ADVERTISEMENTREMOVE AD

VIDEO | GST का 1 साल, आसान हुआ कारोबार या बढ़ा टैक्‍स का जंजाल?

महंगाई, कालाबाजारी और टैक्स कलेक्शन का क्या रहा हाल?

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद

कैमरा: नीरज गुप्ता

जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लागू हुए एक साल हो गया है. इस दौरान हुई दर्जनों बैठकों में जीएसटी में सैकड़ों बदलाव किए गए और ये सिलसिला अब भी जारी है.

सरकार ने इसे अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताते हुए कारोबार का सही माहौल देने, कालाबाजारी खत्म करने और ज्यादा टैक्स उगाहने का दावा किया था. लेकिन क्या ऐसा हो पाया? साल भर पहले जीएसटी की जटिलताओं को लेकर बेहद असमंजस में दिख रहे कारोबारी क्या अब जीएसटी में भरोसा दिखा रहे हैं? ये जानने के लिए क्विंट ने अलग-अलग सेक्टर के कारोबारियों से बात की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रिटर्न फाइलिंग की सिरदर्दी बढ़ी

ऑल इंडिया कंप्यूटर ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र अग्रवाल के मुताबिक:

चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकीलों ने अपनी फीस कई गुना बढ़ा दी. एक महीने में तीन-तीन बार रिटर्न जमा होने लगी. व्यापारी व्यापार करेगा या रिटर्न जमा कराता रहेगा.
महेंद्र अग्रवाल, अध्यक्ष, ऑल इंडिया कंप्यूटर ट्रेडर्स एसोसिएशन

भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महासचिव हेमंत गुप्ता कहते हैं:

हर महीने की 10 तारीख तक पिछले महीने की बिक्री दिखाना और 20 तारीख तक उसका टैक्स जमा करना एक झमेला है. आप हमसे हर महीने टैक्स जमा करवा लीजिए. सरकार को राजस्व का नुकसान नहीं होना चाहिए. लेकिन पहले जैसे वैट में सुविधा थी कि रिटर्न तीन महीने में जमा करवाई जाए, वैसा ही जीएसटी में भी किया जाए.
हेमंत गुप्ता, महासचिव, भारतीय उद्योग व्यापार मंडल

वहीं दिल्ली के नेहरू प्लेस में कंप्यूटर पार्ट्स का कारोबार करने वाले चमन कपूर की दलील है:

दुकानदार तो ये चाहता है कि वो अपना सामान बेचे और अपने लाभ का जो टैक्स बनता है, वो सरकार को जमा करवाए. सरकार ने उसे ऐसा तनाव दे दिया है कि वो अकाउंटेंट ढूंढ रहा है. टैक्स का हिसाब लगाना और जमा कराने की टेंशन अलग.
चमन कपूर, कारोबारी
ADVERTISEMENTREMOVE AD

लगातार बदलावों से बढ़ती है परेशानी

पिछले एक साल के दौरान जीएसटी काउंसिल ने 28 बैठकें कीं और कीमतों से लेकर प्रावधानों तक करीब 400 बदलाव किए. कारोबारियों की शिकायत है कि वो एक बदलाव से उबरते नहीं कि दूसरा सामने आ जाता है.

जीएसटी लागू हुए जितने दिन नहीं हुए, उससे ज्यादा बदलाव हो चुके हैं. जीएसटी का जो सिस्टम प्रपोज किया गया था, वो आज भी लागू नहीं हो पाया है. आज भी 3-बी के नाम पर सिर्फ टैक्स इकट्ठा किया जा रहा है. व्यापारी के लिए काम करना बहुत मुश्किल हो गया है. सरकार का सिस्टम जीरो है. नोटबंदी की तो ये हाल, जीएसटी लेकर आए तो ये हाल.
स्वर्ण सिंह, महासचिव, ऑल इंडिया कंप्यूटर ट्रेडर्स एसोसिएशन

एक ही धंधे से जुड़ी चीजों पर अलग-अलग जीएसटी से भी कारोबारी परेशान हैं. उनका कहना है कि इससे जबरदस्त भ्रम की स्थिति रहती है.

यूपीएस और लैपटॉप की बैटरी 28% पर थी, जबकि लैपटॉप और यूपीएस 18% पर थे और लैपटॉप बैग 28% पर था. तो हमें तो ये ही नहीं पता कि बिल बनाएं, तो कोड किसका डालें?
महेंद्र अग्रवाल, अध्यक्ष, ऑल इंडिया कंप्यूटर ट्रेडर्स एसोसिएशन
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ई-वे बिल, बिन बुलाया मेहमान

इसी साल अप्रैल में लागू हुए ई-वे बिल को लेकर भी कारोबारी परेशान हैं. उनका कहना है कि बिना किसी ट्रेनिंग के ई-वे बिल उन पर लाद दिया गया. कारोबारी ई-वे बिल में एक लाख रुपये की सीमा बढ़ाने के अलावा कई बदलावों की मांग भी कर रहे हैं.

ई-वे बिल के आने से फिर व्यापारी असमंजस में हैं. ई-वे बिल के बारे में कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई, सीधा फरमान जारी कर दिया गया. ई-वे बिल किस हालात में निकाला जाए, इसे लेकर बहुत भ्रांतिया हैं.
हेमंत गुप्ता- महासचिव, भारतीय उद्योग व्यापार मंडल
बी-टू-बी में तो समझ में आता है, लेकिन बी-टू-सी में ई-वे बिल क्यों जरूरी है? बी-टू-सी में ई-वे बिल खत्म किया जाए और बी-टू-बी में भी उसमें 1 लाख रुपये की छूट की सीमा बढ़ाई जाए. क्योंकि व्यापारी के लिए दिन में इतने बिल बनाना बहुत थकाऊ हो जाता है.
स्वर्ण सिंह, महासचिव, ऑल इंडिया कंप्यूटर ट्रेडर्स एसोसिएशन
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार ने जीएसटी में रिवर्स चार्ज मेकेनिज्म को फिलहाल तीन महीने के लिए टाल दिया है, लेकिन कारोबारी उस पर पूरी तरह रोक की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा इनपुट टैक्स क्रेडिट को लेकर भी उनकी कई शिकायते हैं.

जीएसटी-एक साल के सरकारी विज्ञापनों में इसे महंगाई कम करने, कारोबार का सही माहौल देने और टैक्स स्ट्रक्चर सुधारने की दिशा में उठाया गया जबरदस्त कदम बताया जा रहा है. लेकिन जमीन पर हकीकत उतनी गुलाबी नजर नहीं आती.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×