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महाराष्ट्र: फ्लोर टेस्ट के सस्पेंस की चाबी प्रो-टेम स्पीकर के पास

लाख टके का सवाल- कौन होगा प्रो-टेम स्पीकर?

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वीडियो एडिटर- विवेक गुप्ता

कैमरा- अभिषेक रंजन

एक सस्पेंस थ्रिलर की तरह आगे बढ़ती महाराष्ट्र सरकार की कहानी सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर आकर अटक गई है. तमाम निगाहें इस बात पर लगीं हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने का फ्लोर टेस्ट कब, कैसे और किन नियमों के तहत होगा? और जब होगा तो किसकी निगहबानी में होगा?

कथा जोर गरम है...

महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के वक्त प्रो-टेम स्पीकर कौन होगा?

ये इस वक्त लाख टके का सवाल है. क्योंकि महाराष्ट्र की नई सरकार का भविष्य तय होते वक्त विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे शख्स के हाथ में नतीजों का रुख पलटने की ताकत होगी. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे?

प्रो-टेम स्पीकर होता क्या है?

प्रो-टेम लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अंग्रेजी में मतलब है- For the Time Being या आसान हिंदी में कहें तो- ‘फिलहाल’.

‘फिलहाल’ इसलिए कि प्रो-टेम स्पीकर परमानेंट यानी स्थायी स्पीकर की नियुक्ति तक ही विधानसभा की कार्यवाही का संचालन करता है. यानी महाराष्ट्र विधानसभा में विधायकों की शपथ और बहुमत का फ्लोर टेस्ट प्रो-टेम स्पीकर की निगरानी में होना है.

अब जहां सरकार बनाने के लिए दोस्तों और दुश्मनों का भेद मिट चुका हो, जहां अपनों से गले मिलते वक्त पीठ में छुरा घोंपे जाने का डर सता रहा हो और जहां वफादारी नोटों की खनक और सत्ता की धमक से सहम रही हो वहां एक-एक विधायक का वोट सरकार का बनना और बिगड़ना तय कर सकता है.
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आइये जरा इसे तफ्सील से समझते हैं.

एनसीपी के ‘बागी’ अजित पवार ने जब पार्टी अध्यक्ष शरद पवार की नाफरमानी करते हुए बीजेपी को समर्थन की घोषणा की तो वो विधायक दल के लीडर थे. यानी विधानसभा में एनसीपी के जो 54 विधायक चुनकर गए हैं अजित पवार उनके नेता थे.

23 नवंबर को शरद पवार ने अजित पवार की छुट्टी करते हुए जयंत पाटिल को विधायक दल का नेता बना दिया.

इससे ये सवाल खड़ा हो गया कि फ्लोर टेस्ट के वक्त एनसीपी के 54 विधायक अजित पवार का आदेश मानेंगे या जयंत पाटिल का.

तकनीकी तौर पर विधायक दल के नेता को व्हिप जारी करने का अधिकार होता है और व्हिप का उल्लंघन करने वाले विधायक अपनी विधायकी गंवा सकते हैं. मतलब ये कि अगर पवार की चली तो एनसीपी विधायकों के वोट बीजेपी के पक्ष में जा सकते हैं और पाटिल की चली तो शिवसेना-एनसीपी के पक्ष में.

यानी फ्लोर टेस्ट का भविष्य बहुत कुछ इस बात पर टिका है कि एनसीपी का विधायक दल का नेता किसे माना जाता है और माने जाने का ये ‘सर्टिफिकेट’ मिलेगा प्रो-टेम स्पीकर से.

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प्रो-टेम स्पीकर के अधिकार

इसके अलावा भी कई ऐसे संवेदनशील फैसले हैं जो प्रो-टेम स्पीकर के विवेक पर निर्भर करते हैं और जो नतीजों को बदलने की कुव्वत रखते हैं.

मसलन, फ्लोर टेस्ट का फैसला ध्वनि मत से होगा या डिविजन से?

ध्वनि मत में स्पीकर किसी भी मसले का फैसला विधायकों से मुंहजुबानी पूछकर करते हैं जबकि डिविजन में बाकायदा वोटिंग होती है जिसकी गिनती के आधार पर फैसला होता है.

जब एक-एक वोट जीना-मरना तय कर रहा हो तो ध्वनि मत जरा ‘खतरनाक’ हो सकता है. इसलिए शायद सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के वकीलों ने अपील की है कि

  • फ्लोर-टेस्ट ध्वनि मत से ना होकर डिविजन से हो
  • पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग हो

शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस ये भी चाहती है कि कोर्ट फ्लोर टेस्ट जल्द से जल्द करवाने का आदेश दे ताकि हॉर्सट्रेडिंग यानी विधायकों की खरीद-फरोख्त को रोकी जा सके.

तो अब आप समझ रहे होंगे की महाराष्ट्र के मौजूदा हालात में प्रो-टेम स्पीकर कितना अहम हो जाता है.

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महाराष्ट्र विधानसभा का नंबर गेम

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कैसे चुना जाता है प्रो-टेम स्पीकर?

संविधान के आर्टिकल 180(1) के तहत प्रो-टेम स्पीकर के चुनाव का हक राज्यपाल के पास होता है. और, आमतौर पर विधानसभा के सीनियर मोस्ट यानी सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रो-टेम स्पीकर के तौर पर चुना जाता है लेकिन ये नियम नहीं सिर्फ एक परंपरा है और ऐसी दर्जनों मिसालें हैं जब इस परंपरा को टूटते देखा गया है.

हालिया इतिहास की बात करें तो साल 2018 में कर्नाटक के गवर्नर वजूभाई वाला ने कांग्रेस के आरवी देशपांडे की वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए बीजेपी के केजी बोपैया को प्रो-टेम स्पीकर बनाया था.

इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने भी मानने से इनकार कर दिया था.

लेकिन जब आधी रात के वक्त राष्ट्रपति शासन हटाने और सुबह-सवेरे सीएम और डिप्टी सीएम की शपथ करवाने के फैसलों को लेकर राज्यपाल पहले ही आरोपों के घेरे में हों तो उनके प्रो-टेम स्पीकर चुनने के फैसले पर शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस भला क्यों यकीन करने लगीं!

तो सांसे थाम कर रहिए क्योंकि महाराष्ट्र के सस्पेंस थ्रिलर का क्लाइमेक्स अभी बाकी है.

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