वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
राम मंदिर, राफेल और बेरोजगारी के मुद्दे के बीच जैसे ही एयर स्ट्राइक हुई, तो माहौल बदल गया. इस बदले हुए माहौल से बीजेपी गदगद है, क्योंकि पार्टी को ऐसा लगता है कि ये माहौल पूरी तरह उनका है.
उसे यकीन हो चुका है कि पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी इस बार भी कमाल करेगी, खासकर यूपी में तो ज्यादा ही आत्मविश्वास है. सूत्र बताते हैं कि इसी कॉन्फिडेंस में यूपी के दो दर्जन से ज्यादा सांसदों और नेताओं के टिकट काटने की तैयार की गयी है. सुगबुगाहट मिलते ही सांसदों ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जिसकी उम्मीद कतई नहीं थी.
सूत्रों की मानें, तो जिनका टिकट कट सकता है उनमें:
- उन्नाव से साक्षी महाराज हरदोई के अंशुल वर्मा
- मुरादाबाद के सर्वेश सिंह
- शाहजहांपुर से सांसद कृष्णा राज
- खीरी से अजय मिश्रा टेनी
- धौरहरा से रेखा वर्मा
- बागपत से सत्यपाल सिंह
- देवरिया से कलराज मिश्रा
- मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल
- इटावा से अशोक दोहरे
- नगीना से यशवंत सिंह
- सहारनपुर से राघव लखनपाल
इसके अलावा घोसी से हरिनारायण राजभर, सोनभद्र से छोटेलाल खरवार, बलिया से भरत सिंह मछलीशहर से रामचरित्र निषाद और जौनपुर से सांसद केपी सिंह का टिकट कट सकता है
अब आप सोचिए कि 2014 के बाद बीजेपी में जहां लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता पार्टी को सिर्फ सुन रहे हैं, बोलते कम ही सुने गए, वहां दूसरे नेताओं और सांसदों की क्या हैसियत है. फिर भी अगर किसी ने हिम्मत जुटाई है, तो इसकी 2 बड़ी वजह हो सकती है. उसकी हैसियत शीर्ष नेतृत्व को टक्कर देने की हो गई है? या फिर शीर्ष नेतृत्व की ताकत ढलान पर है?
वैसे बीजेपी लोकतांत्रिक पार्टी है, लेकिन सब जानते है कि 2014 के बाद बीजेपी में अगर किसी की चलती है, तो वो सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले गृहमंत्री राजनाथ सिंह की भी इस दौरान किसी बड़े फैसले में कोई अहमियत नजर नहीं आई. कुछ सालों की बात करें, तो हमें उनका एक ही बड़ा फैसला याद है.
जब उन्होंने 2013 में अपने अध्यक्षीय काल में आडवाणी जैसे बड़े नेताओं से बैर लेते हुए मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रेजेंट किया था, उसके बाद तो यही चर्चा है कि सरकार में मोदी और संगठन में अमित शाह के इशारों के बगैर कुछ भी नहीं होता.
टीवी सर्वे ने दी सांसदों को बगावत की ताकत!
ऐसे में सांसद बगावत पर उतरे हैं, तो कोई न कोई तो बेस होगा ही. अब हुआ ऐसा कि एयर स्ट्राइक ने देश में बीजेपी का माहौल बना दिया है, तो दूसरी तरफ उसके बाद हुए सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि एनडीए और बीजेपी का प्रदर्शन 2014 जैसा नहीं रहेगा. सर्वे को आधार मानें, तो बीजेपी के लिए सरकार बनाना आसान नहीं होगा. इस रिपोर्ट ने सांसदों को अपनी बात रखने की ताकत दे दी है, जिसे बगावत भी कह सकते हैं
इंटर्नल सर्वे में दो दर्जन सांसद फिसड्डी
यूपी में इस बार बीजेपी का 74 सीटों का लक्ष्य है. जिसे पूरा करने के लिए वो टिकटों में फेरबदल करना चाहती है, बीजेपी अपने के दो दर्जन से अधिक सांसदों का पत्ता काटने वाला है. पार्टी के आंतरिक सर्वे में ये सांसद फिसड्डी साबित हुए हैं. इन सांसदों का रिपोर्ट कार्ड पार्टी आलाकमान की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है.
टिकट को लेकर बागी होते सांसद
2014 से बीजेपी का विजय रथ जो चलना शुरू हुआ, तो 2017 तक दिल्ली और बिहार के अलावा सभी राज्यों में विधानसभाओं में आम चुनाव जैसा ही प्रदर्शन किया. मोदी और शाह की ताबड़तोड़ बैटिंग से बीजेपी देश में सबसे ज्यादा राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टी बन गई, लिहाजा पार्टी के अंदर और बाहर विपक्षियों की बोलती बंद थी.
जीत के गुमान में कई कड़े फैसले सामने आए, जिसमें एक था 75 साल के ऊपर के नेता चुनाव नहीं लड़ेंगे, बड़े पद पर नहीं रहेंगे, जिसमें कलराज मिश्रा मंत्री पद छोड़े और मुंह तक नहीं खोले. लेकिन अब हालात बदले-बदले से दिख रहे हैं.
हो सकता है कि वोटरों में बीजेपी का अपने आप को मजबूत आंकना सही हो, पर पार्टी में धमक कमजोर पड़ रही है, जिसके हालिया उदाहरण उन्नाव के सांसद साक्षी महराज हैं, जिन्होंने संगठन को पत्र लिख कहा है कि अगर उनका टिकट कटा, तो 5 लाख वोट से हारेगी बीजेपी. सिर्फ यहीं नहीं, सूत्र बताते हैं कि प्रयागराज के सांसद श्यामाचरण गुप्ता ने भी चेतावनी दे दी है
अब जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आएंगी, बीजेपी के बागी मुखर होते जाएंगे. जानकार बता रहे हैं कि इस बार बीजेपी का सामना सिर्फ एसपी-बीएसपी के मजबूत गठबंधन और कांग्रेस से नहीं होना है, बल्कि उसके रास्ते में बागी सांसद भी कांटे बोने को तैयार हैं. कुल मिलाकर यूपी में बीजेपी की डगर मुश्किल में नजर आ रही है.
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