वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
इन दिनों, वकील रातों की नींद हराम कर रहे हैं, उस एक शब्द का पता लगाने के लिए जिसके बिना वे कोर्ट में कोई बहस तक नहीं शुरू कर सकते, ये सबूत किसी नए कानून पर बात नहीं कर रहा, कोर्ट में किए जाने वाले अभिवादन पर बात करता है- आसान शब्दों में, जजों को कैसे संबोधित करें?
- माई लॉर्ड
- योर हाईनेस
- योर ऑनर
लेकिन वकील क्यों कंफ्यूज्ड हैं?
दरअसल, हाल ही में एक लॉ स्टूडेंट ने भारत के चीफ जस्टिस एसए बोबडे को 'योर ऑनर' कहकर संबोधित किया, लेकिन वो अपनी बात पूरी कर पाते उससे पहले ही उन्हें फटकार लगाई गई.
चीफ जस्टिस ने कहा-
जब आप हमें ‘योर ऑनर’ कहते हैं, आप दिमाग में या तो सुप्रीम कोर्ट ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स या मजिस्ट्रेट को ध्यान में रखते हैं. हम इनमें से कोई नहीं हैं
अब, यहीं से चीजें दिलचस्प हो जाती हैं. जब लॉ स्टूडेंट ने तुरंत जजों से माफी मांगी, और अब 'योर लॉर्डशिप' कहा. CJI बोबडे ने कहा-
जो भी हो. आप हमें जैसे भी बुलाते हैं, उसमें हमें दिलचस्पी नहीं है. लेकिन गलत शब्दों का इस्तेमाल न करें.
अब, मैं तो वकील नहीं हूं. लेकिन बचपन से अगर एक चीज जो मैंने बार-बार देखा है, वो है बॉलीवुड फिल्मों में 'मी लॉर्ड' का इस्तेमाल लेकिन ये शब्द आया कहां से?
1600 के दशक की शुरुआत में चलते हैं, जब अंग्रेज भारत पहुंचे, तो वे न सिर्फ व्यापार और दोहरे टैक्सेशन के विचार के साथ आए, बल्कि ब्रिटिश कानून और 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' जैसे शब्द भी साथ लेकर आए उन नियमों का पालन करते हुए, जो वे इंग्लिश कोर्ट्स में किया करते थे, जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' कहकर संबोधित किया जाता था
तो जजों को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए और इसके लिए क्या नियम हैं?
जवाब 1961 के एडवोकेट्स एक्ट 1961 में मिलता है - 2006 रिजॉल्यूशन
माई लॉर्ड ❌
योर लॉर्डशिप ❌
जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नियम बनाने की अनुमति देता है कि वकील कोर्ट में कैसा आचरण करें, दिलचस्प है, 2006 में, BCI ने एक ऐसा प्रस्ताव अपनाया जिसमें वकीलों को 'माई लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' के औपनिवेशिक अवशेष से दूर रहने को कहा गया.
'योर ऑनर' ✅
'ऑनरेबल कोर्ट'
इस प्रस्ताव के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में वकील, जजों को 'योर ऑनर' या 'ऑनरेबल कोर्ट' यानी 'माननीय न्यायालय' के रूप में संबोधित कर सकते हैं जबकि अधीनस्थ न्यायालयों में 'सर' शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. जब बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने स्पष्ट किया है कि 'योर ऑनर' का इस्तेमाल किया जा सकता है, ऐसे में क्या CJI बोबडे का सुझाव उचित था?
मैं कई कारणों से चीफ जस्टिस से असहमत होना चाहता हूं. पहला, ये एक स्टूडेंट का मामला था जो अपीयर हो रहा था, और एक स्टूडेंट कोर्ट के पूरे रेजिमेंट को जान भी सकता है या नहीं भी. दूसरा, वो अपमानजनक नहीं था. इसलिए, उसमें चेतावनी देने जैसी कोई जरूरत नहीं थी. तीसरी और सबसे अहम बात, अगर बार काउंसिल कहती है कि आप सम्मानजनक तरीके में संबोधित कर सकते हैं, चाहे वो ‘योर ऑनर’ हो या ‘सर’, मेरे मुताबिक, इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिएमुकुल रोहतगी
लेकिन इस कहानी में एक और मोड़ है. CJI बोबडे के वकीलों को फटकार लगाने के बाद ही BCI के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने कथित तौर पर कहा कि सितंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वकीलों को 'माई लॉर्ड', 'योर लॉर्डशिप' या 'ऑनरेबल कोर्ट' का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया था
देश के वकीलों से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के माननीय जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' या 'माननीय न्यायालय' के रूप में संबोधित करने का अनुरोध किया जाता है, जबकि अधीनस्थ न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और अन्य मंचों के वकील 'योर ऑनर' के रूप में कोर्ट को संबोधित कर सकते हैं.
लेकिन ये सिर्फ BCI ही नहीं है जिसने अपना रुख बदला है जनवरी 2014 में, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एचएल दत्तू समेत 2-जजों के बेंच ने कहा था और मैं कोट करता हूं,
आप (जजों) ‘सर’ कहते हैं, ये स्वीकार किया जाता है. आप ‘योर ऑनर’ कहते हैं, ये स्वीकार किया जाता है. आप ‘लॉर्डशिप’ कहते हैं, ये स्वीकार किया जाता है. ये अभिव्यक्ति के कुछ उपयुक्त तरीके हैं, जिन्हें स्वीकार किया जाता है
साथ ही, हरेक जज को 'योर लॉर्डशिप' या 'लेडीशिप' कहा जाना पसंद नहीं है और इसके कई प्रगतिशील उदाहरण मौजूद हैं, राजस्थान हाई कोर्ट को लीजिए, जिसने 2019 में कहा था कि
सर 👍
मैम 👍
वकील और याचिकाकर्ता जजों को 'मैम' या 'सर' कहकर संबोधित करते हैं, मार्च 2020 में, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस मुरलीधर ने वकीलों को 'माई लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने को कहा था.
कई साल पहले, जब जस्टिस पीएन भगवती भारत के चीफ जस्टिस थे, तब मैं उनके कोर्टरूम में एक केस के इंतजार में बैठा था और वहां किसी व्यक्ति की पार्टी, जजों को ‘माई-बाप’ कहकर संबोधित करती रही और किसी ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, इसलिए मुझे नहीं लगता कि जज इस बारे में इतने सहज हैं. मुझे नहीं पता कि चीफ जस्टिस ने इसे मजाक में कहा था क्या, गैर-गंभीर तरीके से.जस्टिस मदन लोकुर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज
क्या CJI बोबडे मजाक कर रहे थे? क्या उनका वो मतलब नहीं था जो उन्होंने कहा? हम सिर्फ उम्मीद ही कर सकते हैं
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