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म्यांमार में 500 लोगों का कातिल कौन? रोहिंग्या नरसंहार में भी हाथ

म्यांमार में तख्तापलट के बाद से हो रहे प्रदर्शनों में 500 से ज्यादा लोगों की मौत

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म्यांमार की सेना ने 1 फरवरी को देश की नेता आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर तख्तापलट कर दिया था. म्यांमार कुछ ही सालों पहले सैन्य शासन से लोकतंत्र पर लौटा था. सेना ने अपने कदम को जायज ठहराने के लिए कहा कि 2020 में हुए चुनावों में 'धांधली' हुई थी. इन चुनावों में सू ची की पार्टी NLD को बड़ी जीत हासिल हुई थी. अब म्यांमार में प्रदर्शन हो रहे हैं और सेना बर्बरता दिखा रही है. 500 से ज्यादा लोग मारे जा चुके है और इस सबके लिए जिम्मेदार व्यक्ति का नाम है- मिन आंग लाइंग.

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लाइंग म्यांमार की ताकतवर सेना (Tatmadaw) के प्रमुख हैं. तख्तापलट से पहले भी लाइंग का राजनीतिक प्रभाव अच्छा-खासा था. 2011 में जब म्यांमार ने लोकतंत्र को अपनाया, तब भी मिन आंग लाइंग का वर्चस्व कम नहीं हुआ.

कई जनरल को मात देकर बने आर्मी प्रमुख

64 साल के मिन आंग लाइंग ने यांगून यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई की थी. ये 1970 का दशक था और म्यांमार में पॉलिटिकल एक्टिविज्म बढ़ रहा था. हालांकि, रॉयटर्स की रिपोर्ट कहती है कि लाइंग इस सबसे दूर रहे.

लाइंग को तीसरे प्रयास में 1974 में डिफेंस सर्विसेज अकादमी में प्रवेश मिला. लाइंग को लगातार प्रमोशन मिलता रहा और वो सफलता की सीढ़ी चढ़ते रहे. 2009 में वो ब्यूरो ऑफ स्पेशल ऑपरेशन्स- 2 के कमांडर बन गए.

2011 में जब देश लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर बढ़ रहा था तो मिन आंग लाइंग के हाथों में सेना की कमान आ गई. इस पद पर वो कई वरिष्ठ जनरलों को मात देकर पहुंचे थे.

2016 में जब आंग सान सू ची का पहला कार्यकाल शुरू हुआ था, तो लाइंग ने खुद को एक सैनिक से एक राजनेता और पब्लिक फिगर में बदल लिया. उनके फेसबुक पर दूसरे देशों के नेताओं के साथ की तस्वीरें और बैठकों की जानकारी दी जाती थी.

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राजनीति में भी सक्रिय रही सेना

2008 में म्यांमार का तीसरा और मौजूदा संविधान लिखा गया था. इसे सेना ने ही लिखा था. लोकतंत्र बनने से पहले सेना ने राजनीतिक व्यवस्था में अपनी भूमिका को स्थायी कर लिया था.

सेना को 25 फीसदी संसदीय सीट का कोटा दिया गया था और सेना का प्रमुख रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और सीमा के मामलों पर एक मंत्री को नियुक्त करता है. इससे सेना का किसी भी सरकार में प्रभाव बना रहता है.

सू ची के सत्ता में आने के बाद लाइंग ने उनके साथ सार्वजानिक मौकों पर दिखना और काम के तरीकों में बदलाव किया था. लेकिन उन्होंने कभी भी संविधान में संशोधन या सेना की ताकत सीमित नहीं होने दी.

फरवरी 2016 में मिन आंग लाइंग ने म्यांमार सेना प्रमुख के तौर पर अपना कार्यकाल पांच सालों के लिए बढ़ा दिया था. उनके इस कदम ने लोगों को हैरान कर दिया था, क्योंकि कयास लगाए जा रहे थे कि वो सेना के रेगुलर फेरबदल में पद छोड़ देंगे.

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नरसंहार के आरोप और US के प्रतिबंध

2016 और 2017 में म्यांमार की सेना ने देश के उत्तर में स्थित रखाइन राज्य में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों का उत्पीड़न तेज कर दिया था. सेना पर गैंगरेप, हत्या, बर्बरता जैसे आरोप लग रहे थे. लाखों रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार से भाग कर पड़ोसी बांग्लादेश और भारत में शरण ली.

सेना प्रमुख मिन आंग लाइंग की दुनियाभर के नेताओं ने निंदा की और 'नरसंहार' का आरोप लगाया. अगस्त 2018 में यूएन मानवाधिकार परिषद ने कहा:

“कमांडर-इन-चीफ मिन आंग लाइंग समेत म्यांमार के शीर्ष सैन्य जनरलों की जांच होनी चाहिए और इन पर रखाइन राज्य में नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध और रखाइन में युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलना चाहिए.”

परिषद के इस बयान के बाद फेसबुक ने लाइंग का अकाउंट डिलीट कर दिया था.

अमेरिका ने लाइंग और तीन सैन्य जनरलों पर 2019 में प्रतिबंध लगाए थे. इसके अलावा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस समेत कई अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में उनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं.

2019 में यूएन के जांचकर्ताओं ने दुनियाभर के नेताओं से म्यांमार सेना से जुड़ी कंपनियों पर वित्तीय प्रतिबंध लगाने की अपील की थी.

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