लॉकडाउन के बावजूद महानगरों से चलकर प्रवासी मजदूर अब अपने घरों को पहुंच रहे हैं. दिल्ली, जयपुर, भोपाल, इंदौर जैसे महानगरों से यात्रा करते हुए ये मजदूर अब अपने घर पहुंच रहे हैं. पूरा सफर उन्होंने पैदल ही तय किया हो ऐसा नहीं है. रास्ते भर में अलग-अलग सरकारों और आम लोगों ने इनमें से कई मजदूरों की मदद भी की है. मजदूरों का सफर कैसा रहा इसका जायजा लेने हम पहुंचे मध्य प्रदेश के दमोह जिले में.
मध्य प्रदेश के ज्यादातर जिलों से बड़ी तादाद में मजदूर महानगरों में मजदूरी करने जाते हैं. मध्य प्रदेश के दमोह जिले के हिनौती गांव के रहने वाले अनिल दिल्ली में चुनाई का काम कर रहे थे. न्होंने बताया कि लॉकडाउन की वजह से अब वहां काम नहीं रह गय, इसलिए मजबूरन उन्हें वापस आना पड़ा. दिहाड़ी कमाने वाले अनिल 4 दिन पहले दिल्ली से चले थे और 31 मार्च को जब हम उनसे मिले तो उन्हें अपने गांव तक पहुंने के लिए करीब डेढ़ घंटे का सफर और तय करना था. अनिल ने बताया -
गुरुग्राम हम अपनी टोली के साथ थोड़ी देर तक पैदल चले. फिर दिल्ली आने के लिए यातायात का साधन मिला. इसके बाद फिर थोड़ा पैदल चले, थोड़ी देर में बदरपुर बॉर्डर तक के लिए बस मिल गई. फिर वहां से फरीदाबाद के लिए साधन मिला, हम लोग फिर से पैदल चल दिए. फिर वहां से ग्वालियर तक के लिए साधन मिला. इसके बाद हम लोग ऐसे ही करते-करते दमोह तक पहुंचे हैं.अनिल, प्रवासी मजदूर
रास्ते में प्रशासन और लोग कर रहे मदद
अनिल ने बताया कि रास्ते में आम लोग और प्रशासन खाने-पीने की व्यवस्था कर रहे हैं. इन्हीं की टोली की एक साथी सरोज ने हमें बताया कि वो पिछले कई दिनों से पैदल चल रही हैं. रास्ते में कुछ-कुछ यातायात की सुविधा मिली लेकिन उनको काफी चलना पड़ा.
अपना पैर दिखाते हुए उन्होंने बताया कि इतना चल चुके हैं कि पैरों में छाले पड़ गए हैं. दिल्ली से लौटने का कारण पूछने पर सरोज ने बताया कि दिल्ली में वो जहां मजदूरी के लिए जाया करती थीं, वहां काम बंद हो गया. ऐसे में अब उनके पास एक ही विकल्प बचता था, कि वो अपने गांव को चल दें. उन्होंने बताया कि जहां काम करती थीं वहां पर उनका पेमेंट भी लटका पड़ा है.
सिर्फ तापमान का टेस्ट करा रहा स्थानीय प्रशासन
प्रवासी मजदूरों ने बताया कि स्थानीय प्रशासन ने उनका मेडिकल टेस्ट किया है. लेकिन जब हमने उनके मेडिकल चेकअप का पर्चा देखा तो उसमें सिर्फ तापमान के बारे में जानकारी थी और डॉक्टर के हस्ताक्षर थे. साफ है कि कोरोनावायरस जांच के लिए सिर्फ तापमान का टेस्ट नाकाफी है. लेकिन प्रवासी मजदूर अनिल ने बताया कि इस मेडिकल टेस्ट के पर्चे का महत्व ये है कि इसी के आधार पर हमें अपने गावों में घुसने को मिलेगा.
स्थानीय प्रशासन में जिला दमोह में एसडीएम के पद पर तैनात रवींद्र चौकसे ने बताया,
जो मजदूर महानगरों से आए हैं उनको उनके घरों तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है. प्रशासन ने इन मजदूरों के लिए बसों का इंतजाम किया है जिससे कि वो अपने-अपने अपने गांव पहुंच सकें.रवींद्र चौकसे, दमोह
बसों में बैठकर मजदूर अपने घरों को जा रहे हैं. लेकिन प्रशासन का मेडिकल जांच में ढीलापन कोरोनावायरस की बीमारी के खतरे को और बढ़ा सकता है. ये दिहाड़ी मजदूर मजबूरी में अपने घरों को तो आए हैं लेकिन अब वो अपना गुजर-बसर कैसे करें, ये ऐसा सवाल जिसका किसी के पास ठीक-ठीक जवाब नहीं है. हम यही उम्मीद करते हैं कि फिर से पुराने दिन वापस लौटेंगे.
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