ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

चीन संकट: भारत के पास अमेरिकी मदद के अलावा क्या हैं विकल्प?

अमेरिका के साथ है भारत का गहरा रक्षा संबंध

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

लद्दाख में चीन की घुसपैठ के बाद देश के एक तबके की इस धारणा को मजबूती मिली है कि अमेरिका के साथ भारत को करीबी कूटनीतिक संबंध बनाने चाहिए. भारत चीन के साथ अपने सैन्य असंतुलन को समझता है इसीलिए वो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के आसपास सैन्य टकराव का खतरा नहीं उठाना चाहेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत की सामरिक कमजोरी के चलते बहुत से कूटनीतिज्ञों का मानना है कि भारत के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है कि वो अमेरिका और चीन के दूसरे प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करे. उनका यह भी मानना है कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वॉड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (Quad) को मजबूत किया जाए और इसके इर्द-गिर्द क्षेत्रीय सुरक्षा कायम की जाए.

अमेरिका के साथ भारत का गहरा रक्षा संबंध

पिछली सरकारों के मुकाबले मोदी सरकार ने अमेरिका के साथ ज्यादा गहरे रक्षा संबंध कायम किए हैं. भारत ने अमेरिका के साथ जो रक्षा संबंधी समझौते किए हैं, उनके तहत दोनों देश एक-दूसरे के सशस्त्र बलों के लिए लॉजिस्टिक सहयोग दे सकेंगे (लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट, या LEMOA), इसके अलावा भारत को अमेरिका की आधुनिक तकनीक उपलब्ध हो सकेगी (कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट या COMCASA), साथ ही रक्षा क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग के लिए भारत के निजी क्षेत्र को अमेरिकी रक्षा कंपनियों की पार्टनरशिप भी मिल सकेगी (औद्योगिक सुरक्षा एनेक्सी या ISA, जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फॉर्मेशन एग्रीमेंट- GSOMIA).

चार अहम रक्षा संबंधी समझौतों में आखिरी है- बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) जिसके अंतर्गत टारगेटिंग और नैविगेटिंग के लिए जियोस्पेशियल इन्फॉर्मेशन देने पर चर्चा की जा रही है.

जून 2016 में, अमेरिका ने भारत को “एक प्रमुख रक्षा साझेदार” के रूप में भी मान्यता दी- भारत को इस श्रेणी में एकमात्र देश बना दिया, क्योंकि अमेरिका के पास NATO सहयोगी या द्विपक्षीय संधि सहयोगी हैं.

चीन के दूसरे प्रतिद्वंद्वी देशों में जापान पहले से ही भारत के मालाबार नौसैन्य अभ्यासों का हिस्सा है और संभावना है कि इस साल ऑस्ट्रेलिया को भी इसमें आने का न्योता दिया जाएगा. 2009 में ऑस्ट्रेलिया के वापस जाने के बाद Quad लगभग विलीन हो गया था, अब उसे एक नया जीवन मिला है. 2017-19 में इसकी पांच बैठकें हुईं और अंतिम बैठक मार्च 2020 में हुई, जिसमें COVID-19 को काबू करने के लिए संयुक्त रणनीति तैयार की गई.

अमेरिका चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत का इस्तेमाल कर सकता है

20 जून को ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय लिखा. उसमें कहा गया कि चीन के साथ अपने सीमा विवाद पर भारत के कठोर रवैये का एक कारण अमेरिका भी हो सकता है. चूंकि अमेरिका ने भारत को इंडो-पैसिफिक रणनीति बनाने के लिए लुभाया है. संपादकीय में यह भी कहा गया कि ‘नई दिल्ली को यह स्पष्ट होना चाहिए कि अमेरिका चीन-भारत संबंधों में जिन पैतरों का इस्तेमाल कर रहा है, वे बहुत ज्यादा असरकारक नहीं हैं.’ उसमें यह दावा किया गया है कि अमेरिका चीन को काबू में करने के लिए भारत को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करना चाहता है.

चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत का इस्तेमाल किया जाए, इसके लिए अमेरिकी प्रशासन और कूटनीतिक समुदाय भी राजी होंगे.

फिर भी यह भारत पर है कि वह अमेरिका से अपनी साझेदारी को क्या रूप देना चाहता है.

अमेरिका लद्दाख के उन क्षेत्रों को खाली नहीं करवा सकता, जिन्हें चीन ने अवैध तरीके से हथियाया है. हालांकि वो पूर्वी क्षेत्र में तिब्बत और भारत के बीच सीमा को मैकमोहन लाइन के तौर पर मान्यता देता है लेकिन लद्दाख सीमा पर उसकी कोई स्पष्ट राय नहीं है.

वैसे भी LAC कोई लाइन नहीं है, बल्कि एक अवधारणा है. भारत और चीन इसे अपनी-अपनी तरह से परिभाषित करते हैं.

अमेरिका यही कर सकता है कि वो जमीनी स्थिति बदलने के लिए बल प्रयोग के खिलाफ बयान जारी करे.

अमेरिका के साथ सुरक्षा गठबंधन से भी ज्यादा फायदा होने वाला नहीं क्योंकि अब दूसरों की लड़ाई लड़ने का दौर नहीं है. उसका सबसे मजबूत सैन्य संगठन NATO भी अलग-थलग पड़ चुका है. इन स्थितियों में NATO के अमेरिकी नेतृत्व वाले एशियाई संस्करण की उम्मीद करना दूर की कौड़ी है.

Quad का हिस्सा बनने के लाभ

इस मामले में जापान की स्थिति से सबक लिए जा सकते हैं. अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि के अंतर्गत अगर जापान पर कोई हमला होता है तो अमेरिका उसकी सैन्य मदद करेगा. फिर भी जापान और चीन के बीच सेनकाकू/दायवू द्वीपसमूह संबंधी विवाद में अमेरिका ने कोई बहुत बड़ी भूमिका नहीं निभाई. यहां तक कि उसने सैन्य संघर्ष में उलझने के डर से इन द्वीपों की संप्रभुता पर औपचारिक रुख अपनाने से भी इनकार कर दिया. हालांकि, दक्षिण चीन सागर में रक्षा संधियों के चलते अमेरिका के पास सैन्य परिसंपत्तियां हैं- उसके हित भी वहां से जुड़े हैं, पर फिर भी चीन वहां लगातार अपने मजबूत नियंत्रण की कोशिश कर रहा है और अमेरिका इस सिलसिले में ज्यादा कुछ करने में असमर्थ है.

Quad में शामिल होने का सिर्फ यह फायदा नहीं कि इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस शेयर करने का मौका मिलेगा, संयुक्त रूप से समुद्री सीमा की रक्षा होगी और सुरक्षा सहयोग कायम होगा. इसके लाभ इससे इतर भी हैं.
स्नैपशॉट

हालांकि ASEAN के बाहर ऐसी सुरक्षा संरचना चीन को चिंतित करेगी, फिर भी एक बड़े सुरक्षा गठबंधन की संभावना जताना फिलहाल रेत के किले बनाने जैसा ही है.

भारत को ‘एक चीन नीति को मान्यता नहीं देनी चाहिए

अपनी आंतरिक सामाजिक, आर्थिक और सैन्य कमजोरियों के कारण भारत के पास पर्याप्त विकल्प नहीं. अगर चीन की जोर जबरदस्ती के परिणामस्वरूप भारत अमेरिका पर पूरी तरह से निर्भर हो जाएगा तो इससे भारत की गतिशीलता कम होगी. भारत को अमेरिका की मध्य पूर्व की नीति को समर्थन देना होगा, खासकर तौर से ईरान और रूसी हथियार आयात पर उसके आदेश. भारत और अमेरिका कई मुद्दों पर अलग-अलग राय रखते हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, व्यापार संरक्षणवाद और कुशल श्रमिकों का आवागमन. इसलिए अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों और Quad में समन्वय बढ़ाने के साथ भारत को अपनी चीन नीति दोबारा से बनानी होगी. इसके लिए उसे कुछ साहसिक फैसले लेने होंगे.

2003 में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भारत चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दी थी. मोदी सरकार को वाजपेयी के उस फैसले को पलटना होगा.

यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय क्षेत्रों पर चीन के दावे का आधार तिब्बत पर उसका कब्जा है. तिब्बत में चीन के कब्जे की बात कहकर भारत इस मुद्दे को फिर उठा सकता है और चीन पर इस बात का अंतरराष्ट्रीय दबाव बना सकता है कि वो दलाई लामा के साथ तिब्बत के भविष्य पर बातचीत करे.

दूसरा भारत को 'एक चीन नीति’ को मान्यता देना रोकना होगा, चूंकि चीन जम्मू और कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता और खुद लद्दाख के कुछ हिस्सों पर अपना दावा जता रहा है.

भारत को ताइवान से अपने संबंध मजबूत करने चाहिए

समय आ गया है कि अब ताइवान से अपने रिश्तों को मजबूत किया जाए.

चूंकि अब छोटे कदमों जैसे WHO में ताइवान की सदस्यता को समर्थन देने से काम चलने वाला नहीं. भारत को ताइपे में अपना कॉन्सुलेट खोलना चाहिए.

मोदी सरकार को अपने 5जी टेलीकॉम ट्रायल्स से Huawei को दूर रखने का फैसला करना चाहिए. अमेरिका Huawei के PLA (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) के साथ संबंध की जांच कर रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर इसका मजबूत संदेश जाएगा, और भारत को ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, ताइवान और अमेरिका के समकक्ष ला खड़ा करेगा. इन देशों ने तय किया है कि वे अपने मोबाइल नेटवर्क से Huawei के प्रॉडक्ट्स को चरणबद्ध तरीके से हटाएंगे.

भारत अब भी इन विकल्पों पर विचार करने से कतरा रहा है. वो हॉन्ग कॉन्ग, जिनजियांग और तिब्बत में चीन के मानवाधिकार उल्लंघनों पर भी चुप्पी साधे है. चीन के साथ बेदिली से किए गए करारों का कोई फायदा नहीं होने वाला, न ही इससे सीमा विवाद सुलझ सकता है.

(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक ओपनियन लेख है. ये लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×