90 के दशक में बालीवुड स्टार शाहरुख खान की एक फिल्म आई थी, नाम था बाजीगर. उसमें एक डायलॉग था. हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं. समझ लीजिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी कुछ ऐसे ही बाजीगर हैं. अब मैं कोई फैन-बॉय टाइप डायलॉग नहीं दे रहा बल्कि इस बात के पीछे मजबूत तर्क हैं.
अब चाहे विधानसभा चुनाव में सीट कितनी भी आए फिर भी नीतीश कुमार ने पिछले 17 सालों से बिहार की सत्ता अपने हाथ से जाने नहीं दिया है. फिर लालू यादव (Lalu Yadav) से हाथ मिलाकर हाथ झटकना हो, या नरेंद्र मोदी के नाम पर बगावत करना हो. नीतीश मुख्यमंत्री की सीट पर जमे हुए हैं.
हालांकि साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में सीट कम होने के बाद से नीतीश को लेकर 'छोटा भाई,' 'तीसरे नंबर की पार्टी,' 'कमजोर पड़ गए,' 'सीएम की चलती नहीं है' टाइप बातें शुरू हो गई थी, लेकिन पिछले कुछ वक्त से नीतीश के कुछ फैसलों ने उनके आलोचकों और विरोधियों के छोटा भाई-बड़ा भाई वाले तर्क पर तीखा प्रहार किया है. नीतीश कुमार ने बड़े भाई यानी बीजेपी को कंट्रोल में कर रखा है.
अब आप कहेंगे ऐसा क्या कर दिया नीतीश कुमार ने जो वो मजबूत या बारगेनिंग पावर के रोल में नजर आ रहे हैं. आइए आपको उन तीन मुद्दों से मिलवाते हैं जो बता रहे हैं कि फिलहाल नीतीश 'झुकेगा नहीं' वाले रोल में हैं.
1. जातीय जनगणना
बिहार में जातीय जनगणना को लेकर नीतीश कुमार फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं. बिहार विधानसभा में जाति जनगणना को लेकर दो बार प्रस्ताव पारित कराया है. जाति जनगणना की मांग को लेकर विपक्षी नेता तेजस्वी के साथ पीएम मोदी से मिलने भी पहुंच गए थे. लेकिन जब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा कि जनगणना में ओबीसी जातियों की गिनती एक लंबा और कठिन काम है इसलिए 2021 की जनगणना में इसे शामिल नहीं किया जाएगा. तो फिर नीतीश और तेजस्वी की गोलबंदी शुरू हो गई. बिहार में ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई. नीतीश ने मीटिंग के बाद कहा,
जातिगत जनगणना पर जल्द ही कैबिनेट फैसला करेगी और इसपर सभी दलों की सहमति के बाद तेजी से काम होगा और इसे तय समय सीमा पर निपटा लिया जाएगा. इस जनगणना की सारी जानकारी पब्लिक के सामने उपलब्ध होगी.
नीतीश का दबाव ऐसे रहा कि जो बीजेपी केंद्र में जाती जनगणना के खिलाफ है वो बिहार में नीतीश की हां में हां मिला रही है. नीतीश का विरोध या खुद को किनारे तक नहीं कर रही. जिस जनता दल यूनाइटेड के खाते में साल 2020 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 43 सीटें आई थीं, वो सबसे ज्यादा 77 सीट वाली बीजेपी को आंख दिखा रही है.
राज्यसभा टिकट
राज्यसभा चुनाव को लेकर भी नीतीश का बॉस वाला स्टाइल दिखा. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने पीएम मोदी के कसीदे पढ़ने वाले केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का पत्ता साफ कर दिया. नीतीश ने उनकी जगह पूर्व विधायक और झारखंड जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. जिस RCP सिंह को जेडीयू में नंबर दो कहा जाता था वो नीतीश के सामने नंबर सिस्टम से ही गायब नजर आने लगे.
ज्ञानवापी मस्जिद
जहां बीजेपी के लिए मस्जिद और मंदिर को लेकर एक और मुद्दा मिल गया है वहीं नीतीश इससे खुद को अलग रख रहे हैं. जहां एक तरफ बीजेपी की उपमुख्यमंत्री रेणु देवी कह रही हैं कि ज्ञानवापी पर सच्चाई सामने आनी चाहिए. हम नहीं मानते कि समाज में सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा. अगर हमारे पास कोई सांस्कृतिक विरासत है, तो इसे सार्वजनिक होना चाहिए. वहीं दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर टिप्पणी करने से इनकार कर देते हैं. मीडियाकर्मियों से बातचीत में नीतीश कहते हैं, "इस पर मेरी कोई राय नहीं है.आप (मीडियाकर्मी) अपनी टिप्पणी करने के लिए स्वतंत्र हैं."
ज्ञानवापी पर अपने पत्ते न खोलकर एक तरह से नीतीश अपने ऑप्शन खुले रख रहे हैं और बीजेपी को कनफ्यूजन में रख रहे हैं.
इससे पहले भी नीतीश कुमार बीजेपी के स्टैंड से अलग जाकर बिहार विधानसभा में एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था.
मतलब साफ है नीतीश 'बड़े भाई' बीजेपी को कंट्रोल में रखना चाहते हैं. अपनी शर्तों पर सरकार चलाना चाहते हैं और सीट के मामले में कमजोर होकर भी 'बाजीगर' बने रहना चाहते हैं.
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