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कोरोनावायरस पीड़ितों के लिए बेड कम, चिंता पैदा करते हैं आंकड़े 

भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. जाहिर है, लोग ज्यादा हैं तो पेशेंट भी ज्यादा ही होंगे.

Published
भारत
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कोरोनावायरस संक्रमण तेजी से भारत में बढ़ रहा है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इंडियन हेल्थ सिस्टम कोरोना से निपटने के लिए तैयार है? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से लिए गए आंकड़ों की बात करें तो भारत में 84000 लोगों पर 1 आइसोलेटेड बेड और 36000 लोगों पर 1 क्वारंटाइन बेड है. वहीं अगर हम डॉक्टरों की संख्या और हॉस्पिटल में बेड की बात करें तो प्रति 11,600 भारतीयों पर एक डॉक्टर और 1,826 भारतीयों के लिए एक बेड है.

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इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि इन आंकड़ों के चलते ही प्रधानमंत्री मोदी ने जनता कर्फ्यू का आव्हान किया ताकि संक्रमण की दर को कम किया जा सके, जिससे पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर कम दबाव पड़े. आईसीएमआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के डायरेक्टर अनुराग अग्रवाल ने कहा,

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हम ट्रांसमिशन के स्टेज 2 में हैं, और इस स्तर पर सोशल आइसोलेशन बहुत प्रभावी है. स्टेज 3 में लॉकडाउन की जरूरत होती है.

उन्होंने आगे कहा अभी हमारा मकसद है कि संक्रमण की दर को कम करना है और ऐसे में जनता कर्फ्यू बहुत कारगर है. इसका हमें आगे भी पालन करना होगा .मौजूदा आंकड़ों के आधार पर, सरकार सही काम कर रही है.

सवाल ये उठता है कि अगर वायरस देश के बड़े हिस्से पर अटैक करता है तो हमारा मेडिकल सिस्टम इसके लिए कितना तैयार है?

भारत में डॉक्टरों की कमी

2019 में बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से 100 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी. इस दौरान अस्पतालों, दवा और डॉक्टरों की कमी ने राज्य और केंद्र सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया था. 1994, 2014 और 2019  के आंकड़ों को मिला लें तो इसी चमकी बुखार (इंसेफेलाइटिस) ने देश भर में  400 से अधिक बच्चों की जान ली थी. लेकिन अब तक सरकार इस बीमारी का एंटीडोट खोजने में सफल नहीं हो पाई है.

WHO के मुताबिक भारत में डॉक्टरों का अनुपात 1:1000 है, यानी 1000 की आबादी पर 1 डॉक्टर. ये यूरोप और पश्चिमी देशों से काफी कम है. हिंदुस्तान टाइम्स ने WHO की 2016 की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि इंडिया में खुद को एलोपैथिक डॉक्टर कहने वाले 31.4% केवल 12 वीं कक्षा तक पढ़े हुए थे और 57.3% डॉक्टरों के पास मेडिकल योग्यता नहीं थी.

भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. जाहिर है, लोग ज्यादा हैं तो पेशेंट भी ज्यादा ही होंगे.
भारत में 1000 की आबादी पर 1 डॉक्टर
(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी/अरुप मिश्रा)

मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सरकारी अस्पतालों की संख्या 35,416 है, जिसमें करीब 14 लाख बेड हैं. आसान भाषा में इसे समझें तो औसतन 879 लोगों के लिए एक सरकारी अस्पताल की बेड है. बिहार, झारखंड और यूपी में तो हालात भयावह हैं.

भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. जाहिर है, लोग ज्यादा हैं तो पेशेंट भी ज्यादा ही होंगे.
भारत में 789 व्यक्तियों के लिए सरकार की तरफ से एक बेड उपलब्ध है
(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी/अरुप मिश्रा)
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हेल्थ पर GDP का सिर्फ 3.89% खर्च

भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. जाहिर है, लोग ज्यादा हैं तो पेशेंट भी ज्यादा ही होंगे. लेकिन विश्व की सातवीं बड़ी इकनॉमी वाला देश भारत अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए जीडीपी का सिर्फ 3.89% खर्च करता है. 2019-20 के बजट में हेल्थ सेक्टर के लिए 61,398 करोड़ रूपए दिए गए थे, जबकि नए बजट में 69 हजार करोड़ दिए गए हैं. पिछले साल के मुकाबले देखा जाए तो यह सिर्फ 8 हजार करोड़ ज्यादा है.

भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. जाहिर है, लोग ज्यादा हैं तो पेशेंट भी ज्यादा ही होंगे.
भारत में हेल्थ पर GDP का सिर्फ 3.89%  खर्च होता है
(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी/अरुप मिश्रा)

यूके तो अपने देश के छात्रों को लाइफ टाइम स्वास्थ्य बीमा भी देता है. इंग्लैंड में अगर कोई विदेशी छात्र 6 महीने से ज्यादा वक्त बिताता है तो उसे भी ये बीमा मिलता है. एम्स जैसे अस्पताल, जहां अच्छा और सस्ता इलाज मिलता है, देश में बेहद कम हैं. इस कारण मरीजों को हफ्तों और कई बार महीनों का इंतजार करना पड़ता है.

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रिसर्च पर ध्यान नहीं

इकनॉमिक्स टाइम्स में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक सरकार ने साल 2019-20 में रिसर्च के लिए सिर्फ 1939.76 करोड़ रुपये आवंटित किया था. Who की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत रिसर्च पर अपनी जीडीपी का 1 % से भी कम खर्च करता है.

भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. जाहिर है, लोग ज्यादा हैं तो पेशेंट भी ज्यादा ही होंगे.
रिसर्च पर भारत GDP का 1% से भी कम खर्च करता है.
(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी/अरुप मिश्रा)

कुल मिलाकर हम कोरोनावायरस जैसी घातक बीमारी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है. चीन जो हेल्थ केयर को लेकर हमसे ज्यादा गंभीर दिखता है, उसकी कमर ये वायरस तोड़ रहा है, तो सोचिए हमारे देश में ऐसा कोई वायरस चीन की तरह बड़े पैमाने पर पांव पसारे तो क्या होगा?

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