हर साल जनवरी से मई तक विलुप्त श्रेणी के कछुए चेन्नई के समुद्री तट की ओर आते हैं. यहां वो अंडे देते हैं लेकिन यहां मौजूद गैरकानूनी नावें, ट्रॉलर, जिल नेट और प्लास्टिक उनकी मौतों की वजह बन जाता है.
90 के दशक में पूरे सीजन में 20-30 कछुओं की ही मौत होती थी लेकिन इस साल अभी तक यहां 132 कछुओं की मौत हो चुकी है.
वन्यजीव संरक्षणविद (Wildlife) निशांत बताते हैं कि चेन्नई के समुद्र तट पर पिछले साल से बहुत अधिक कछुओं की मौत हुई है. 2015 में उन्हें पट्टनिकम्बकम से मरीना बीच की ओर एक ही इलाके में 26 मरे हुए कछुए मिले थे.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच सालों में कम से कम 1000 कछुए अपनी जान गंवा चुके हैं.
कछुओं के अंडे देने की रवायत मांग रही है मदद
लाखों साल से कछुए यहां वीरान समुद्री तटों पर अंडे देते आ रहे हैं. एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट श्रवण कृष्णन ने बताया कि एक रात वो उस ट्रैक की तलाश में निकले, जिसमें कछुए अंडे देते हैं. उन्होंने अंडे इकट्ठे किए और अपनी हैचरी में डाल दिए. जब उनमें से कछुए निकल आए तो उन्होंने सारे कछुए समुद्र में छोड़ दिए.
जब शिशु कछुए अंडे से निकलते हैं तो वे चमकते क्षितिज की ओर आकर्षित होते हैं. समुद्र का पानी सितारों और चांद की रोशनी से चमकता है. इसकी चमक से ये समुद्र की ओर आकर्षित होते हैं. लेकिन अब समुद्री तट बाजार के हवाले हो चुके हैं.श्रवण कृष्णन, एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट
श्रवण ने कहा कि अब समुंद्र तट पर काफी स्ट्रीट लाइटें होती हैं. जिससे छोटे कछुए समुद्र की ओर जाने के बजाय तट की ओर से चले जाते हैं. फिल वहां उन्हें कौए और केकड़े खा जाते हैं. पानी की कमी से भी वे मर जाते हैं.
समुद्र तट के 5 मील के भीतर तक मशीनी नावों से मछली पकड़ना बैन है. लेकिन इस नियम को सख्ती से लागू नहीं किया जा रहा है. मछली पालन मंत्रालय आंखें बंद किए हुए है. और यहां समुद्र का शोषण हो रहा है.
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