“मैं दिल्ली से आया हूं. मुझे इस सरकारी स्कूल के आइसोलेशन सेंटर में रखा गया है, बहुत परेशानी है यहां. कोई बेड नहीं मिला है. जमीन पर सो रहे हैं. कीड़े-मकौड़े हैं नीचे.”
ये बातें दिल्ली से बिहार के दरभंगा लौटे विवेक (बदला हुआ नाम) कहते हैं.
कोरोना वायरस को रोकने के लिए पूरा देश लॉकडाउन में है. लाखों मजदूर और कामगार शहर छोड़ अपने गांव की तरफ लौट रहे हैं. इसे देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाहर से आ रहे प्रवासियों के लिए हर जिले में सरकारी स्कूल और पंचायत भवन में आइसोलेशन सेंटर बनाने का आदेश दिया है.
विवेक और उनके साथी दरभंगा के हायाघाट में बने एक आइसोलेशन सेंटर में रुके हुए हैं. लॉकडाउन के आदेश के बाद विवेक अपने कुछ साथियों के साथ दिल्ली से अपने गांव के लिए निकले थे.
विवेक बताते हैं,
“हम लोगों को 3 दिन में एक बार खाने को मिला था. बाकी वक्त हमने अपने घर से खाना मंगाया था. यहां पंखा तक नहीं है, जब बोलते हैं तो कहा जाता है लग जाएगा. कोई हमें पूछने नहीं आता है.”
कहीं बिस्तर, तो कहीं खाने को नहीं
बिहार के मिथिला इलाके में एक और जिला है सुपौल, जहां के एक आइसोलेशन सेंटर का हाल भी सरकारी दावों पर कई सवाल उठा रहा है.
इस सेंटर में रुके हुए देवलाल पाल बताते हैं कि वो भी दिल्ली से आए हैं. वो कहते हैं,
“अपने साधन से आए हैं. हम लोग घर गए थे, फिर वहां से हमें आइसोलेशन सेंटर लाया गया. अपनी सुविधा का सामान लाए हुए हैं. खान-पीने की सुविधा दे रहे हैं मुखिया जी. बाकी सब ओढ़ने का, बिछाने का, अपने घर से मंगाकर इस्तेमाल कर रहे हैं.”
नीतीश कुमार ने दिए 100 करोड़ रुपए
बता दें कि लॉकडाउन के मद्देनजर सीएम नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री राहत कोष से 100 करोड़ रुपये जारी किए हैं. इसके तहत बिहार के बाहर फंसे और बिहार आए प्रवासियों के लिए राहत का सामान मुहैया कराया जाएगा. इस आइसोलेशन सेंटर का मकसद है कि बाहर से आ रहे लोगों को उनके घरों में जाने से पहले रोककर, उनकी जांच हो और उन्हें 14 दिनों के लिए क्वॉरन्टीन में रखा जाए, ताकि किसी भी तरह से कोरोना वायरस लोगों में फैल न सके. लेकिन सरकारी दावे जमीन पर खोखले नजर आ रहे हैं.
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