आजादी खूबसूरत है, लेकिन जो बच्चे जेल में पैदा हुए और जेल में ही रह रहे हैं वो आजादी को कैसे समझें? जेल सुधारों के लिए काम कर रही वर्तिका नंदा ने ये जानने की कोशिश की. तिनका-तिनका फाउंडेशन चलाने वाली वर्तिका जेल की ‘दुनिया’ में रह रहे बच्चों के बारे में कहती हैं कि इनके लिए आजादी के अलग ही मायने हैं. इन्होंने अबतक कोई सड़क नहीं देखी न ही कोई तराने सुने हैं.
दरअसल, जेल में रह रहे ऐसे बच्चों ने कोई अपराध नहीं किया है, बल्कि ये अपने माता या पिता की वजह से यहां रह रहे हैं, लेकिन सिर्फ 6 साल तक के बच्चों को ही अपने माता या पिता के साथ जेल में रहने की अनुमति है. वर्तिका का कहना है कि इस बार 15 अगस्त पर क्यों न किसी जेल में जाकर देखा जाए कि आजादी के इस दिन को कैसे मनाते हैं जेल में पैदा हुए ये मासूम बच्चे.
(वर्तिका नंदा वरिष्ठ पत्रकार हैं और तिनका-तिनका फाउंडेशन की संस्थापक हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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