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मुसलमान के हाथ में कुरान-कम्प्यूटर चाहिए,फिर मौलाना आजाद फेलोशिप बंद क्यों किया?

Maulana Azad National Fellowship को बंद करने के अलावा देशभर की यूनिवर्सिटी में 11,000 टीचिंग स्टाफ के पद खाली है.

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"पूरी खुशहाली, समग्र विकास तब ही संभव है जब आप ये देखें कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर है."

हां, 01 मार्च 2018 को इस्लामिक स्कॉलर कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यही कहा था. मुसलमानों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर. लेकिन कमाल देखिए. इस बयान के कुछ सालों बाद उनकी ही सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के हाथ से कंप्यूटर छीनने की या कहें हायर एजुकेशन से दूर करने की एक कोशिश की है. हायर तो दूर बेसिक एजुकेशन हासिल करने के रास्ते में भी एक बड़ी रुकावट खड़ी की गई है. इसलिए हम पूछ रहे हैं, जनाब ऐसे कैसे?

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केंद्र सरकार ने हजारों अल्पसंख्यक छात्रों को फायदा पहुंचाने वाले मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को बंद करने का फैसला किया है. इस स्कॉलरशिप के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को एमफिल और पीएचडी के लिए वित्तीय सहायता दी जाती थी. यहां अल्पसंख्यक मतलब है बौद्ध, ईसाई, जैन, मुस्लिम, पारसी और सिख समुदाय के छात्र.

अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा,

MANF स्कीम केंद्र सरकार के कई दूसरी स्कीम्स से ओवरलैप हो रही थी. अल्पसंख्यक स्टूडेंट्स के लिए केंद्र सरकार की कई स्कीम्स हैं. इसी को देखते हुए सरकार ने फैसला लिया है कि MANF स्कीम को हम बंद कर रहे हैं.

लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप दूसरी कौन सी स्कीम से ओवरलैप हो रही है? जिसकी जानकारी देशभर के अल्पसंख्यक छात्रों को ही नहीं है.

और अगर ये मान भी लिया जाए तो सवाल ये उठता है कि दो स्कॉलरशिप कैसे ओवरलैप हो सकती है जबकि स्कॉलरशिप देने वाली संस्था एक ही है. यूजीसी. स्कॉलरशिप ओवरलैप की दलील के पीछे की कहानी आपको समझाते हैं.

पीएचडी के लिए यूजीसी के जरिए NET-JRF का टेस्ट देना होता है. नेट परीक्षा में सब्जेक्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा नंबर लाने वाले शुरुआती कुछ छात्रों को जूनियर रिसर्च फेलोशिप (JRF) मिलता है. जेआरएफ के लिए क्वालिफाई छात्रों को यूजीसी की तरफ से हर महीने करीब 30 हजार रुपये दिए जाते हैं. अब समझने वाली बात ये है कि अल्पसंख्यक समुदाय के वे छात्र जो जेआरएफ क्वालिफाई नहीं हुए हैं लेकिन नेट क्वालिफाई हैं वहीं मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप के लिए आवेदन कर सकते थे. यहां सिर्फ अल्पसंख्यक होने के आधार पर स्कॉलरशिप नहीं मिल रही थी बल्कि नेट की परीक्षा और परिवार की आय के आधार पर ही मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप मिल सकती थी. फेलोशिप वेबसाइट पर मानकों के मुताबिक, लाभार्थियों या उनके अभिभावकों की सालाना आय सभी सोर्स से छह लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए.

फिर ये तो साफ है कि जिसे जेआरएफ मिलता है उसे मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप छोड़नी पड़ती है, क्योंकि दोनों फेलोशिप यूजीसी ही देती है. फिर ये ओवरलैप कैसे हो सकता है?

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) के इतिहास विभाग के प्रोफेसर सैयद अली नदीम रजावी ने क्विंट से कहा,

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"हर कोई जेआरएफ के लिए योग्य नहीं हो पाता. इसलिए, आर्थिक रूप से पिछड़े मुस्लिम छात्रों के लिए MANF एक बहुत अच्छा विकल्प था. अगर सरकार वास्तव में ओवरलैप के बारे में कह रही है, तो वैकल्पिक कार्यक्रमों के नाम क्यों नहीं प्रदान करती है?''

आपको बता दें कि यूपीए सरकार के दौरान शुरू हुई फेलोशिप, सच्चर कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक लागू की गई थी. इसमें भारत के मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन किया गया था. इस बार इस फेलोशिप को बंद करने के लिए कौन सी स्टडी हुई है?

JNU के सेंटर फॉर पॉलिटिकल साइंस में सहायक प्रोफेसर हरीश वानखेड़े ने इसपर क्विंट से कहा,

"मंडल आयोग और सच्चर समिति की रिपोर्ट जैसी विभिन्न रिपोर्ट्स से रिसर्च के बाद मिले सबूतों को देखना महत्वपूर्ण है, जो दिखाते हैं कि मुसलमानों की एक बड़ी आबादी शैक्षिक रूप से पिछड़ी हुई है. सच्चर समिति की रिपोर्ट मुस्लिम छात्रों के ड्रॉप-आउट दर जैसी कठोर वास्तविकताओं को उजागर करती है. यह फेलोशिप एक अद्भुत योजना थी. ये बहुत महत्वपूर्ण भी थी विशेष रूप से निम्न-आय वाले लोगों के लिए."

उच्च शिक्षा में मुसलमानों की भागीदारी

सरकार के आंकड़ों को ही देखें तो देश में सभी समुदायों के बीच उच्च शिक्षा में मुसलमानों का सबसे कम Gross Enrollment Ratio 16.6% है (राष्ट्रीय औसत 26.3% है). उच्च शिक्षा नामांकन (higher education enrollment) में मुसलमानों की हिस्सेदारी 2010-11 में 2.53% थी, जो बढ़कर 2019-20 में 5.45% हो गई है. इसी दौरान teaching faculty में भी उनकी हिस्सेदारी 2.95% से बढ़कर 5.55% हो गई है. इससे साफ होता है कि अवसर दिए जाने पर, अल्पसंख्यक समुदाय मुख्यधारा में रहने का इच्छुक है. फिर MANF जैसी फेलोशिप को बंद करके इन्हें आगे बढ़ने से क्यों रोका जाए?

अब आते हैं एक और स्कॉलरशिप पर जिसे सरकार ने बंद करने का फैसला किया है. और मीडिया को इसपर डिबेट करने की फुर्सत तक नहीं मिली.

सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अपनी प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम योजना को क्लास एक से लेकर 8 तक के लिए बंद कर दी है और अब ये सिर्फ 9वीं और 10वीं क्लास के छात्रों तक सीमित रहेगी.

सरकार ने नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल पर एक नोटिस में अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा है कि शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 हर बच्चे को अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा मतलब पहली कक्षा से आठवीं तक की पढ़ाई मुफ्त प्रदान करता है, इसलिए इस योजना को बंद किया जाता है.

अब सवाल ये है कि सरकार ने कौन सी रिसर्च कराई है, जिसके आधार पर इन स्कॉलरशिप को बंद कराया गया है? सरकार के पास कौन से आंकड़े हैं जो ये बताते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय की हालत अब बेहतर हो गई है इसलिए इन स्कॉलरशिप को बंद कर दी जाए?

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देशभर की यूनिवर्सिटी में 11,000 टीचिंग स्टाफ के पद खाली

अल्पसंख्यकों के स्कॉलरशिप खत्म किए जाने पर जो लोग खुश हो रहे हैं वो ये जान लें कि उनकी पढ़ाई भी अंधेरे से ज्यादा दूर नहीं है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में एक बताया है कि देशभर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी, IIT और IIM में प्रोफेसर के 11,000 से अधिक पोस्ट खाली हैं.

देश के 45 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्वीकृत 1,8956 पदों में से प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 6180 पद खाली पड़े हैं. इसी तरह, IIT में स्वीकृत 11,170 पदों में से कुल 4,502 पद खाली हैं. IIM में फैकल्टी के 1,566 पदों में से 493 पद खाली हैं. अब बताइए शिक्षक कम होंगे तो पढ़ाई कौन कराएगा?

पिछले कुछ वक्त से देशभर की यूनिवर्सिटी में छात्र फीस बढ़ोतरी से लेकर हॉस्टल और मेस फीस को लेकर आवाज उठा रहे हैं. और अब स्कॉलरशिप छीनकर हायर स्टीज से रोकना. ये कैसा सबका साथ-सबका विकास है. जब पिछड़े-अल्पसंख्यक तबके के छात्रों के हाथ से किताब ही छीन ली जाए. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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