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MP: अंग्रेजों के जमाने की नैरो गेज ट्रेन के अच्छे दिन कब आएंगे? 

कब बदलेगी ग्वालियर की नैरो गेज ट्रेन की किस्मत

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एडिटर: संदीप सुमन

मध्य प्रदेश की चुनावी कवरेज के दौरान हम पहुंचे हैं ग्वालियर.

क्या आपको नैरो गेज ट्रेन के बारे में पता है? नैरो गेज मतलब रेलवे ट्रैक के बीच की दूरी सामान्य ट्रैक से कम हो. ग्वालियर से भी ऐसी ही एक 'ऐतिहासिक नैरो गेज' ट्रेन चलती है. आज की चुनावी चर्चा हम इसी ट्रेन से करेंगे और आपको बताएंगे कि क्या है इस ट्रेन का इतिहास और इसकी खासियत.

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सिंधिया राजघराने की थी इस ट्रेन की शुरुआत

अंग्रेजों के शासन के दौरान भारत में नैरो गेज ट्रेन सिस्टम की शुरुआत की गई थी. ग्वालियर से श्योपुर जाने वाली ये ट्रेन भी उसी सिस्टम का हिस्सा है.ग्वालियर के स्थानीय पत्रकार समीर गर्ग इस ट्रेन के इतिहास के बारे में बताते हैं-

ये सिंधिया राजघराने की ट्रेन है, उन लोगों ने अपने घूमने के लिए ये ट्रेन बनवाई थी. 1894 में ये शुरू की गई, 1905 में बनकर तैयार हो गई. पहले करीब 400 किलोमीटर का ट्रैक था, अब केवल 197 किलोमीटर का ट्रैक ग्वालियर से श्योपुर तक ही बचा है बाकी सब ब्रॉड गेज में बदल दिया गया. धीरे-धीरे 2023 तक इसे भी ब्रॉड गेज में बदलने की तैयारी हो रही है.
समीर गर्ग, स्थानीय पत्रकार
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50-60 गांवों को जोड़ती है ये ट्रेन: समीर गर्ग बताते हैं कि 197 किलोमीटर के इस ट्रैक के बीच 27 स्टेशन पड़ते हैं. 50-60 गांव को ये ट्रेन जोड़ती है. वो कहते हैं कि ग्वालियर से श्योपुर जाने वालों के लिए ये लाइफ लाइन है.

'हेरिटेज ट्रेन' से सफर मजबूरी या जरूरी?

ट्रेन का इतिहास तो काफी दिलचस्प है, लेकिन वर्तमान में कई सारी खामियां दिखती हैं. नैरो गेज ट्रेन की स्पीड बेहद कम है, ग्वालियर से श्योपुर जाने में इस ट्रेन से 11 से 12 घंटे लगते हैं वहीं बस से करीब 6 घंटे लगते हैं. इसके बावजूद हर रोज ट्रेन में काफी भीड़ होती है.

इसी ट्रेन के यात्री कमलेश कुमार मिश्रा इसे गरीबी, लाचारी और समय की बर्बादी बताते हैं.

इस ट्रेन से जाने की वजह गरीबी, लाचारी, भूखमरी. बहुत टाइम बर्बाद होता है इससे पढ़ाई नहीं हो पाती. विदेश घूमने के लिए मोदी जी के पास पैसा है, ट्रेन चलाने के लिए नहीं है.
कांशीराम, छात्र
दिक्कत तो होती है, गाड़ी नहीं है तो चलना ही इससे बड़ी गाड़ी नहीं है, छोटी गाड़ी है. इसलिए इससे जाते हैं.
लज्जाराम, यात्री
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बता दें कि ग्वालियर से श्योपुर का ट्रेन का किराया जहां सिर्फ 45 रुपये है, वहीं बस का किराया 200 रुपये.

कब बदलेगी नैरो गेज की किस्मत?

कई साल से इस नैरो गेज को ब्रॉड गेज में बदलने की बात हो रही है, ऐसे में कब इस ट्रैक की किस्मत बदलेगी, इस सवाल पर समीर गर्ग कहते हैं कि रेलवे ने इसके लिए प्लान बनाया है. इनकम के लिहाज से कुछ खास नहीं होने के कारण इस नजरंदाज किया जाता रहा है.

समीर का कहना है कि रेलवे ने इसे राजस्थान के कोटा से जोड़ने का प्लान भी बनाया है, जिसके बाद करीब 282 किलोमीटर का ट्रैक होगा, 2023 तक इसे ब्रॉड गेज में बदल देने की उम्मीद है.

मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को चुनाव होने हैं, कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश में होने वाले इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है. इस चुनव के नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे.

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