ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार में बीमार सिस्टम के सताए सीमांचल के मरीजों की कहानियां  

आंकड़े भी बयां करते हैं हालात की गंभीरता

Updated
राज्य
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

सीमांचल सहित पूरा बिहार आज स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली से हांफ रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों के पिछड़े होने की वजह से गरीब-मजदूरों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. ग्रामीण क्षेत्रों के आधे परिवारों को इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है. सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और नाकामी से गरीब-मजदूर और आमजन प्राइवेट मेडिकल मार्केट का रुख करने के लिए मजबूर हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अररिया लोकसभा के नरपतगंज स्थित खैरबन्ना गांव निवासी राजन ऋषिदेव कई रातों से सोए नहीं हैं. वह दिन-रात लगातार कुर्सी पर बैठकर समय बीतने का इंतजार करते रहते हैं. राजन के पेट में सूजन है जो लगातार बढ़ती जा रही है. राजन लॉकडाउन से पहले भटिंडा में बोरा ढोने का काम करते थे. भटिंडा में ही उनके पेट में दिक्कत शुरू हुई जो लगातार बढ़ती गई. इसके बाद वह इलाज करवाने के लिए वापस अपने गांव आ गए. उन्होंने बताया, ''14 साल की उम्र से मजदूरी कर रहे हैं. शरीर इतना मजबूत था कि पिछले 25 सालों से लगातार खट रहे हैं. मगर आज हालत यह है कि दो कदम चलने में हांफ जाते हैं.''

0

राजन ऋषिदेव के पेट में गैस बनने से शुरू हुई दिक्कत इतनी बढ़ गई है कि वह खुद से पानी तक नहीं पी पाते हैं. इलाज करवाने में अब तक उनका 35000-40,000 रुपये का खर्चा हो गया है. 6 लोगों के परिवार के लिए अकेले कमाने वाले राजन ने बताया कि, ''शुरू-शुरू में पेट में गैस बननी शुरू हुई तो पहले छोटे-मोटे डॉक्टर को दिखाया. दिक्कत बढ़ती गई तो फारबिसगंज में प्राइवेट डॉक्टर को दिखाया, मगर वहां के इलाज से भी कोई सुधार नहीं हुआ. कुछ रिश्तेदारों से मांगकर, तो कुछ ब्याज पर कर्जा उठाकर अब तक 35-40 हजार रुपये इलाज में लगा चुके हैं. अब इलाज का पैसा खत्म हो गया है. पैसों के अभाव में दवाई भी बंद है. पेट में सूजन है हमेशा दम फूलता रहता है. कभी 14-16 घंटा मजदूरी कर लेते थे, आज कुर्सी से उठने तक की हिम्मत नहीं बची है.''

आंकड़े भी बयां करते हैं हालात की गंभीरता
अपनी बेटियों के साथ राजन ऋषिदेव
(फोटो: क्विंट हिंदी)
इसके अलावा राजन ने बताया कि, ‘’पता करने पर बताया गया कि लॉकडाउन के कारण सरकारी अस्पताल बंद है और उसमें इलाज नहीं हो रहा है. वहां सिर्फ बड़े-बड़े पेशेंट को भर्ती करते हैं, गरीबों को पूछने वाला कोई नहीं है. घर में खाने के लिए अन्न का एक दाना भी नहीं बचा है. इसी कारण पत्नी मायके गई है ताकि कुछ मांगकर ला सके और बाल-बच्चे का पेट भर सके. घर में तीन छोटी बेटियां हैं और 10-12 साल का एक बेटा है. मगर बाप की हालत देखकर 15 रोज पहले कमाने के लिए पंजाब चला गया.’’

पैसों के अभाव में रुका ललिता देवी का भी इलाज

खैरबन्ना की ही ललिता देवी के शरीर का एक हिस्सा ठंड लगने की वजह से काम नहीं करता है. 6 महीने पहले ललिता देवी के पेट में दर्द शुरू हुआ था. जांच के दौरान पता चला कि लीवर में सूजन है.

उन्होंने बताया कि, ''पेट में दर्द तो 6 महीनों से है मगर पिछले एक-डेढ़ महीनों से बहुत दिक्कत है. शुरू में दर्द होने पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नरपतगंज गए तो वहां चार बोतल पानी चढ़ाकर डिस्चार्ज कर दिया. उसके बाद फारबिसगंज और नरपतगंज में प्राइवेट डॉक्टर को दिखाया मगर कोई सुधार नहीं हुआ. अभी पूर्णिया में एक प्राइवेट डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं. मगर परेशानी कम नहीं हो पा रही है.''

आंकड़े भी बयां करते हैं हालात की गंभीरता
ललिता देवी
(फोटो: क्विंट हिंदी)
ललिता देवी ने बताया कि उनके इलाज में अब तक 82,000 रुपये का खर्चा हो गया है. ये पैसे उन्होंने 5 टका ब्याज पर उठाए हैं मगर अब पैसों के अभाव में इलाज रुका हुआ है.

‘निजी अस्पताल के बिल देने के लिए लेना पड़ा कर्ज’

यहीं के वॉर्ड नं-3 की गुड़िया देवी को पिछले महीने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नरपतगंज ले जाया गया था. इसके बारे में गुड़िया देवी की सास उम्दा देवी ने बताया, ''दर्द उठने पर हम लोग पहले नरपतगंज के सरकारी अस्पताल में गए. वहां बच्चा हुआ मगर बच्चे ने ना आंख खोली और ना ही वो रोया. उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. वहां से पेशेंट को फारबिसगंज के निजी अस्पताल में रेफर कर दिया गया. उस अस्पताल में हम लोगों को 2 दिन रखा गया और वहां 30-35 हजार का खर्चा आया. वहां से हम लोग पूर्णिया के एक निजी अस्पताल में गए जहां पेशेंट को 4-5 दिन रखा गया. उसके बाद 40 हजार के बिल का सारा पैसा अकाउंट में मंगवाकर बोला कि बच्चा मर गया है. हमने ब्याज पर कर्जा उठाया और हमारी गाय-माल, बकरी तक बिक गई.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

'करीब 20 सालों से हार्निया, पैसों की कमी के चलते नहीं हो पाया इलाज'

अररिया के कुर्साकांटा स्थित मैगरा के ऋषिदेव टोला के 45 साल के गयानन ऋषिदेव 16 साल की उम्र से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसी जगहों पर मजदूरी करते रहे हैं. लॉकडाउन से पहले काम छूट जाने के कारण वापस गांव आ गए. गयानन ऋषिदेव पिछले करीब 20 सालों से हार्निया से ग्रसित हैं. मगर आज तक इलाज के लिए एकमुश्त 25,000 रुपये का इंतजाम नहीं हो पाया.

आंकड़े भी बयां करते हैं हालात की गंभीरता
गयानन ऋषिदेव
(फोटो: क्विंट हिंदी)

बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि, ''कष्ट अब बहुत बढ़ गया है. पिछले 29-30 साल से लगातार मजदूरी कर रहे हैं. शुरू-शुरू में जब पंजाब गए थे तो 300 रुपये महीना के मिलते थे. उसके बाद दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में जाकर कई अलग-अलग तरह का काम किया. मगर हार्निया के इलाज के लिए एकमुश्त 25,000 का कभी इंतजाम नहीं हो पाया. कई बार सरकारी अस्पताल गए मगर वहां इलाज नहीं किया गया. प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज कराने की सामर्थ्य नहीं है. ऐसे में अब बाहर जाने की हालत में नहीं हैं.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

गांव में ही रहकर जन जागरण शक्ति संस्थान के साथ जुड़कर स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली मुन्नी देवी ने बताया कि, ''इस बस्ती में ज्यादातर गरीबों का घर है. यहां पर टीबी से लेकर लिवर की बीमारी तक के पेशेंट हैं. स्वास्थ्य केंद्रों में भयानक लापरवाही बरती जाती है. वहां मरीजों की कोई सुनवाई नहीं होती और न ही उनकी देखभाल की जाती है. साथ ही इलाज के लिए ज्यादा बोलने पर डांटकर भगा दिया जाता है.’ पूछने पर उन्होंने बताया कि, “सरकारी व्यवस्था में पेशेंट से नीचे से ऊपर तक पैसा लिया जाता है. एएनएम, नर्स, ममता, आशा और एम्बुलेंस वाले, सब पैसे लेते हैं. मरीज ये सुनने के आदी हो चुके हैं, ‘पैसा दही, बिना पैसा के काम नै हेतो’.”

मुन्नी देवी ने बताया कि जानबूझकर सरकारी अस्पतालों से पेशेंट को प्राइवेट क्लिनिक/अस्पताल में रेफर किया जाता है. उन्होंने बताया कि यहां के गरीब-मजदूरों की बस्ती में कुपोषण के कारण बीमारी की संख्या बढ़ जाती है. हर गरीब को आयुष्मान भारत योजना या स्वास्थ्य संबंधित किसी सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, ये जरूरी नहीं है.

इस बाबत अररिया के सिविल सर्जन डॉ. रूप नारायण कुमार से संपर्क किया गया, मगर तबीयत खराब होने की वजह से उनसे बात नहीं हो पाई. उनकी तरफ से उनके निजी सहायक दीपक कुमार ने बताया कि, ‘इस तरह की कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं. मगर इलेक्शन ड्यूटी की व्यस्तता के कारण इस पर एक्शन नहीं लिया गया है. इलेक्शन खत्म होते ही सिविल सर्जन द्वारा निरीक्षण करने के बाद इस पर त्वरित कारवाई की जाएगी और सुधार का काम किया जाएगा.’ इस संबंध में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नरपतगंज के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. बिपिन कुमार से भी संपर्क करने की कोशिश की गई, उनसे संपर्क नहीं हो पाया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालात की गंभीरता बयां करते आंकड़े

स्टेट हेल्थ सोसाइटी, बिहार के आंकडों के मुताबिक, राज्य के 534 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से एक भी पूरी तरह फंक्शनल नहीं है. साथ ही राज्य के 466 रेफरल अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिर्फ 67 फंक्शनल हैं. बिहार के अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ्स की भी भारी कमी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, प्रति एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना होना चाहिए. इंडियन मेडिकल काउंसिल भी 1681 लोगों पर एक डॉक्टर की जरूरत बताता है. मगर नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 28391 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर हैं.

बिहार में चिकित्सा पदाधिकारी के कुल स्वीकृत पद 10609 हैं. जिसमें से 6437 पद खाली हैं. साथ ही यहां नर्सिंग स्टाफ्स के कुल स्वीकृत 14198 पदों में से 9100 से ज्यादा पद खाली हैं. बिहार में डॉक्टर्स के करीब 61% पद खाली पड़े हैं. बिहार के कुल 1899 पीएचसी में 75% पीएचसी में सिर्फ 1 डॉक्टर है. 11 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य इस मामले में देश में तीसरे स्थान पर है. इतनी बड़ी आबादी के लिए बिहार में सिर्फ 13 मेडिकल कॉलेज हैं और उसमें सिर्फ 1350 सीटें हैं.

अररिया जिले में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली जन जागरण संस्थान से जुड़ीं कल्याणी बताती हैं कि संस्था के हस्तक्षेप के बाद सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में थोड़ी सुनवाई होती है. उन्होंने बताया कि, ''संस्था द्वारा करवाए जा रहे सर्वे में यह बात निकलकर सामने आ रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में हर दूसरे परिवार ने इलाज के लिए कर्ज ले रखा है. यहां के लोग इलाज के लिए प्राइवेट क्लिनिक/अस्पताल का रुख करते हैं क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था नहीं है. यहां तक कि कुछ महीनों पहले तक सदर अस्पताल, अररिया में ऑपरेशन से डिलीवरी की सुविधा तक नहीं थी. सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में लोगों तो अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिलता जिससे लोगों का अविश्वास इसके प्रति बढ़ रहा है.''

ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में सीमांचल की जनता सुधार की सिर्फ आस देख रही है. सरकारी दावे से इतर स्वास्थ्य सुविधा अब भी आम लोगों की पहुंच तक नहीं पहुंच पाई है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×