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महाराष्ट्र में फडणवीस ने कैसे लिखी जीत की स्क्रिप्ट

फडणवीस की सत्ता में वापसी कई मायनों में ऐतिहासिक है.

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस. किशोर अवस्था में ABVP और युवा मोर्चा के सदस्य. 21 साल की उम्र में कार्पोरेटरऔर 27 की उम्र में बने नागपुर के सबसे युवा मेयर.

पिछले कुछ दशकों में राज्य के कद्दावर नेता के तौर पर अपनी पहचान पक्की कर चुके नागपुर के ये पक्के RSS मैन, महाराष्ट्र में BJP की जबरदस्त जीत के बाद दोबारा सत्ता में वापसी कर रहे हैं. BJP ने 2014 के 122 सीटों के मुकाबले 105 सीटें जीतीं जबकि सेना ने 63 के मुकाबले इस बार 56 सीटों पर कब्जा किया.

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हालांकि 2014 के मुकाबले इस बार BJP की सीटें कम हुई हैं, फिर भी फडणवीस की सत्ता में वापसी कई मायनों में ऐतिहासिक है.

फडणवीस मराठा प्रभुत्व राजनीति वाले राज्य महाराष्ट्र के दूसरे ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने हैं. फडणवीस वो दूसरे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने महाराष्ट्र में 5 साल का कार्यकाल पूरा किया और एकमात्र मुख्यमंत्री जिन्होंने NDA की लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी करवाई.

पार्टी और राज्य में देवेंद्र फडणवीस के इस उभार को सहयोगियों और प्रतिद्वंद्वियों, दोनों की ओर से तारीफ मिलती रही है.

फडणवीस आज जहां हैं, उस मुकाम पर वो कैसे पहुंचे?

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वोट में तब्दील नहीं हो सका मराठा आरक्षण

राज्य में खेती, सहकारिता और राजनीति में अपना दबदबा रखने वाले मराठा कई सालों से आरक्षण की मांग कर रहे थे. मराठा समुदाय के लाखों लोग इस मांग के साथ सड़कों पर उतरे और कई बार प्रदर्शन हुए जिसके बाद फडणवीस सरकार ने शिक्षा और नौकरियों में 16% आरक्षण का बिल पास किया. मराठाओं की नजर में फडणवीस एक ऐसे ब्राह्मण सीएम के तौर पर उभरे, जिसने उन्हें वो हक दिलाया जो पिछले मराठा सीएम भी नहीं दे सके थे. इसके बावजूद ऐसा लगता है कि ये जज्बात वोट में नहीं बदले और मराठवाड़ा, उत्तर और पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे मराठा इलाकों में BJP का प्रदर्शन खराब रहा.

दूसरी तरफ, शरद पवार की NCP ने इन इलाकों में बेहतर प्रदर्शन किया और सभी बड़े नेता जीत गए.

सेना पर कसी लगाम

बात-बात पर तकरार करने वाले सहयोगी दल शिवसेना ने BMC चुनाव तक अलग से लड़े, लेकिन ऐतिहासिक जनादेश में BJP को सेना से सिर्फ एक सीट कम मिली. लेकिन फडणवीस ने BMC की बागडोर को आसानी से हाथ से जाने दिया.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, शिवसेना को गठबंधन के लिए मनाने के लिए अमित शाह को उतरना पड़ा था लेकिन विधानसभा चुनाव आने तक, फडणवीस ने अपने दम पर न सिर्फ शिवसेना के साथ सीट-बंटवारे का फार्मूला तय किया बल्कि शिवसेना को अब तक की सीटों की सबसे कम संख्या पर लड़ने की स्थिति तक ले आए.

BJP के ‘बिग ब्रदर’ की स्थिति बरकरार रखने का श्रेय फडणवीस को जाता है लेकिन BJP की सीटों में कमी के बाद, शिवसेना ने 50-50 फॉर्मूला का जिक्र शुरू कर दिया है और उसकी नजर मुख्यमंत्री या उप-मुख्यमंत्री के पद पर है. नतीजों के तुरंत बाद दोनों पार्टियों के बीच खींचतान साफ है.

BJP में बागियों के असर को कम करना

2014 में, नितिन गडकरी, एकनाथ खड़से और गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे भी मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में थीं हालांकि मोदी के मंत्रिमंडल में गडकरी की नियुक्ति ने एक टकराव टाल दिया लेकिन पंकजा मुंडे ने कई सार्वजनिक मौकों पर अपनी निराशा जताई.

2015 में, पंकजा ने एक कमेंट दिया कि वो ‘लोगों की नजरों में’ सीएम बनने से खुश हैं.

अब आते हैं, 2016 में हुए मंत्रिमंडल फेरबदल पर, पंकजा को 2 महत्वपूर्ण विभागों- जल संरक्षण और रोजगार गारंटी योजना से हटा दिया गया. जहां तक एकनाथ खड़से का सवाल है, पार्टी की नींव रखने वाले सबसे पुराने नेताओं में से एक और जलगांव से 6 बार विधायक रह चुके इस कद्दावर नेता को भी इस बार टिकट नहीं दिया गया.

वजह चाहे जो भी हो, व्यक्तिगत हो या राजनीतिक, पार्टी के भीतर विरोधियों के पतन ने फडणवीस को महाराष्ट्र BJP के सुप्रीम पावर सेंटर के तौर पर उभारा.

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कृषि संकट को खत्म करने का ‘दावा’

जी हां ‘दावा’, क्योंकि RTI से मिली जानकारी के मुताबिक, पिछले साढे 4 साल में राज्य में 14 हजार किसानों ने आत्महत्या की है. 2017 में किसानों के लिए 34 हजार करोड़ रुपये की कर्जमाफी के बाद भी 2018 में #KisanLongMarch (किसान लॉन्ग मार्च) निकला, जिसमें पूरे प्रदेश के किसान पैदल ही मुंबई तक पहुंचे और ये खबर सुर्खियों में रहा.

फडणवीस ने उनकी ज्यादातर मांगों को तो मान लिया, लेकिन उनके लागू होने पर सवालिया निशान है.

हालांकि, कमजोर विपक्ष और “ऐतिहासिक योजनाओं” को लेकर फडणवीस की शातिर मार्केटिंग से इस मुद्दे की बिल्कुल अलग ही तस्वीर पेश हुई.

फडणवीस ने मोदी और अमित शाह के अंदाज में अपना चुनाव प्रचार शुरू किया और एक समझदार प्रचारक से ऊपर उठकर उन्होंने खुलेआम कांग्रेस पर हमला बोलना शुरू किया साथ ही राष्ट्रवाद और आर्टिकल 370 जैसे मुद्दों का भी इस्तेमाल किया लेकिन नतीजों पर गौर फरमाएं, तो ऐसा लगता है कि ये रणनीति सही से काम नहीं कर पाई और खासतौर पर मराठवाड़ा और ग्रामीण इलाकों में लोगों ने इसे नकारा है.

फडणवीस की वापसी तो हुई है लेकिन चुनौतियां अब और भी बड़ी हैं.

शिवसेना पहले से ज्यादा आक्रामक होती दिख रही है. फडणवीस के बढ़ते कद के साथ ही सीटों के नुकसान की जवाबदेही भी उन पर आई है, और अब पार्टी में ही मौजूद विरोधियों के बगावती सुरों को संभालना और मुश्किल हो सकता है.

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