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क्या योगी की ‘सेस पॉलिसी’ कर पाएगी गायों का कल्याण?

कांजी हाउस को गो-संरक्षण केन्द्र बना देने से क्या होगा?

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भारत
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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सड़कों पर छुट्टा घूमने वाले गोवंश की सुरक्षा के लिए कुछ नये कदम उठाए हैं. कांजी हाउस का नाम बदलकर गो-संरक्षण केंद्र कर दिया गया है और जनता पर गो कल्याण के नाम पर सेस थोप दिया गया है.

अब ये सेस बला क्या है, गायों का इससे कितना कल्याण होगा और शेल्टर होम्स का नाम बदलने से उनकी सूरत कितनी बदलेगी, ये तो हम आपको बाद में बताएंगे. लेकिन पहले जान लेते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट बैठक में गायों की सुरक्षा को लेकर कौन-कौन से कदम उठाए हैं.

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छुट्टा घूमने वाले गोवंश से निपटने के लिए CM का प्लान

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार रात गोवंश के संरक्षण के लिए वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के जरिए सभी जिलों के जिलाधिकारियों को सम्बोधित किया. इस दौरान उन्होंने सड़कों पर छुट्टी घूमने वाले गोवंश के संरक्षण के लिए निर्देश दिए. मसलन-

  • कांजी हाउस का नाम बदलकर गो-संरक्षण केन्द्र रखा जाए
  • 10 जनवरी तक बेसहारा और आवारा गोवंशों को संरक्षण केन्द्र पहुंचाया जाए
  • गो-संरक्षण केन्द्रों में पशुओं के चारे, पानी और सुरक्षा की पूरी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए
  • जहां पर चहारदीवारी नहीं है वहां फेन्सिंग की व्यवस्था की जाए
  • इन केंद्रों में पशुओं की देखरेख करने वालों की नियुक्ति की जाए
  • आवारा पशुओं के मालिकों का पता लगाकर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए
  • गो-संरक्षण केन्द्र से अपने पशु को छुड़ाने के लिए आने वालों से आर्थिक दण्ड वसूला जाए
  • योगी कैबिनेट ने गोसंरक्षण के लिए फंड की व्यवस्था के लिए कुछ सेवाओं पर 0.5 फीसदी सेस लगाया है, इसे गो-कल्याण उपकर नाम दिया गया है
  • गोवंशीय पशुओं के अस्थायी शेल्टर होम्स की स्थापना और संचालन के लिए मंडी शुल्क से प्राप्त आय का दो फीसदी, प्रदेश के लाभकारी उद्यमों और निर्माणदायी संस्थाओं के लाभ का 0.5 फीसदी और यूपीडा जैसी संस्थाओं के टोल टैक्स में 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त राशि गो कल्याण उपकर (सेस) के रूप में ली जाएगी

योगी ने जिलाधिकारियों को यह भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि सभी गो-संरक्षण केन्द्रों में गोवंश का रख-रखाव भली-भांति हो.

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अब बात गो-कल्याण उपकर यानी सेस की

गोवंश की सुरक्षा के लिए योगी सरकार की ओर से उठाए गए एक कदम का नाम है 'गौ कल्याण सेस'. सेस होता क्या है और इसका असर क्या होगा? ये जानने से पहले ये समझ लीजिए कि सरकार को ये कदम उठाने की जरूरत क्यों पड़ी?

यूपी की बागडोर संभालने के बाद सीएम योगी ने जो फैसले लिए उनमें एक फैसला अवैध बूचड़खानों को बैन करना भी था. सरकार के इस फैसले और कथित गोरक्षकों की हिंसक घटनाओं का असर ये हुआ कि यूपी की सड़कों और गांवों में आवारा पशुओं की तादाद काफी बढ़ गई. आवारा पशुओं ने फसलों का नुकसान शुरू किया, तो किसानों ने विरोध जताया. इससे पहले कि विपक्ष आवारा पशुओं को हथियार बनाकर उसका इस्तेमाल आने वाले लोकसभा चुनाव में कर पाता, सीएम ने 'सेस' लगाकर गोवंश की सुरक्षा का बीड़ा उठा लिया.

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सेस होता क्या है?

सेस यानी की उपकर. सरकार कई तरह के फंड बनाती है और इसके लिए जनता से सेस वसूलती है. आम तौर पर सरकारें सेस को किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए लागू करती हैं. जैसे जब सरकार को कोई खास काम के लिए जनता से टैक्स के अलावा पैसा चाहिए होता है, तो सेस लगा दिया जाता है, जैसे कभी पढ़ाई के नाम पर तो कभी सफाई के नाम पर.

उदाहरण के लिए, प्राइमरी शिक्षा पर अलग से खर्च के लिए एजुकेशन सेस. स्वास्थ्य सेवाओं पर अलग से खर्च के लिए हेल्थ सेस. स्वच्छ भारत मिशन के लिए स्वच्छ भारत सेस.

साफ-सुथरा नहीं लगता सेस का इतिहास

मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के लिए सेस वसूला था. सरकार ने 15 नवंबर 2015 को टैक्स वाली सेवाओं पर 0.5 फीसदी स्वच्छत भारत सेस लगाया और जुलाई 2017 में सरकार ने इस सेस को खत्म कर दिया.

वित्त मंत्रालय के मुताबिक, सरकार ने नवंबर 2015 से लेकर जुलाई 2017 तक स्वच्छ भारत सेस के तहत कुल 20,600 करोड़ रुपये वसूले.

न्यूज वेबसाइट द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2015-16 में 3901.83 करोड़ रुपये, 2016-17 में 12306.76 करोड़ रुपये, 2017-18 में 4242.07 करोड़ रुपये और 2018-19 के दौरान 30 सितंबर 2018 तक 149.40 करोड़ रुपये वसूले गए. रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने सेस खत्म करने की घोषणा के बाद भी 4391.47 करोड़ रुपये वसूल लिए.

रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार से जब ये पूछा गया कि सेस के जरिए जुटाई गई रकम को कहां खर्च किया गया, तो सरकार ने जवाब में कहा कि साल 2015-16 में 2400 करोड़ रुपये जारी किये गए, जिसे पूरा खर्च किया जा चुका है. वहीं साल 2016-17 में 10,500 करोड़ रुपये और साल 2017-18 में 3400 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. हालांकि, सरकार ने ये जानकारी नहीं दी कि इन पैसों को स्वच्छ भारत मिशन के किन-किन कार्यों में खर्च किया गया.

इससे पहले की सरकारों ने भी टैक्स पेयर्स से सेकेंडरी एंड हायर एजुकेशन के लिए एक फीसदी सेस, यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड के नाम पर टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स की इनकम पर 5 फीसदी सेस इसके अलावा निर्भया फंड, द नेशनल क्लीन एनर्जी फंड, द रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेस फंड, द सेंट्रल रोड फंड, द इनकम टैक्स वेल्फेयर फंड, द कस्टम्स एंड सेंट्रल एक्साइज वेलफेयर फंड जैसे तमाम फंड्स बनाए और सेस वसूला. लेकिन इनका कितना सदुपयोग हुआ, ये कोई नहीं जानता.

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कांजी हाउस को गो-संरक्षण केन्द्र बना देने से क्या होगा?

देश के तमाम राज्यों में छुट्टा पशुओं के लिए ‘कांजी हाउस’ संचालित होते हैं. इन कांजी हाउस में भूख-प्यास से तड़प तड़प कर जानवरों के मरने की तमाम खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं. इनमें सुधार के प्रयासों के दावे तो तमाम सुने गए हैं, लेकिन जमीन पर कुछ हुआ हो, ऐसा दिखता नहीं है.

लेकिन अब शहरों की तर्ज पर सीएम योगी ने कांजी हाउस का नाम बदलकर गौ संरक्षण केंद्र कर दिया है. अब नाम बदलने से इन शेल्टर होम की सूरत कितनी बदलेगी, ये वक्त ही बताएगा.

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