वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
21 के दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन पर ये है मेरी Vlog सीरीज- लॉकडाउन डायरीज. इस एपिसोड में मैंने 28 से 30 मार्च तक मतलब लॉकडाउन के चौथे, पांचवे और छठे दिन की अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को दिखाया है. जब पूरी दुनिया में कोरोनावायरस का संकट चरम पर है, भारत में लॉकडाउन हो चुका है. बाजार बंद हैं, दुकानें सूनी हैं. बिना इमरजेंसी के घर से बाहर निकलने पर सख्त मनाही है. ऐसे में दुनिया घर तक सीमित होकर रह गई है.
28 मार्च- लॉकडाउन का चौथा दिन
लॉकडाउन के तीन दिन गुजर जाने के बाद घर में वक्त काटने की आदत अब धीरे-धीरे बनने लगी है. समय का सही इस्तेमाल कैसे करना है. इस पर भी दिमाग काम कर रहा है. आमतौर पर अब मैंने घर पर ही सुबह व्यायाम और योग करने की आदत डाल ली है. हांलाकि पहले में बाहर दौड़ने के लिए पास की पहाड़ी पर जाया करता था, लेकिन अब कोरोनावायरस के प्रकोप की वजह से नहीं जा पा रहा. व्यायाम के बाद मैंने नाश्ते में डोसा रसम खाया. इसके बाद मैं वर्क फ्रॉम होम पर बैठ गया और दफ्तरी कामकाज करने लगा. इस डिजिटल जमाने में घर से भी ऑफिस के लिए काम करना आसान हो गया है. इसलिए मैं ऑफिस में भी सहयोग दे पा रहा हूं. लेकिन मेरे घर में ब्रॉडबैंड नहीं है और लैपटॉप में भी खराबी है. इस लॉकडाउन की वजह से दोनों की काम नहीं करवा पा रहा हूं इसलिए काम करने में दिक्कत हो रही है. छोटे शहर में हू तो बीच-बीच में बत्ती भी चली जाती है, ये एक अलग ही दिक्कत है.
29 मार्च- लॉकडाउन का पांचवा दिन
29 मार्च की शुरुआत शीर्षासन के साथ हुई. हर दिन मैंने एक नए योगासन के अभ्यास करने का तय किया है. लेकिन योगासन करते ही वक्त मुझे अपने घर के सामने से काफी तादाद में पैदल चले रहे लोग दिखे. देखने से वो लोग प्रवासी मजदूर लग रहे थे. कुछ दिन पहले प्रवासी मजदूरों के महानगरों से पैदल चलने की कहानी भी आई थी. इसलिए मैं समझ गया. उन पैदल जा रहे मजदूरों ने बताया कि वो आगरा से पैदल चले आ रहे हैं. इन लोगों को देखकर मन व्यथित हो गया. लॉकडाउन ने कई लोगों की जिंदगी को जोरदार झटका मारा है. इसके बाद में अपने दैनिका कामों में लग गया. फिर थोड़ी घर की साफ सफाई की. कुछ भूले बिसरे पुराने दोस्तों को फोन लगाकर हाल-चाल जाना. कुछ खुद के काम निपटाए. वक्त काटने के लिए जो किया जा सकता था सब कुछ किया.
30 मार्च- लॉकडाउनक का छठां दिन
जैसे-जैसे लॉकडाउन के दिन बीत रहे हैं. मन में पहले जैसे दिन फिर से जीने की तलब बढ़ रही है. हांलाकि रह रह कर पुराने दिनों की यादें भी ताजा हो रही हैं. परिवार के साथ मैंने घर पर दूरदर्शन पर रामायण सीरियल देखा. पुराने दूरदर्शन वाले दिन याद आ गए. शक्तिमान, रंगोली जैसे कार्यक्रमों के लिए हम लोग कैसे उत्सुकता के साथ टीवी के सामने बैठ जाया करते थे. साथ जब भी अपने शहर दमोह में आया करता था तो घर पर कम ही टिकता था, बाहर घूमना दोस्तों के साथ टफलीबाजी करना, फिल्में देखने थियेटर जाना. लेकिन इस बार घर पर भी घर जैसा महसूस नहीं हो रहा है.
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