मिजोरम में चुनाव से पहले सीएम लाल थनहवला से क्विंट ने खास बातचीत. लाल थनहवाल लगातार तीसरी बार राज्य के सीएम बनने की रेस में हैं. साथ ही 1989 से 5 बार मिजोरम के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. राज्य में बीजेपी के उभार समेत कई मुद्दों पर उन्होंने बेबाकी से अपनी राय रखी.
बीजेपी पहली बार राज्य में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है, आपको क्या लगता है उनकी संभावनाओं के बारे में?
अगर वो अपना खाता खोलना चाहते हैं तो मैं कौन हूं न कहने वाला, क्योंकि ये हर राजनीतिक पार्टी का अधिकार है कि वो जहां चाहें वहां चुनाव लड़ें.
क्या आपको लगता है उनका चांस है?
मुझे नहीं लगता कि बीजेपी का राज्य में कोई चांस है.
आपने कहा था कि बीजेपी और एमएनएफ की बातचीत चल रही है?
क्योंकि NEDA का गठबंधन पहले बीजेपी ने ही शुरू किया था और MNF उस गठबंधन का हिस्सा है. ऐसे में कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता
क्या कांग्रेस इस बात से सावधान है कि जो गोवा और मेघालय में हुआ था, जिसे हम आम भाषा में ‘होर्स ट्रेडिंग’ कहते हैं. सरकार बनाने के लिए बीजेपी वो तरीके अपना रही है? क्या इस बात का आपको डर है कि मिजोरम में भी ऐसा हो सकता है?
जहां तक कांग्रेस की बात है तो मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है, मगर किसी दूसरी पार्टी के नेता अगर बिक रहे हैं, तो मैं कुछ नहीं कह सकता.
विपक्ष ने शराबबंदी को बड़ा मुद्दा बनाया है? वो लोग कह रहे हैं कि मिजोरम में फिर से शराबबंदी करनी चाहिए. आपकी पार्टी ने ही शराबबंदी की थी. क्या आप अब भी उस फैसले पर कायम हैं?
वो मेरी ही सरकार थी जिसने चर्च के निर्देश पर पूरी तरह से शराबबंदी की थी. पर वो असफल रही, लेकिन नकली शराब बिक रही थी. असामाजिक तत्व थे, वो लोग जहरीली चीजें मिलाकर शराब बनाते थे. जिससे कई लोगों की मौत भी हुई. कुछ लोग अपने नियंत्रित तरीके से शराब बेचना चाहते थे. ऐसे में हमने सोचा कि हमें फिर से शराब बेचना शुरू चाहिए मगर तय सीमा के साथ.
साल 1997 से लेकर 2015 तक मिजोरम में शराब पर थी पाबंदी. 2015 में हटाया गया बैन. अब 21 साल से अधिक उम्र वाले लोगों को तय मात्रा में शराब परमिट पर मिलती है.
आपको नहीं लगता कि इससे चर्च पर असर पड़ेगा?
ये चर्चा की ही बात नहीं है, ये एक सामाजिक विषय है. चर्च के आदेश पर शराबबंदी हुई थी पर वो असफल रही. शराब पीने वाले लोग भी समाज का ही एक तबका है.
बहुसंख्यक मिजो समुदाय के लोगों के साथ विवाद के बाद एक अनुमान के मुताबिक, 40 हजार 'ब्रू' समुदाय के लोग छोड़ चुके हैं मिजोरम. 1997 में वे त्रिपुरा के रिलीफ कैंप में जा बसे वापस बुलाने की कोशिशों के बावजूद भी करीब 32,000 'ब्रू' समुदाय के लोग त्रिपुरा में ही रहते हैं.
ब्रू समुदाय के लोगों के मुद्दे पर इलेक्शन कमीशन के CEO को भी बदलना पड़ा? कांग्रेस का इस पर क्या स्टैंड है?
जब ब्रू समुदाय के लोग गए तब मैं ही मुख्यमंत्री था. उनको यहां से जाने की कोई जरूरत नहीं थी और जो जाना नहीं चाहते थे, वो भी जाने के लिए मजबूर हो गए. बहुत सारे लोग गए लेकिन अब भी समुदाय की बड़ी संख्या यहीं रहती है. उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होता.
सीएम कहते हैं कि उनकी उम्र 80 साल है, लेकिन वो अब भी उसी तरह काम करना चाहते हैं जैसे वो अपने युवा दिनों में किया करते थे.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)