देश में कोरोना महामारी के संकट के बीच ऑक्सीजन की कमी बड़ी समस्या बनकर उभरी है. हजारों लोगों ने ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से दम तोड़ दिया. नौबत यहां तक आ गई कि भारत को अब विदेशों से ऑक्सीजन जेनेरेशन प्लांट्स और कंटेनर्स को आयात करना पड़ा. आखिर क्यों और कैसे आई ऑक्सीजन की कमी? इस विषय पर क्विंट हिंदी के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने बात की इंफ्रास्ट्रक्चर विशेषज्ञ और फीडबैक इंफ्रा ग्रुप के चेयरमैन विनायक चटर्जी से, जिन्होंने ऑक्सीजन की कमी, डिमांड, सप्लाई और उससे जुड़े विषयों पर अहम सुझाव दिए.
देश में ऑक्सीजन की इतनी बड़ी कमी क्यों हुई?
कोरोना महामारी को लेकर देश में जो संकट जारी है उसे लेकर ब्लेम गेम चल रहा है. अगर हम अतीत में जाते हैं तो पिछले साल अक्टूबर से लेकर मार्च 2021 तक हम लोगों ने काफी लापरवाही की. इसके अलावा मीडिया व अन्य स्वतंत्र संस्थाओं ने भी भविष्य के इस संभावित खतरे को लेकर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई. चुनाव आयोग के पास इस बात का अधिकार है कि वो चुनावों को रद्द कर दे. कोर्ट ने कई मामलों में स्वतः संज्ञान लेते टिप्पणी की है. लेकिन कोरोना के मामले में ऐसा देखने को नहीं मिला. जबकि हम जानते थे कि आगे चलकर यह महामारी भयानक रूप ले सकती है. सरकार ही नहीं पूरा सिस्टम ही कोरोना महामारी के खतरे को भांपने में नाकाम रहा.
कोरोना की पहली लहर के बाद भी हम हेल्थ सिस्टम को दुरुस्त नहीं कर पाए?
राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्सीजन की डिमांड और सप्लाई में कोई अंतर नहीं है. दरअसल कोरोना के मामलों में अचानक उछाल आने से कुछ राज्यों में ऑक्सीजन की डिमांड तेजी से बढ़ी. ऑक्सीजन की सप्लाई पूर्व और दक्षिण भारत में है जबकि डिमांड उत्तर भारत में ज्यादा देखने को मिली. राज्यों के बीच ऑक्सीजन के डिमांड और सप्लाई में अंतर की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई. इसके अलावा ऑक्सीजन के लिए सिलेंडर और क्रोयनेजिक कंटेनर की कमी भी ऑक्सीजन शॉर्टेज का कारण बनी.
इनविजिबल इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार का ध्यान क्यों नहीं होता?
विनायक चटर्जी ने बताया कि शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर हमारे देश में कई सालों से बहस चलती आ रही है कि इसमें कमी है. लेकिनअब तक कोई काम नहीं किया गया.
ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है?
कोरोना वायरस की सेकंड वेव को हैंडल करने के लिए वॉर रूम बनाने की जरूरत है. नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के तहत वॉर रूम बनाना चाहिए,ताकि इस विषय के बेहतर तरीके से मॉनिटरिंग की जा सके. हमें टेक्नोक्रेटिक लीडर चाहिए, हमें ऑपरेशन, रिसर्च टीम की जरूरत है. जो कि हालात की समीक्षा करके सरकार को सुझाव दे और फिर सरकार की जिम्मेदारी है कि वो उस पर काम करे.
क्या देश में कोरोना के खिलाफ लड़ाई को लेकर अब तक वॉर रूम नहीं बना है?
कई राज्यों में सरकारें, स्थानीय प्रशासन और मेडिकल एक्सपर्ट ने कोरोना महामारी को लेकर कंट्रोल रूम बनाए हैं और वे तेजी से इस पर काम कर रहे हैं. वहीं केंद्र सरकार ने भी कंट्रोल और कमांड रूम तैयार किए हैं. हालांकि फिर भी हमें इस विषय पर एक विस्तृत सोच के साथ आगे बढ़ना है. क्योंकि यह पूरी तरह से टेक्निकल और ऑपरेशनल सब्जेक्ट हैं. जहां ऑक्सीजन की डिमांड और सप्लाई को मैनेज करना है. यह वॉर रूम की ही जिम्मेदारी है कि वो देश में ऑक्सीजन की डिमांड और सप्लाई को बेहतर तरीके से मैनेज करे.
नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी में बदलाव की जरूरत क्यों?
पिछले कुछ सालों में नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने च्रकवात और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को लेकर बेहतर काम किया है. लेकिन अब हालात को देखते हुए इसमें बदलाव की आवश्यकता है. देश के पॉलिसी मेकर्स को जरूरत है कि इसे नया आकार दें, साथ ही NDMA की कमान गृह सचिव के हाथ में नहीं होनी चाहिए क्योंकि उन्हें कई और जिम्मेदारियों पर भी ध्यान देना पड़ता है. NDMA को स्वतंत्र रूपसे कार्य करना चाहिए और इसमें तैनात हर अधिकारी की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए. इसलिए अब समय आ गया है कि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट में बदलाव किए जाएं.
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