ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

गलवान हिंसा के एक साल बाद भारत-चीन संबंध किस हाल में हैं?

Galwan clash को आज 1 साल हो गए हैं, जिसमें भारत के 20 जबकि चीन के 5 सैनिक मारे गए थे

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

पूर्वी लद्दाख की गलवान (Galwan) नदी घाटी में 15 जून 2020 को हुई हिंसा को आज 1 साल हो गए हैं, जिसमें भारत के 20 जबकि चीन (China) के 5 सैनिक मारे गए थे. हिंसा किन परिस्थितियों के कारण शुरू हुई- इसको लेकर अस्पष्टता अभी भी मौजूद है. लेकिन बीती बातों पर ध्यान देने से लगता है कि यह सुनियोजित हमले का नहीं बल्कि स्थितियों के अनियंत्रित हो जाने का परिणाम था. दोनों पक्षों को इस हिंसा के लिए दोष दिया गया , हालांकि चीनी सैनिकों के पास गलवान नदी घाटी के उस क्षेत्र में होने का कोई अधिकार नहीं था जो स्पष्ट रुप से LAC से भारत की तरफ का हिस्सा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
इस संघर्ष की गूंज पूरे विश्व में फैली क्योंकि यह विवादित चीनी-भारतीय बॉर्डर पर 1975 के बाद का पहला हिंसक संघर्ष था जिसमें जानें गई थीं. इस संघर्ष के पहले सीमा के दोनों तरफ भारी सैनिक बलों की तैनाती और पैंगोंग टसो क्षेत्र में झड़प ने यह चिंता बढ़ा दी थी कि दोनों एशियाई महाशक्तियां युद्ध की ओर बढ़ रही हैं.

इन चिंताओं ने गति तब पकडी जब विवादित क्षेत्र से कमर्शियल सेटेलाइट की मदद से तस्वीरें आने लगी और उसका विश्लेषण करके न्यूज़ रिपोर्ट प्रकाशित की गई. सरकार ने अपनी तरफ से बहुत कम जानकारियां उपलब्ध कराई. लेकिन जुलाई 2020 की शुरुआत में दोनों तरफ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बातचीत के बाद यह खबर आई कि दोनों तरफ की सैनिक गलवान क्लैश पॉइंट से 1.5 किलोमीटर पीछे चले गए हैं.

पुनः थोड़ा तनाव अगस्त 2020 के अंत में तब बढ़ा जब भारतीय बलों ने पैंगोंग त्सो के बगल में मौजूद कैलाश हाइट्स पर कब्जा कर लिया था और वहां से वह Spanggur Tso के चीनी पोजीशन पर ऊपर से नजर रख सकते थे. कुछ वार्निंग शॉर्ट्स भी फायर किए गए लेकिन बात शारीरिक हिंसा पर नहीं पहुंची. सितंबर 2020 के बाद से दोनों पक्षों के बीच थोड़ी शांति मौजूद है और दोनों पक्षों के बीच होती बातचीत ने पैंगोंग त्सो क्षेत्र से संघर्ष को दूर रखने का काम किया है.

0

अमेरिका, रूस की तरफ से संयमित हस्तक्षेप

कोरोना महामारी के बीच हुए इस चीनी-भारतीय तमाशे को दुनिया के दो प्रमुख शक्तियों- अमेरिका तथा चीन के बढ़ते मनमुटाव ने और भी नाटकीय बना दिया. कई विशेषज्ञों की राय थी कि LAC पर चीन के इस आक्रमण का कारण भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती दोस्ती और सैनिक सहयोग है.

इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं था कि जब ट्रंप प्रशासन चीन के खिलाफ अटैक मोड में गया तब उसके अधिकारियों ने लद्दाख संकट का मुद्दा भी उछालना शुरू किया. तब के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोंपियो ने चीनी सरकार पर लद्दाख में ‘अविश्वसनीय आक्रामक कार्यवाही’ का आरोप लगाया और कहा कि इसका कारण है चीन का बहुत सारे देशों के साथ मौजूद सीमा विवाद.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन अमेरिकी विशेषज्ञ जेफ़ स्मिथ के अनुसार भारत ने अमेरिका से सतर्कता बरतने का अनुरोध किया था ताकि इससे इस "चीनी प्रोपेगेंडा नैरेटिव को बल ना मिले कि यह सब चीन-अमेरिका प्रतिद्वंदिता का हिस्सा है".

आश्चर्य की बात नहीं है कि रूस ने भी संयमित रुख अपनाया. गलवान हिंसे के एक सप्ताह बाद ही रूस-चीन-भारत के वर्चुअल मीटिंग के बाद मीडिया से बात करते हुए रूस के विदेश मंत्री Sergei Lavrov ने कहा कि चीन और भारत को आपसी विवाद सुलझाने के लिए किसी मदद की जरूरत नहीं है.

देश में 'चीनी निर्भरता' की जगह 'आत्मनिर्भरता' की मांग

जैसे-जैसे भारत और चीन ने कई राउंड की मिलिट्री ऑफिसर स्तर की बातचीत पूरी की, धीरे-धीरे इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी की दिलचस्पी कम हो गई. हालांकि इसका असर भारत के अंदर देखने को मिला जब चीन पर निर्भरता कम करके 'आत्मनिर्भरता' की मांग की जाने लगी. साथ ही भारत में मौजूद चीनी कंपनियों और वहां से होते FDI पर प्रतिबंध को बढ़ाने की मांग भी होने लगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अमेरिकी विशेषज्ञों ने महसूस किया कि इस घटनाक्रम ने भारत को अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे सहयोगियों के साथ अपने संबंध को और मजबूत करने के लिए प्रेरित किया तथा भारत अक्टूबर 2020 में टोक्यो में आयोजित 'क्वाड' की पहली मंत्री स्तरीय बैठक का हिस्सा बना.

आगे भारत सरकार अपने सालाना भारत-अमेरिका-जापान मालाबार नौसेना अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल करने के लिए सहमत हो गई. एक भावनाएं यह भी थी कि यदि भारत चीनी कंपनियों पर अपनी निर्भरता कम करता है तो वह स्थिति अमेरिकी कंपनियों के लिए अवसर प्रदान कर सकती है.

इन सब के बावजूद भारत उन डिप्लोमेटिक प्लेटफार्म पर शामिल होता रहा जहां चीन भी सदस्य था, जैसे ब्रिक्स, रूस-भारत-चीन डायलॉग ,शंघाई सहयोग संगठन.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजनीतिक तनाव को भारत-चीन व्यापार ने नजरअंदाज किया

पूर्वी लद्दाख के संघर्ष का असर भारत-चीन व्यापार पर देखने को नहीं मिला.इसका प्रमाण है कि 2020 में चीन को होने वाले भारतीय निर्यात में 10% की वृद्धि हुई और निर्यात 20.86 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया . हालांकि दोनों देशों के बीच कुल व्यापार में 5.6% की कमी हुई और वह 87.6 बिलियन डॉलर हो गया, लेकिन उसका कारण कोविड था. 2020 में दोनों देशों ने आपसी व्यापार घाटे को 2015 के बाद से सबसे निचले स्तर पर ला दिया.

2021 के पहले 5 महीने में दोनों देशों के बीच व्यापार में 70.1% की वृद्धि देखी गई और वह 48.16 बिलियन डॉलर हो गया. मतलब साफ है कि चीन-भारत व्यापार ने दोनों के बीच गलवान हिंसा के बाद मौजूद राजनीतिक तनाव को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है.

इस अजीबोगरीब स्थिति का प्रमुख कारण पूर्वी लद्दाख की घटना की सूचनाओं पर भारत द्वारा सतर्कता बरतना रहा. हालांकि भारत गलवान और पैंगोंग टसो पर चर्चा को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकता था क्योंकि वहां शारीरिक संघर्ष हुआ था लेकिन भारत ने शुरू से ही हिंसा किस स्तर की हुई है,उसे अस्पष्ट रखा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत ने तुरंत ही चीनी सैन्य बल के बराबर अपनी सेना की तैनाती कर दी.हाल ही में आर्मी चीफ एम.एम नरवणे ने बताया कि भारत ने चीन से निपटने के लिए "दृढ़ लेकिन गैर-उग्र रणनीति" अपनाई ताकि हरेक संघर्ष के पॉइंट के दोनों तरफ मौजूद तनाव और सैनिकों की तैनाती को पूरी तरह से हटाया जा सके.

यह जगजाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद गलवान में किसी भी तरह के घुसपैठ से इनकार किया था. उनके मुताबिक भारतीय सेनाओं ने घुसपैठ की कोशिशों को रोका था. सितंबर 2020 में संसद में बोलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी दावा किया कि घुसपैठ की जानकारी हमें मिली थी “और इसके परिणाम स्वरूप हमारे सशक्त बलों ने उचित जवाब दिया”.

जुलाई 2020 में गलवान में पीछे हटने के बाद इस साल 2021 के फरवरी की शुरुआत में ही भारत और चीन के मिलिट्री अधिकारियों ने पैंगोंग क्षेत्र में पीछे हटने पर बातचीत करके सफलता पायी. यहां भी उसी फार्मूला को अपनाते हुए दोनों फोर्स पारस्परिक रूप से सहमत दूरियों पर पीछे हटेंगे और बीच के क्षेत्र को नो-पेट्रोलिंग जोन के रूप में छोड़ देंगे. उस समय राजनाथ सिंह ने कहा था कि अगली बैठक 2 दिन के भीतर बुलाई जाएगी और "बाकी बचे सभी मुद्दों" पर बातचीत करके उन्हें सुलझाया जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चीन से 'बचे बाकी मुद्दे'

बड़ी दिक्कत यह है कि ना प्रधानमंत्री, ना राजनाथ सिंह ने और ना ही रक्षा मंत्रालय ने यह बताया है कि वह 'बाकी बचे मुद्दे' क्या हैं.उन्होंने हमें यह भी नहीं बताया कि अभी भी चीन कई भारतीय क्षेत्रों पर कब्जा करके बैठा है जिसने जमीन पर LAC को नाटकीय रूप से बदलने का काम किया है. यह क्षेत्र है- डेपसांग प्लेन,हॉट स्प्रिंग गोगरा से सटा कुगरंग नदी घाटी और डेमचॉक के दक्षिण में स्थित चार्डिंग नाला. यहां पर घुसपैठ करके चीनियों ने भारतीय सैनिकों के उस क्षेत्रों में पेट्रोलिंग को रोक दिया है जहां वह पहले किया करते थे.

आर्मी चीफ नरवणे और नॉर्थन कमांड चीफ वाई.के जोशी ने दावा किया है कि डेपसांग क्षेत्र में मौजूद कई बड़े विवाद 'विरासती' हैं, यानी यह विवाद 2020 के पहले भी मौजूद थे. लेकिन विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के वेबसाइट के लिए लिखते हुए लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड ) राकेश शर्मा ने कहा कि भारी कठिनाइयों के बावजूद भारतीय बॉर्डर गार्ड्स ने वास्तव में इस क्षेत्र में 2013-19 की अवधि में कम से कम 8-10 पैट्रोलिंग की थी. सूत्रों के मुताबिक दरअसल आखरी पैट्रोलिंग जनवरी-फरवरी 2020 में की गई थी.

यह आश्चर्यजनक है क्योंकि शेष विश्व की निगाह में पूर्वी लद्दाख में सब कुछ ठीक है पैंगोंग टसो और गलवान घाटी के विवाद वाले क्षेत्र से सेनाएं पीछे हट गई हैं और नो-पेट्रोलिंग जोन बना दिया गया है. लेकिन दूसरे क्षेत्रों में मौजूद विवाद के बारे में शेष विश्व को कुछ पता नहीं है.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में विशिष्ट फेलो हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के अपने हैं. इसमें क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×