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मोदी मजबूत ‘चौकीदार’,फिर BSNL,एयर इंडिया जैसी संस्थाएं बेहाल क्यों

BSNL ही नहीं MTNL, ONGC, एयर इंडिया, HAL, पब्लिक सेक्टर बैंक जैसी कई सरकारी संस्थाएं सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैं

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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

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पीएम मोदी पिछली सरकारों को कमजोर और खुद को मजबूत ‘चौकीदार’ बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. UPA सरकार पर सरकारी संस्थाओं को कमजोर करने का आरोप लगा रहे हैं. तो क्या मोदी सरकार में सरकारी संस्थाओं के 'अच्छे दिन' आ गए? बीएसएनएल, ओएनजीसी, एयर इंडिया जैसे सरकारी संस्थाओं की कहानी सुनने के बाद तो ऐसा नहीं लगता.

2008 तक जो बीएसएनएल सरकार को कर्ज देती थी वो आज 16,000 करोड़ से ज्यादा के कर्जे में डूब चुकी है. यहां तक कि अपने एम्प्लॉई को सेलरी देने तक के लिए पैसे नहीं हैं. ये हाल सिर्फ बीएसएनएल का नहीं बल्कि MTNL, ONGC, एयर इंडिया, HAL, पब्लिक सेक्टर बैंक जैसे कई सरकारी संस्थाओं का है. ऐसे में जब 2019 लोकसभा चुनाव में मजबूत चौकीदार और 'विकास' के नाम पर पीएम मोदी वोट मांगेंगे तो जनता जनार्दन तो पूछेगी ही ना जनाब ऐसे कैसे?

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राष्ट्रवाद और युद्ध की चाशनी के सहारे बीजेपी 2019 के चुनाव में मुंह मीठा करना चाहती है लेकिन एयर इंडिया, पब्लिक सेक्टर बैंक, बीएसएनएल जैसे सरकारी संस्थाओं की बदहाली बीजेपी का मन खट्टा जरूर कर देगी. सरकार के कंट्रोल वाले इंस्टिट्यूशन में बढ़ती आर्थिक कमजोरी सरकार की नीतियों और काम के तरीकों पर चोट कर रही है.

बीएसएनएल का दर्द

बात शुरू करते हैं भारतीय संचार निगम लिमिटेड मतलब बीएसएनएल से. फाइनेंशियल ईयर 2008 तक जिस बीएसएनएल के पास 37,163 करोड़ रुपये का नेट कैश था वो अब धीरे-धीरे कर्जे में आ चुकी है. फिलहाल 2018 में ये कर्ज बढ़कर 16,093.4 रुपये हो गया है. यही नहीं बीएसएनएल अपने 1.76 लाख कर्मचारियों को दो महीने की सेलरी वक्त पर देने में नाकाम रही है.

हाल ये है कि बीएसएनएल अपने कर्मचारियों की छंटनी करने, वक्त से पहले जॉब से छुट्टी मतलब वीआरएस देने, रिटायरमेंट की उम्र 60 से 58 साल करने और कर्मचारियों के ट्रैवल और मेडिकल अलाउंस में कटौती करने का प्रस्ताव रख रही है. इसके अलावा हर दिन बीएसएनएल के कस्टमर उसे ‘बाय-बाय’ कहते जा रहे हैं.

अब 13 हजार करोड़ रुपये के बेलआउट पैकेज की बात सामने आ रही है. लेकिन सवाल ये है कि ऐसे हालात पैदा ही क्यों हुए?

MTNL बंद होने के कगार पर

ऐसा ही हाल एमटीएनएल का भी है. एमटीएनएल पर भी करीब 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. हालात ऐसे हैं कि इसे बंद करने पर भी सोचा जा रहा है.

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एयर इंडिया की उड़ान जमीन पर

चुनावी मौसम में नेताओं को उड़न खटोले पर उड़ते हुए तो आपने जरूर देखा होगा. मतलब रैलियों के लिए हवाई यात्रा. लेकिन सरकारी एयरलाइन्स कंपनी एयर इंडिया के घाटे की कहानी भी तो सुन लीजिये.

ऑडिट आंकड़ों के मुताबिक, फाइनेंशियल ईयर 2016- 17 में एयर इंडिया पर कुल मिलाकर 47,145.62 करोड़ रुपये का घाटा था. एयर इंडिया का नेट लॉस 5337 करोड़ है. मतलब हर दिन 15 करोड़ रुपये का घाटा. कर्ज में डूबी एयर इंडिया को बचाने के लिए केंद्र सरकार को उसके हिस्से की जमीन और रियल एस्टेट की बिक्री करने को मजबूर है. साथ ही करीब 40 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के तले दबी है.

पब्लिक सेक्टर बैंक

अब देश के सरकारी बैंकों का हाल भी जानना जरूरी है. आरबीआई के मुताबिक, 30 जून 2014 तक देश के सरकारी बैंकों का ग्रॉस एनपीए मतलब नॉन पफॉर्मिंग एसेट 2,24,542 करोड़ रुपये था. यह एनपीए 31 दिसंबर 2017 तक बढ़कर 7,24, 542 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. 2018 में बैंकों का एनपीए बढ़ कर 10.39 लाख करोड़ रुपये हो गया.

ONGC

एक वक्त था जब देश की सबसे बड़ी एनर्जी कंपनी Oil and Natural Gas Corporation को कैश रिच मतलब सबसे ज्यादा नकदी पैसा रखने वाली कंपनी कहा जाता था. 2014 तक कोई कर्ज नहीं. लेकिन ओएनजीसी के ही बैलेंस शीट की मानें तो 2017- में कंपनी 25,000 करोड़ रुपये के कर्ज में है.

HAL का हाल

सरकारी डिफेंस और एयरोस्पेस कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी HAL इन दिनों आर्थिक संकट से गुजर रही है. कंपनी ने अपने कर्मचारियों की सेलरी देने के लिए 1000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है.

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टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में फंसा पेंच

यही नहीं डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के तहत चलने वाला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च TIFR भी आर्थिक तंगी से गुजर रहा है. TIFR ने ये तक कह दिया कि वो अपने वैज्ञानिकों, स्टाफ, रिसर्च स्कॉलर की फरवरी की सेलरी का 50 परसेंट ही दे सकेगा. लेकिन खबर फैली तो आनन-फानन में कर्मचारियों का बाकी वेतन भी जारी किया गया. डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी की TIFR ही नहीं बल्कि उससे जुड़ी करीब 10 ऑटोनोमस संस्थाएं आर्थिक तंगी से गुजर रही हैं. लेकिन यहां भी वही सवाल ऐसे बुरे दिन आने से पहले सरकार जागी क्यों नहीं?

राष्ट्रवाद का डोज तो सही है. लेकिन इसका मतलब यह भी तो होता है कि सरकारी संपत्ति की चौकस तरीके से चौकादारी हो. सरकारी कंपनियों का हाल बता रहा है कि इनकी चौकीदारी सही तरीके से नहीं हुई है. अब इन सबके बाद अगर राष्ट्रवाद के पर्दे के पीछे छिपने की कोशिश होगी तो फिर वोटर तो पूछेगा जनाब ऐसे कैसे?

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