उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी (Varanasi) ने बदमाशों के बुलंद हौसलों का जवाब यूपी पुलिस ने अपने ही अंदाज में दिया है. 9 नवंबर की शाम को वाराणसी के लक्सा थाने में तैनात दरोगा अजय यादव को 3 बदमाशों ने गोली मारकर उनकी सरकारी पिस्टल लूट ली. इस सनसनीखेज घटना के बाद वहां स्थानीय पुलिस के पैरों तले जमीन खिसक गई.
आनन-फानन में घायल दरोगा अजय यादव को अस्पताल में भर्ती कराया गया और पुलिस जांच में जुट गई. घटना में शामिल 3 बदमाशों में से दो की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई. यह दोनों बदमाश बिहार के रहने वाले हैं. इस स्टोरी में पढ़ें कि कैसे यूपी पुलिस एनकाउंटर के रथ पर सवार हो चुकी है.
पुलिस के एनकाउंटर में 5 सालों में 168 अभियुक्तों की मौत
2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद पुलिस मुठभेड़ का ऐसा दौर शुरू हुआ जो अभी तक नहीं थमा है. अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो पुलिस मुठभेड़ में 2017 से लेकर अब तक 168 अभियुक्तों की मौत हो चुकी है और हजारों ऐसे संदिग्ध अपराधी हैं जिनके पैरों में गोली लगी है.
अगर जून के हिसाब से तुलना की जाए तो पुलिस की गोलियों की गूंज सबसे ज्यादा मेरठ जोन में सुनाई दी, जहां 2017 से लेकर अब तक 64 अपराधी मुठभेड़ में मारे गए हैं.
इसके बाद नंबर आता है, आगरा और वाराणसी जोन का जो संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर हैं. इन दोनों जगहों पर 2017 से लेकर अब तक 19 अपराधी मारे गए.
पुलिस एनकाउंटर की जहां एक तरफ मानवाधिकार संस्थाओं और समाज के कई वर्ग के लोग कड़ी आलोचना करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ इसे अब एक लॉ एंड ऑर्डर मॉडल की तरह भी पेश किया जा रहा है.
योगी आदित्यनाथ कर चुके हैं एनकाउंटर की तारीफ
सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार सार्वजनिक मंच से पुलिसिया एनकाउंटर की तारीफ की है. उन्होंने कई बार यहां तक कहा है कि उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था दूसरे राज्यों के लिए नजीर बन गई है. कुछ हद तक यह बात सही भी लगती है क्योंकि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर हिमंता बिश्वा सरमा के आने के बाद आसाम में भी मुठभेड़ शुरू हो गए. हालांकि आला अधिकारी कहते हैं कि मुठभेड़ राज्य की किसी नीति का हिस्सा नहीं है.
प्रदेश के आला अधिकारी भले ही एनकउंटर को राज्य की कानून व्यवस्था नीति का हिस्सा न मानें लेकिन जिस तरीके से इस सरकार में पुलिस एनकाउंटर को बढ़ावा मिला है उससे यही लगता है कि पुलिस मुठभेड़ शांति और कानून व्वस्था कायम रखने के लिए कहीं न कहीं राज्य सरकार का एक अहम हथियार है.
पूर्व की सरकारों में एनकाउंटर को लेकर कई बार सवाल खड़े हुए और कई बार जांच में पुलिस वाले दोषी पाए गए जिनको सजा भी हुई, लेकिन इस सरकार में अभी तक पुलिस मुठभेड़ में हुई न्यायिक जांचों में क्लीन चिट मिलती आई है जिससे यहां के पुलिस विभाग का मनोबल जरूर बढ़ा होगा.
आगे आने वाले समय में ही लगता है कि पुलिस की मुठभेड़ वाले तौर-तरीके कायम रहेंगे. पुलिस ने जिसको अपराधी मान लिया उस इंसान की सजा पुलिस खुद तय कर लेगी. न कोई जांच-जिरह न कोर्ट-कचहरी, फैसला ऑन द स्पॉट.
भारत की न्याय व्यवस्था प्रणाली सुधारात्मक है न कि दंडात्मक, लेकिन शायद यह पुरानी बात हो गई है और उत्तर प्रदेश पर यह लागू नहीं होता.
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