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प्रवासी मजदूरों और कानून को भूल गई सरकार

कानून का पालन होता तो मजदूरों को पैदल नहीं जाना पड़ता

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

भारत को छोड़कर दुनिया में कहीं भी क्या हमने कोरोना महामारी के दौरान इस तरह के प्रवासी मजदूरों के संकट को देखा है. ये तस्वीरें हमें याद दिलाती हैं कि हमारे प्रवासी मजदूरों ने क्या-क्या झेला. कोई काम नहीं, कोई पैसा नहीं. लाखों लोग घर पैदल जाने को मजबूर हुए. सैकड़ों की रास्ते में मौत हो गई.

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लेकिन इनमें से कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी, अगर हम देश के कानून को नहीं भूलते. क्या आपने इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन या ISMW Act के बारे में सुना है? ये एक कानून है जो 1979 में लागू किया गया था. इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स के शोषण को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने इस कानून को नजरअंदाज कर दिया.

ISMW Act के तहत सभी प्रतिष्ठान और ठेकेदार जो भी पांच या उससे ज्यादा इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स को नियुक्त करते हैं. उन्हें  प्रतिष्ठान और मजदूरों को सरकार के साथ रजिस्टर्ड कराना पड़ता है लेकिन ट्रांसपेरेंसी एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज को श्रम मंत्रालय से मिले RTI जवाब सरकार की उदासीनता को उजागर करते हैं. 

यहां डेटा के 4 पॉइंट्स हैं

एक

2010 से 2020 के बीच पिछले 10 सालों में केवल 84,875 इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स को इस एक्ट के तहत रजिस्टर्ड किया गया है. इंप्लॉयमेंट डेटा साइंटिस्ट डॉ. अमिताभ कुंडू का अनुमान है कि भारत में 2.1 करोड़ इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स हैं जिनमें से कम से कम 61 लाख मजदूरों को ISMW के तहत रजिस्टर्ड होना चाहिए न कि केवल 85,000 मजदूरों को.

दो

दिल्ली में लाखों इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स काम करते हैं लेकिन यहां 2015 और 2020 के बीच  ISMW अधिनियम के तहत एक भी वर्कर का रजिस्ट्रेशन नहीं किया है!

तीन

पिछले 10 सालो में केवल 1993 ठेकेदारों और सिर्फ 372 प्रतिष्ठानों को एक्ट के तहत लाइसेंस जारी किए गए हैं, जबकी ये संख्या लाखों में होनी चाहिए.

चार

ISMW एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए पिछले 10 सालों में सिर्फ 515 ठेकेदारों और एंप्लॉयर्स के खिलाफ कार्रवाई की गई थी, मतलब न के बराबर.

राज्य और केंद्र सरकारों ने न केवल एक्ट को नजरअंदाज किया है और इसे लागू करने में असफल रहे हैं, लाखों प्रवासी मजदूरों के शोषण की इजाजत देते हैं. यहां तक

कि कोविड -19 महामारी के दौरान भी. यहां हम बता रहे हैं कि कैसे ISMW एक्ट हमारे प्रवासी मजदूरों के संकट को कम कर सकता था.

पहला

एक्ट के तहत मजदूरों के रजिस्ट्रेशन से सरकार को पूरे भारत में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों की संख्या पर नजर रखने में मदद मिलती. लॉकडाउन के दौरान, केंद्र सरकार ने संसद में स्वीकार किया है कि इस बारे में कोई साफ जानकारी नहीं है कि कितने प्रवासी मजदूर हैं या कितने लोग नौकरी खो चुके हैं, कितने की मौत हो गई, कितने को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत है.

अगर सरकार के पास ये बुनियादी जानकारी भी नहीं होगी तो वे इन लाखों मजदूरों की मदद कैसे कर सकते हैं?

दूसरा

ISMW एक्ट के तहत रजिस्टर्ड सभी ठेकेदारों को नियमित रूप से अपने यहां काम करने वाले  प्रवासी मजदूरों की जानकारी देनी होती है. ये महत्वपूर्ण डेटा है. ऐसा करने में नाकाम रहने वाले ठेकेदारों पर कार्रवाई की जानी चाहिए लेकिन सरकार ने सालों से इस बात को नजरअंदाज किया है.

तीसरा

एक्ट के तहत, प्रतिष्ठान को मजदूरों को आवास और मुफ्त कपड़े देने होते हैं लेकिन कई मामलों में, ऐसा नहीं हुआ हमने लाखों प्रवासी मजदूरों को अपने गांव लौटते देखा क्योंकि उनके पास शहरों में किराए के भुगतान के लिए पैसे नहीं थे.

चौथा

अगर प्रवासी मजदूर अपने गांवों में जाते हैं तो प्रतिष्ठानों को उन्हें यात्रा भत्ता देना होता है और हम जानते हैं कि ऐसा नहीं हुआ. लाखों प्रवासी मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चले क्योंकि उनके पास रेलवे टिकट के लिए पैसे नहीं थे.

पांचवा

एक्ट ये भी कहता है कि अगर रजिस्टर्ड माइग्रेंट वर्कर्स के अधिकारों का दुरुपयोग किया जाता है तो सरकार को मुआवजा पाने में मदद के लिए मुफ्त कानूनी सहायता देनी चाहिए लेकिन ये भी नहीं हुआ.

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को सपोर्ट करने के दूसरे उपाय भी नाकाफी साबित हुए. मई में, सरकार ने जिनके पास राशन कार्ड नहीं थे. उन प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन देने के लिए  आत्म निर्भर योजना शुरू की लेकिन ये योजना सिर्फ दो महीने चली. जुलाई में, नरेंद्र मोदी ने अंत्योदय अन्न योजना (AAY) और प्राथमिकता वाले घर / PHH राशन कार्ड धारकों को मुफ्त अनाज देने का स्कीम नवंबर तक बढ़ा दिया लेकिन इसका लाभ उठाने के लिए प्रवासी मजदूरों को राशन कार्ड की जरूरत होगी.

जिसका मतलब है कि जुलाई से बिहार या झारखंड में रहने वाले एक इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर को दिल्ली में मुफ्त राशन नहीं मिला क्योंकि उसके पास अपने दिल्ली के पते से जुड़ा राशन कार्ड नहीं था. पीएम ने दावा किया कि PMGKAY पूरे देश में 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों की मदद करेगा. लेकिन सवाल ये है कि राशन कार्ड के बिना इस योजना से शहर के प्रवासी मजदूर को कैसे फायदा होगा?

सरकार ने प्रवासी मजदूरों की सेवा के लिए कानून बनाए और योजनाओं की घोषणा की लेकिन वास्तव में उन्हें इसका फायदा हो ये सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए क्या ये उचित है?

उदाहरण के लिए, क्या सरकार को प्रवासी मजदूरों के लिए आत्म निर्भर योजना को जून से आगे नहीं बढ़ाना चाहिए था?

क्या भारत के प्रवासी मजदूरों की पीड़ा श्रम मंत्रालय के लिए एक वेक-अप कॉल होगी और उन्हें वास्तव में ISMW अधिनियम को लागू करने के लिए प्रेरित करेगी?

हम केवल उम्मीद ही कर सकते हैं

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