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सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों की बगावत के मायने

देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसके बाद सभी धड़ों में खलबली मच गई है.

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देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. जिसने खलबली मच गई है. चारों जजों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ठीक नहीं चल रहा है. प्रेस कॉन्फ्रेंस जस्टिस जे चेलमेश्वर के घर पर थी. उनके साथ अन्य तीन जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरिन जोसेफ मौजूद थे.

प्रेस कॉन्फ्रेंस को बुलाने का फैसला हमें मजबूरी में लेना पड़ा. हमारे पास मीडिया के सामने आने के अलावा दूसरा रास्‍ता नहीं बचा था. देश का लोकतंत्र खतरे में है. सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक से काम नहीं कर रहा है. चीफ जस्‍टिस पर अब देश को फैसला करना होगा.
जस्टिस जे चेलमेश्वर, सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज

सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जजों ने भी कहा कि चीफ जस्टिस को हालात सुधारने के लिए कई बार कहा लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रयास विफल रहे.

तो इस कॉन्फ्रेंस के क्या हैं मायने हैं और आगे चलकर क्या परिणाम होंगे ये बता रहे हैं द क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्ट संजय पुगलिया.

चीफ जस्टिस को भेजी गई चिट्ठी

चिट्ठी में लिखा है कि सिद्धांत यही है कि चीफ जस्टिस के पास रोस्टर बनाने का अधिकार है. वह तय करते हैं कि कौन सा केस किस कोर्ट में कौन देखेगा. यह विशेषाधिकार इसलिए है, ताकि सुप्रीम कोर्ट का कामकाज सुचारू रूप से चल सके लेकिन इससे चीफ जस्टिस को उनके साथी जजों पर कानूनी, तथ्यात्मक और उच्चाधिकार नहीं मिल जाता. इस देश के कानून में यह स्पष्ट है कि चीफ जस्टिस और दूसरे जज किसी से ज्यादा या कम नहीं हैं. चिट्ठी के मुताबिक ऐसे भी कई मामले हैं , जो देश के लिए बहुत ही जरूरी हैं. लेकिन, चीफ जस्टिस ने उन मामलों को तार्किक आधार पर देने की बजाय अपनी पसंद वाली बैंच को सौंप दिया.इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए.

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