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कोरोना संकट बता रहा देश में कैसे हालात- 5 रियलिटी चेक

कोई बड़ा संकट, रियलिटी चेक का मौका भी देता है....ये दिखाता है कि अपने देश में हालत असल में हैं कैसे

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कोरोना का गुनहगार कौन? तबलीगी... तबलीगी... तबलीगी, लेकिन क्या हमारे पास पर्याप्त वेंटिलेटर, आईसीयू बेड और पीपीई किट हैं? क्या वाकई में हम तैयार हैं? क्या हम पर्याप्त टेस्ट कर रहे हैं? हर परिवार को एक किलो दाल का वादा किया गया...सिर्फ दस फीसदी को मिला. सड़कों पर प्रवासी मजदूर प्रदर्शन कर रहे हैं. ये सब प्रायोजित था? उनके पास सामान और उनके बैग नहीं थे. ये सब एक मस्जिद के पास हुआ.

पड़ोसियों ने कोरोना डॉक्टर के साथ बदसलूकी की. हम कोरोना के खिलाफ एकजुट हैं. नॉर्थ-ईस्ट की एक लड़की पर थूका गया...हम कोरोना के खिलाफ एकजुट हैं.

कोई बड़ा संकट, रियलिटी चेक का मौका भी देता है....ये दिखाता है कि अपने देश में हालत असल में हैं कैसे? ये हमारी कमजोरियों को सामने लाता है....हमारे पूर्वाग्रहों को उजागर करता है. हमारी खुशफहमियों से पर्दा हटाता है, हमारी गलतियों को दिखाता है.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ये जो इंडिया है ना क्या वो कोरोना रियलिटी चेक से कुछ सीखेगा?

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रियलिटी चेक- 1

भारत दस लाख में से 500 लोगों की कोरोना टेस्टिंग कर रहा है. हमें हर चीज की तुलना पाकिस्तान से करने की आदत है तो जान लीजिए कि पाकिस्तान हर दस लाख लोगों में से 700 लोगों की टेस्टिंग कर रहा है. मलेशिया 3,900 और ऑस्ट्रेलिया 19,000..कुछ तो इससे भी आगे हैं. कम टेस्टिंग के कारण ये भ्रम हो सकता है कि हमारे यहां कम पॉजिटिव केस हैं. इसका नतीजा ये भी होता है कि आगे की प्लानिंग के लिए हमारे पास सही डेटा नहीं होता. और पांच सौ का आंकड़ा तो राष्ट्रीय औसत है. बड़ी आबादी वाले कुछ राज्य तो इससे भी कम टेस्टिंग कर रहे हैं.

बंगाल सिर्फ 100, बिहार, 130, यूपी 226... इन तीन राज्यों में 45 करोड़ लोग रहते हैं. यानी भारत की एक तिहाई आबादी और इनकी कम जांच हो रही है. और हां, यहां ICU बेड और वेंटिलेटर की भी कमी है.

बिहार को ही ले लीजिए. यहां देश की 10% आबादी रहती है लेकिन यहां देश के कुल आईसीयू बेड और वेंटिलेटर में से सिर्फ 1.7% हैं. 1.6 लाख बिहारियों के लिए सिर्फ 1 वेटिंलेटर और 76 हजार बिहारियों के लिए सिर्फ एक आईसीयू बेड.

तो यहां रियलिटी चेक क्या है? इस वक्त लॉकडाउन से कोरोना की जंग लड़ी जा रही है और इसकी बड़ी आर्थिक कीमत चुकाई जा रही है. ये भी हो सकता है कि भारत में बहुत बड़ी युवा आबादी, गर्मी और बीसीजी वैक्सीन फैक्टर भी काम कर रही हो. लेकिन खुदा न खास्ता कल कोई ऐसा वायरस आ सकता है जो युवाओं को टारगेट कर सकता है, वो गर्मी में भी टिका रह सकता है, तो क्या उसके लिए हमारे अस्पताल तैयार हैं? जवाब है नहीं... खासकर वहां तो नहीं जो देश के सबसे गरीब राज्य हैं या जहां बड़ी आबादी है.

दुर्भाग्य से स्वास्थ्य सेवाएं हमारे देश में कोई चुनावी मुद्दा नहीं है. तो क्या कोरोना संकट के बाद हमारी केंद्र और राज्य सरकारें सेहत पर ज्यादा खर्च करेंगी. मैं यकीन से नहीं कह सकता.
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रियलिटी चेक- 2

हमें अचानक से लग रहा है कि धारावी बड़ा अहम है. अगर मुंबई की घनी आबादी वाली झुग्गियों में कोरोना के केस और मौतें बढ़ती रहीं तो आप लॉकडाउन खत्म नहीं कर सकते. और जब तक लॉकडाउन है तब तक मुंबई बंद है. अमीर-गरीब, मिडिल क्लास सब परेशानी में, तो सीख क्या है? शहरी झुग्गियों में भी रहने लायक सुविधाएं दीजिए, साफ-सफाई का खयाल रखिए, मेडिकल सुविधाएं दीजिए. शहरों की प्लानिंग करते वक्त गरीबों को भी याद रखिए. सिर्फ मुंबई में ही नहीं....देश के हर शहर में

रियलिटी चेक- 3

भारत के प्रवासी मजदूर... इनके बारे में कोई नहीं सोचता. लॉकडाउन शुरू हुआ तो हमने ये नहीं सोचा कि उनका क्या होगा. हमने उन्हें घर जाने के लिए न बसें दी और न ट्रेन. वो पैदल चलने को मजबूर हो गए. या यूं कहिए किए गए. हमने तो उन पर केमिकल तक छिड़क दिया. निर्मला सीतारमण का राहत पैकेज इतना छोटा था कि उसकी छांव ज्यादातर मजदूरों पर पड़ी ही नहीं.

कोटा में फंसे छात्रों के लिए बसें चलीं, लेकिन मजदूरों के लिए ऐसा कुछ नहीं किया गया. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने तो खुले तौर पर कह दिया कि वो नहीं चाहते प्रवासी मजदूर लौटें. शायद वो नहीं चाहते थे कि उनकी सेहत कल बिहार की समस्या बन जाए.
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रियलिटी चेक- 4

जाहिलियत...नस्ली भेदभाव, और सांप्रदायिकता... हममें से कई लोगों का ये चेहरा भी कोरोना संकट के कारण बेनकाब हो गया. एक मंत्री ने कहा ...गो कोरोना गो...दूसरे बोले - हल्दी और नमन से गरारा कीजिए, कोरोना भाग जाएगा...तो तीसरे ने सलाह दी, धूप में खड़े हो जाइए, कोरोना खत्म हो जाएगा. लेकिन अगर कोरोना का इलाज विज्ञान को निकालना है तो ये मंत्री किस साइंटिफिक सोच को बढ़ावा दे रहे हैं?

इससे भी खतरनाक...नॉर्थ ईस्ट के अपने ही देशवासियों पर थूका गया...गालियां दी गईं, उन्हें दुकानों में नहीं जाने दिया गया. क्यों? क्योंकि वो चीनियों की तरह दिखते हैं. हमने ये भी देखा कि जो डॉक्टर योद्धाओं की तरह कोरोना से जंग लड़ रहे हैं उनके साथ पड़ोसियों ने ही बदसलूकी की. कोरोना से लोगों की जान बचाते-बचाते जिन डॉक्टरों ने जान दे दी, उनमें से कई को दो गज जमीन देने से इनकार कर दिया गया और तबलीगी जमात का फितूर... क्या मरकज की गलती थी, बिल्कुल थी लेकिन गोदी मीडिया ने जो उसमें जो एंगल निकाल लिया, जिस तरह से ट्रोल उनके पीछे पड़े वो जहरीला था. इंटरनेशनल साजिश, आतंकी मसूबे, हर तबलीगी को अपराधियों की तरह ढूंढ निकालने की कोशिश, पूरी कौम को एंटी नेशनल घोषित कर देना, राष्ट्रदोही बता देना...कमाल है... हमने महामारी को भी धर्म से जोड़ दिया

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रियलिटी चेक-5

जो हम कहते हैं, हम करते हैं... और जब हम करते नहीं तो डरते भी नहीं... वादा पूरा नहीं हुआ और किसी की जवाबदेही भी नहीं. निर्मला सीतारमण ने हर गरीब परिवार को एक किलो दाल देने का वादा किया. लेकिन अप्रैल में सिर्फ 10% गरीब परिवारों को दाल मिली. सरकारी गोदामों में एक्स्ट्रा दाल पड़ी है. ट्रक हैं, सड़कें खाली हैं, लोग अपने घरों में भूखे बैठे हैं. लेकिन दाल उन तक पहुंच नहीं रही. आप कोशिश कर लीजिए पता करने की, कि आखिर कौन है जवाबदेह, आपको नहीं मिलेगा. भारत में नौकरशाही कभी भी जवाबदेह नहीं होती. एक और नमूना. अहमदाबाद में कोरोना से 100 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. केरल में सिर्फ चार मौतें, तो साफ है कि कोरोना गुजरात में कहीं तो लापरवाही हुई. लेकिन इन मौतों के लिए जिम्मेदार किसी सरकारी अफसर, किसी सरकार आदमी को ढूंढने की कोशिश कीजिए, आप नहीं ढूंढ नहीं पाएंगे. इस देश में बाबू कभी जवाबदेह नहीं होते.

ये जो इंडिया है ना...ये कोरोना रियलिटी चेक से कुछ सीखेगा...मुझे यकीन नहीं है

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