“करवा चौथ पर किडनी देकर पत्नी ने दिया पति को जीवन का उपहार”
“पति के लिए अंगदान कर पत्नी ने दी प्रेम की मिसाल"
अक्सर ऐसी खबरें आपके सामने से गुजरती होंगी और आप अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाते होंगे. मन ही मन सोचते होंगे ये होती हैं औरतें. करुणा, त्याग और दया की देवी. इसे ही तो मानता है समाज औरतों का असली गहना.
लेकिन कभी कोई ये नहीं पूछता कि जीवन का उपहार पति अपनी पत्नी को क्यों नहीं देता?
ये सवाल मेरे मन में क्यों आया चलिए बताती हूं. रिसर्च कहती है कि भारत में आॅर्गन डोनेट करने वाले परिजनों में अधिकांश महिलाएं होती हैं. एम्स, पीजीआई चंडीगढ़ और नारायणा हाॅस्पिटल, हैदराबाद के कई प्रतिष्ठित संस्थाओं के रिसर्चर्स ने इससे जुड़े आंकड़े जुटाए हैं.
महिलाओं और पुरुष के बीच इन आंकड़ों का अंतर जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे.
अंगदान करने वाले परिजनों में 85% तक महिलाएं होती हैं जबकि अंग पाने वालो में सिर्फ 10% महिलाएं हैं. पति और पत्नी के बीच होने वाले अंगदान में तो 90 से 95% तक पत्नियां हैं. पति कम मामलों में ही पत्नी के लिए अंग दान करते पाए गए.
यानी मां, बेटी, बहन, पत्नी IS EQUAL TO त्याग..त्याग..त्याग!
सवाल उठता है ऐसा क्यों? इतना बड़ा अंतर क्यों है?
दरअसल हमारे यहां ये महिलाओं की सांस्कृतिक ट्रेनिंग का हिस्सा है. महिलाएं कई बार खुद परिवार के मर्दों को बचाने के लिए आॅर्गन डोनेट करने के लिए आगे आ जाती हैं, क्योंकि परिवार में कमाने वाला अक्सर पुरुष ही होता है. इससे पता चलता है कि जेंडर के मामले में आर्थिक बराबरी अभी भी एक सपना ही है.
ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं और मुमकिन है कि बड़ी संख्या में ऐसे केस घर से बाहर न निकल पाते हों, जब महिलाओं ने सामाजिक-पारिवारिक दबाव के कारण अनिच्छा से किडनी या कोई अंग दिया. जानकर हैरानी होगी की ऐसी शादियों की भी खबरें आई हैं, जिनमें ब्लड ग्रुप शादी से पहले मैच कर लिया गया और पति ने शादी के बाद किडनी या कोई अंग लेकर पत्नी को तलाक दे दिया.
अंगदान के लिए परिवार की महिलाओं की सहमति उनकी एक खास मानसिकता की वजह से भी आती है, जिसमें उन्हें बचपन से ये सिखाया जाता है कि महिलाओं को पति-भाई-बेटे के लिए त्याग करना चाहिए.
व्रत-त्योहार तक तो फिर भी ठीक है लेकिन बिना कंसेंट का अंगदान भयावह स्थिति का आभास कराती है. इनको कौन बताए कि जीवन की कीमत जेंडर से तय नहीं होती. ये तो किसी सभ्य समाज में पहली और आखिरी शर्त होनी चाहिए.
पूरी स्टोरी पढ़ें-
प्राणप्रिये, तुम मुझे किडनी दे दो... अंगदान का बोझ उठातीं महिलाएं
(क्विंट और बिटगिविंग ने मिलकर 8 महीने की रेप पीड़ित बच्ची के लिए एक क्राउडफंडिंग कैंपेन लॉन्च किया है. 28 जनवरी 2018 को बच्ची का रेप किया गया था. उसे हमने छुटकी नाम दिया है. जब घर में कोई नहीं था,तब 28 साल के चचेरे भाई ने ही छुटकी के साथ रेप किया. तीन सर्जरी के बाद छुटकी को एम्स से छुट्टी मिल गई है लेकिन उसे अभी और इलाज की जरूरत है ताकि वो पूरी तरह ठीक हो सके.छुटकी के माता-पिता की आमदनी काफी कम है, साथ ही उन्होंने काम पर जाना भी फिलहाल छोड़ रखा है ताकि उसकी देखभाल कर सकें. आप छुटकी के इलाज के खर्च और उसका आने वाला कल संवारने में मदद कर सकते हैं. आपकी छोटी मदद भी बड़ी समझिए. डोनेशन के लिए यहां क्लिक करें.)
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