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बंद पाठशाला-खुली मधुशाला, कोरोना से ये कैसी लड़ाई?

जिस शराब के नशे ने कितने घरों को उजाड़ दिया वो सरकार के लिए अमृत क्यों हैं?

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

“हम जिनको बेवड़े समझते थे वो तो देश की अर्थव्यवस्था का चौथा खंभा निकले.. कोई कह रहा है शराबी के पांव क्यों डगमगाते हैं, क्योंकि उसके कंधों पर अर्थव्यवस्था का बोझ होता है..” ऐसे ही जोक्स WhatsApp से लेकर सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं. कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन को 17 मई तक के लिए बढ़ा गया लेकिन इसके साथ ही कई चीजों में छूट दी गई. जिस छूट की सबसे ज्यादा चर्चा है वो है शराब की बिक्री को मंजूरी.

दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक जैसे करीब करीब सभी राज्यों ने शराब की दुकानें खोलने की इजाजत दे दी है. 40 दिनों बाद जैसे ही wine & beer की दुकानें खुली मानों सोशल डिस्टेंसिंग से लेकर लॉकडाउन का लॉक ही टूट गया.

लोग सड़कों पर इस तरह आए मानो किसी ने कह दिया हो- “शराब करे कोरोना का शर्तिया इलाज.” मानो कोरोना का वैकसीन मिल रहा हो. जहां देशभर में कोरोना को हराने के लिए जरूरी फैक्ट्री से लेकर दफ्तर, पाठशाला बंद हो, वहां मधुशाला खुलेगी तो देश की जनता पूछेगी जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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देश में कोरोना के मामले बढ़ते ही जा रहे है. लॉकडाउन की वजह से पूरे देश में कम ओ बेश आर्थिक गतिविधियों पर रोक है, इसकी वजह से केंद्र और राज्यों को राजस्व का नुकसान हो रहा है. कोरोना लॉकडाउन में सरकारों की आमदनी अठन्नी और कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में खर्चा रुपय्या. ऐसे में शराबी से ज्यादा साकी यानी सरकार को शराब की तलब हो रही है.

सरकार ने कोरोना के केस देखते हुए देश के इलाकों को रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांट दिया. भले ही स्कूल-कॉलेज, कपड़ों की दुकान, होटल, मंदिर-मस्जिद सब बंद हो लेकिन शराब की दुकानें तीनों जोन यानी रेड, ऑरेंज और ग्रीन में खुलेंगी. हालांकि रेड जोन में शराब की दुकानें खुलने को लेकर कुछ शर्तें भी लागू हैं. सरकार ने अपनी तरफ से शराब की दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग का खयाल रखने को कहा है. लेकिन सवाल ये है कि सोशल डिस्टेंसिंग के खयाल की वजह से ही तो स्कूल से लेकर मॉल बंद किए गए.

जिस शराब के नशे ने कितने घरों को उजाड़ दिया वो सरकार के लिए अमृत क्यों हैं?

सामान्य रूप से राज्य शराब की मैन्युफैक्चरिंग और सेल पर एक्साइज ड्यूटी लगाते हैं. लेकिन तमिलनाडु जैसे राज्य एक्साइज ड्यूटी के अलावा VAT भी चार्ज करते हैं. कई राज्यों में इम्पोर्टेड विदेशी शराब पर स्पेशल फीस, ट्रांसपोर्ट फीस और लेबल-ब्रांड रजिस्ट्रेशन चार्ज भी लगाया जाता है. उत्तर प्रदेश में आवारा गौवंश की देखभाल के लिए शराब पर ‘स्पेशल ड्यूटी’ लगाई जाती है.

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2019 में RBI ने ‘State Finances: A Study of Budgets of 2019-20’ नाम की एक रिपोर्ट पब्लिश की थी. इसमें राज्यों के राजस्व के बारे में जानकारी दी गई थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर राज्यों के राजस्व का 10-15% एल्कोहल पर एक्साइज ड्यूटी से आता है.

अब बात शराब दुकान खोलने के फैसले पर

जब 4 मई को शराब की दुकानें खुली तो सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गई. ना तो एक मीटर की दूरी रही ना ही कोरोना की मजबूरी. सोशल मीडिया पर तस्वीरें तैरने लगी, सवाल उठने लगे कि क्या लोगों की जिंदगी से जरूरी सरकार के लिए शराब है? तब दिल्ली सरकार ने शराब पर स्पेशल कोरोना फीस लगा दी. शराब तय एमआरपी से 70 फीसदी महंगी मिलेगी. आंध प्रदेश ने भी 50 फीसदी दाम बढ़ा दिए हैं. अब ये तो सरकार ही जाने कि दाम बढ़ा कर भीड़ कम करना मकसद है या और पैसे कमाना.. यही नहीं कई राज्य सरकार शराब की होम डिलेवरी सेवा देकर रिकॉर्ड बना रही है.

कुछ सवाल

कोरोना बढ़ता जा रहा है, ऐसे में दारू की दुकान खोलने के फैसले ने एक झटके में उस 40 दिन की मेहनत पर पानी फेर दिया, जहां लोग कोरोना को हराने के लिए अपने घरों में कैद थे. जिस lockdown की वजह से इंडस्ट्री, दुकान, लोकल अस्पताल तक बंद हो गए वहां इकनॉमी को दारू पिलाकर मजबूत करने की ये कैसी कोशिश है?

सवाल ये भी है कि गुजरात, बिहार, मिजोरम और नागालैंड में पूर्ण रूप से शराबबंदी है. फिर इन राज्यों के खजाने का क्या होगा?

“ हरिवंश राय बच्चन ने कई दशक पहले लिखा था, बैर बढ़ाते मस्जिद-मन्दिर, मेल कराती मधुशाला’’. लेकिन फिलहाल मधुशाला के चक्कर में कोरोना से मेल हो सकता है और जिंदगी से बैर.. अगर शराब लेने वालों की भीड़ में कोई कोरोना संक्रमित आया होगा तो क्या होगा? कितने लोगों को चपेट में लेगा? इन सवालों से भले ही सरकार सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन कर रही हों लेकिन जिन कोरोना वॉरियर्स ने अपनी जान दांव पर लगाकर इसे बढ़ने से रोकने की कोशिश की है वो पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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