वीडियो प्रोड्यूसर: शोहिनी बोस, मौसमी सिंह
कैमरापर्सन: शिव कुमार मौर्या
वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम/पुनीत भाटिया
ये जो इंडिया है ना... यहां कोविड की दूसरी लहर संभलने का नाम नहीं ले रही है. ऑक्सीजन-ICU बेड्स की कमी, सरकार नाकाम... केवल यही सब दिख रहा है. श्मशान में जलती चिताएं बताती हैं कि अब रोज ढाई हजार से ज्यादा मौतें हो रही हैं. लेकिन क्या कोई सुन रहा है? 23 अप्रैल को राजकोट के 'संदेश' अखबार में 20 पन्नों में 8 शोक संदेश से भरे हुए थे. लेकिन क्या सरकार तक संदेश पहुंच रहा है?
कोविड की दूसरी लहर को ढंग से न संभाल पाने के लिए आज कल सरकार की सबसे कड़ी आलोचना देश की अदालतें कर रही हैं. देखिए देश की अदालतें सरकार की परफॉर्मेंस के बारे में क्या कह रही हैं?
19 अप्रैल को, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को कोविड को लेकर तैयार न होने पर फटकार लगाते हुए कहा, "ये शर्म की बात है कि सरकार दूसरी लहगर के परीणाम को जानती थी, लेकिन फिर भी पहले से योजना नहीं बनई गई." जस्टिस अजीत कुमार और सिद्धार्थ वर्मा ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को सीधे ये पूछा, "एक साल की महामारी के अनुभव के बाद भी योगी सरकार इसका सामना करने में फेल क्यों हुई?" कोर्ट ने पंचायत चुनाव कराने पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि "ये हास्यपद है."
22 अप्रैल को, कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एएस ओका ने राज्य सरकार से ऑक्सीजन, रेमडेसिविर और अस्पतालों में बेड्स को लेकर सवाल उठाया है और कहा,
21 अप्रैल को, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने राज्य और केंद्र सरकार को विदर्भ में रेमडेसिविर की 10 हजार यूनिट सप्लाई करने के ऑर्डर को पूरा न करने पर कहा, "अगर आप खुद शर्मिंदा नहीं हैं, तो हम इस बुरे समाज का हिस्सा होने पर शर्मिंदा हैं. आप मरीजों की उपेक्षा और अनदेखी कर रहे हैं. हम आपको समाधान देते हैं, आप उसका पालनम नहीं करते. न ही आप कोर्ट को कोई समाधान देते हैं. ये किस तरह की बकवास चल रही है."
16 अप्रैल को, चीफ जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता में गुजरात हाईकोर्ट की बेंच ने राज्य सरकार से बढ़ते केस और मौत के आंकड़ों को छुपाने की बात को लेकर कहा, "असली तस्वीर को छिपाना, सही डेटा को दबाना, जनता के बीच और भी गंभीर समस्याएं पैदा करेंगी. जैसे कि खौफ और भरोसा खो देना."
क्या अदालत को ऐसी सरल बात किसी को समझाने की जरूरत है? नहीं. और सरकार कोविड डेटा क्यों छिपाएगी? केवल अपनी नामकामी को छिपाने के लिए. और क्या आप ऐसी सरकार पर भरोसा करेंगे? नहीं. और अगर ऐसे नाजुक वक्त में भरोसा टूटता है तो फिर क्या बचता है?
21 अप्रैल को, दिल्ली के मैक्स अस्पताल ने दिल्ली हाईकोर्ट से मदद मांगी. उनके पास 262 कोविड मरीजों के लिए सिर्फ 4 घंटे का ऑक्सीजन बचा था. फिर केंद्र सराकर की तैयारियों में कमी पर कोर्ट ने कहा, "सरकार जमनी हकीकत से इतनी बेखबर क्यों है? हम लोगों को मरने नहीं दे सकते!"
22 अप्रैल को, कलकत्ता हाईकोर्ट ने कोविड की दूसरी लहर के बीच चुनाव आयोग के चुनाव कराने को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा, "चुनाव आयोग के पास एक्शन लेने का अधिकार है, लेकिन वो क्या कर रहा है? केवल सर्कुलर पास कर के, बाकी लोगों पर छोड़ रहा है."
इसी बीच 22 अप्रैल को, अपने कार्यकाल के आखिरी दिन देश के चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि ऑक्सीजन और दवाइयों की सप्लाई, वैक्सीनेशन और लॉकडाउन से जुड़े कोविड केस की सुनवाई जो अलग-अलग हाईकोर्ट में हो रही है, उससे कंफ्यूजन हो सकता है, इसलिए उन मामलों को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर कर देना चाहिए. लेकिन कई वरिष्ठ वकील दो वजहों से इसकी आलोचना कर रहे हैं- पहला, राज्य के हाईकोर्ट स्थानीय परिस्थितियों को बेहतर समझते हैं, और दूसरा, 2020 के कोविड से जुड़े गंभीर मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट अब तक काफी सुस्त रहा है. और इस राय से हम भी सहमत हैं.
और आखिर में, मद्रास हाईकोर्ट की 26 अप्रैल को आई ये टिप्पणी पर गौर करते हैं-
सच कहें तो, ये जो इंडिया है ना... इस विकट परिस्थिति में अगर देश के अलग-अलग हाईकोर्ट सबसे प्रभावी तरीके से निगरानी कर रहे हैं, अगर हमारे हाईकोर्ट हमारे जीवन के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो उन्हें कम नहीं, और ताकत मिले.
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