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बिहार: महंगाई की सबपर मार, चाहे ग्राहक हो या दुकानदार

महंगाई की मार और जीएसटी में होने वाले बदलाव पर पटना के लोगों का दर्द

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साल 2011-12 में एक फिल्म आई थी. फिल्म का नाम था 'पीपली लाइव'. उस फिल्म का एक गीत तब बहुत चर्चा में रहा. गीत के बोल थे- सखी सैंया तो खूबै कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है. उस फिल्म के रिलीज होने के दो-तीन सालों के बाद लोकसभा के चुनाव हुए. तब के मुख्य विपक्षी दल ने बड़े-बड़े नारे देश भर में चस्पा करवाए थे- 'बहुत हुई महंगाई (inflation) की मार, अबकी बार मोदी सरकार'. नारे का असर भी हुआ और सरकार भी बदल गई, लेकिन महंगाई है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही. डॉलर की तुलना में रुपया गिरता ही जा रहा है. उस पर से जीएसटी में होने वाली फेरबदल.

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महंगाई की मार और आए दिन जीएसटी में होने वाले बदलाव पर पटना के दलदली इलाके में किराना सामान की होलसेल दुकानदार नवोदिता कहती हैं,

"जैसे ही चीजों का रेट बढ़ता है, कस्टमर दस दिन और गायब हो जाते हैं. कस्टमर तो हैं ही नहीं, पता नहीं वो क्या खा रहे हैं? महंगाई की वजह से- मगर किसी चीज का रेट बढ़ता है तो कस्टमर को समझाना मुश्किल हो जाता है कि इसे हमने नहीं बढ़ाया है. ये सरकार बढ़ाई है या फिर जैसे भी बढ़ा है. हम लोग खुद ही महंगा खरीदे हैं, तो हम लोग को दो-चार रुपया रेट बढ़ाना पड़ा है. लोग पहले का रेट याद करते हैं कि ऐसे ले गए थे. कस्टमर लेने के बजाय लौट जाते हैं. जब तक कि वे दस काउंटर घूमें नहीं. अगर पुराना स्टॉक मिल गया तो लगेगा कि हम अच्छे दुकानदार नहीं हैं. लोगों से ज्यादा पैसा ले रहे हैं."

यहां हम आपको बताते चलें कि बढ़ती महंगाई और जीएसटी में फेरबदल के बीच केन्द्र सरकार में मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खासा वायरल हो रहा है. लोगबाग उनके वीडियो पर कटाक्ष कर रहे हैं कि कैसे उन्हें 15 रुपये का भुट्टा महंगा लग रहा. वहीं आम जनता किस प्रकार महंगाई से त्रस्त है.

बढ़ती महंगाई के अनुपात में कमाई के बढ़ने या घटने के सवाल पर बिस्कोमान से रिटायर्ड कर्मचारी रामचंद्र सिंह कहते हैं, "कमाई के अनुपात में महंगाई ज्यादे बढ़ गई है. महंगाई बढ़ने का मतलब है कि आम जनता पर सीधा इफेक्ट पड़ रहा है. क्योंकि सब आदमी सब्जी खाते हैं. दाल-रोटी खाते हैं. उसी पर ज़िंदा रहते हैं. एक गरीब से लेकर मिडिल क्लास तक. तो स्थिति यह है कि महंगाई की मार जनता झेल रही है, और ऊपर से भ्रष्टाचार की मार."

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क्या कह रही गृहणियां?

रसोई और घर को मैनेज करने में आ रही मुश्किलों को लेकर अंटा घाट (थोक सब्जी मंडी) में सब्जी खरीदने आई परवीन कौर से सवाल किए तो उन्होंने कहा, "बहुत मुश्किल है, इसीलिए तो हमलोग अंटा घाट आते हैं. हम बाजार में जाते नहीं क्योंकि वहां सब्जियां और महंगी हैं. यहां से भी महंगी, तो हमलोग सोचते हैं कि चाहे जो बचत हो जाए. केवल अपने खर्चे को मेंटेन करने के लिए यहां आना पड़ता है."

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हालांकि अंटा घाट में ही एक और गृहणी रेणु शरण बढ़ती महंगाई के सवाल पर हमसे कहती हैं, "देखिए हमारे लिए दोनों चीजें बराबर है. महंगाई बढ़ी है तो कमाई भी बढ़ी है. परेशानी तो है ही. हमें भी थोड़ी तो दिक्कत हो रही है, लेकिन ऐसी कोई दिक्कत नहीं कि इसे कोई मुद्दा बनाया जाए.

मीडिया से भी खफा लोग

वैसे तो मीडिया का मूल काम आम जन की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखना है, लेकिन इन दिनों परिस्थितियां जरा उलट गई हैं. जब महंगाई और जीएसटी में फेरबदल को लेकर हमने अंटा घाट में ही सब्जी खरीद रहे सिद्धार्थ से बात की तो उन्होंने कहा,

"देखिए मीडियम परिवार के लोगों के लिए तो काफी मुश्किल है. आने वाला समय तो और कठिन होने वाला है. सरकार का सभी लोग यूनिटी में विरोध करें. केंद्र सरकार कभी रेलवे तो कभी कुछ और बेच रही है. युवा वर्ग खासतौर पर प्रभावित हो रहा है."

वहीं जब हमने उनसे मेनस्ट्रीम मीडिया में कहीं इसका जिक्र न होने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा, सब मैनेज है. सारा मैनेज है. मीडिया बिका हुआ है. सारे लोग मोदी गवर्नमेंट के साथ है."

बढ़ती महंगाई के बीच न सिर्फ खाद्य पदार्थ बल्कि और भी दूसरी चीजों को लेकर लोग परेशान हैं. अंटा घाट में ही सब्जी खरीद रहे प्रवेश कुमार सिंह से वैसे तो हम खाद्य पदार्थों को लेकर बात कर रहे थे लेकिन वे सूबे के भीतर बिजली बिल का जिक्र करने लगे. साथ ही यह भी बताने लगे के कोविड के संक्रमण और उसके रोकथाम के बीच कैसे बच्चों को मोबाइल और डेटा देना एक अतिरिक्त खर्चा बनता जा रहा है.

हालांकि लोगों की इन तमाम शिकायतों के बीच डॉलर की तुलना मे रुपये की कीमत लगभग 80 रुपये पहुंच चुकी है. जनता की थाली से दाल लगभग गायब होती जा रही है, लेकिन देश के टीवी चैनल्स में दिन-रात होने वाली बहसें देखें तो- देश में सब चंगा सी.

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