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कर्ज, गरीबी और झुंझलाहट से भरी किसानों की ये कहानियां कौन सुनेगा?

मोदी सरकार से किसानों का सवाल- ‘कहा है अच्छे दिन?’

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29-30 नवंबर को किसान क्रांति मार्च में हिस्सा लेने आए देशभर के किसानों का जमावड़ा दिल्ली के रामलीला मैदान में लगा. क्विंट इन किसानों की मांग और उनकी कहानियों जानने के लिए पहुंचा. हर एक के पास अपनी अलग कहानी थी. जिसमें कर्ज, गरीबी और मजबूरी साफ झलक रही थी. इन किसान की मांग है कर्ज में राहत, न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसान संकट के लिए संसद का विशेष सत्र.

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क्विंट से खास बातचीत में प्रदर्शन कर रहे किसान नेताओं ने बताया कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दूसरे राज्यों के किसान दिल्ली में जुटे.

43 साल की गौरअम्मा कर्नाटक से हैं और हर महीने 6 हजार रुपए कमाती हैं जिसमें से 3 हजार किराए के देती हैं. वो कहती हैं कि उसका पति उसे छोड़ कर चला गया और कभी लौट कर नहीं आया. अपने पति के जिक्र पर बार-बार उनकी आंखें भर आती हैं.

तेलंगाना के नलगोंडा से आई सरोज ने बताया है कि उनके पति किसानी करते थे, उनके परिवार पर 4-5 रुपये का कर्ज था, कर्ज चुकाने का कोई रास्ता न मिलने पर उनके पति ने 4 साल पहले आत्महत्या कर ली. सरोज ने बताया कि उनके लिए घर और खेती संभालना मुश्किल होता जा रहा है.

'कहा हैं अच्छे दिन?'

किसानों ने मोदी सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि, 'प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें अच्छे दिनों का वादा किया था, लेकिन हकीकत ठीक उलटी है, उन्होंने आगे कहा है कि, ‘किसानों के अच्छे दिन नहीं, मोदी सरकार के अच्छे दिन आये हैं’.

बिहार के नवादा में रहने वाले राम जातां सिंह ने किसानों की हालत पर कहा है कि 'एक समय था जब कृषि एक लाभदायक और मुनाफा भरा पेशा था, लेकिन आज किसानों की सबसे बुरी हालत है'.

फसल पर उचित दाम और कर्जमाफी जैसी मांग को लेकर ये किसान लगातार मांग कर रहे हैं और जिसके लिए उन्हें खेती-बाड़ी छोड़कर प्रदर्शन करना पड़ रहा है.

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