटाला. इसको भीड़ घोटाला कहा जा सकता है क्योंकि इनके पास कोई सही-सही आंकड़ा नहीं है.
मनीष पालीवाल, स्थानीय पत्रकार

जब ऐसे सवाल उठने लगे तो हमने कुंभ प्रशासन से जाना कि आखिर भीड़ की गिनती कैसे होती है.

देखिए ये एक मैनुअल आंकड़ा है. हमारे यहां जो घाट है स्नान जितने लोग करते हैं आधे घंटे से एक घंटे. इस तरह का एक आकलन होता है फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी के माध्यम से ये आकलन किया जाता है. इसकी अभी कोई डिजिटल मैपिंग नहीं है जिसके आधार पर बिलकुल सही चीज बताई जाए.
दिलीप कुमार त्रिगुणायक, अपर मेला अधिकारी

टीवी पत्रकार मोइन खां भी भीड़ के इस दावे को खारिज करते हैं. मोइन कहते हैं कि पिछले साल से बढ़ाकर बजट हासिल करने के लिए भीड़ के ऐसे नंबर बताए जाते हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×