राजस्थान में एक नया कानून आने वाला है. सीएम वसुंधरा राजे सरकार के इस अध्यादेश के मुताबिक राजस्थान में सेवारत या सेवानिवृत्त दोनों जजों, मजिस्ट्रेट और लोकसेवकों को राज्य सरकार के परमिशन के बगैर ड्यूटी के दौरान कार्रवाई के लिये जांच से संरक्षित करने की मांग की गई है. आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 बीते सात सितंबर को जारी किया गया था. 23 अक्टूबर को इसे राज्य विधानसभा में पेश कर दिया गया.
इस अध्यादेश के तहत राजस्थान में अब जजों, अफसरों, सरकारी कर्मचारियों और बाबुओं के खिलाफ पुलिस या अदालत में शिकायत करना आसान नहीं होगा. ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी होगी. यानी कि सरकारी अफसरों और जजों को सुरक्षा कवच मिलने वाला है.
सुरक्षा कवच जांच से. मीडिया में प्रकाशित होने से. जांच करनी है तो सरकार से परमिशन चाहिए. सरकार तसल्ली कर ले उसके बाद ही कुछ छप सकता है.
मतलब अगर सरकारी अफसर गलती भी करें तो मीडिया खबर नहीं छाप सकता. गलती से पत्रकारों ने गुस्ताखी कर दी तो दो साल की सजा. इसके अलावा एक और बात जो चौंकाती है वो ये कि-
आईपीसी की सेक्शन 228 ए के तहत बलात्कार पीड़ितों को प्राइवेसी राइट मिले हैं कि उनका नाम और उनसे संबंधित कोई भी जानकारी पब्लिक नहीं की जा सकती. 228 बी के तहत अब यही अधिकार लोकसेवकों के पास भी होगा. उनके नाम, पहचान संबंधी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती.
ये जितना विवादित है उतना ही मजाकिया भी. रेप के शिकार लोग पीड़ित हैं उनके सुरक्षा का ख्याल रखा जाना चाहिए. लेकिन वो लोकसेवक जो खुद किसी अपराध या भ्रष्टाचार में लिप्त हो सकते हैं उन्हें भी क्या ये सुरक्षा कवच मिलनी चाहिए?
दूसरी जो बात खटकती है वो ये है कि इस कानून के मुताबिक मीडिया भी 6 महीने तक किसी भी आरोपी के खिलाफ न तो कुछ दिखाएगी और न ही छापेगी, जब तक कि सरकारी एजेंसी उन आरोपों के मामले में जांच की मंजूरी न दे दें. इसका उल्लंघन करने पर दो साल की सजा हो सकती है. यानी कि सरकारी कर्मचारियों के गैर कानूनी कामों को शह मिलेगी साथ ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले उजागर करना असंभव होगा.
..और फ्रीडम आॅफ प्रेस तो बस एक जोक है! यानी खूब मनमानी करो और दुनिया को ठेंगा दिखाओ.
राजस्थान के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया का कहना है कि ईमानदार और साफ छवि वाले अधिकारियों को बचाने के लिए ये बिल लाया जा रहा है.
साफ छवि वालों पर वैसे भी कीचड़ नहीं उछलता तो फिर जो भ्रष्ट हैं उनको सुरक्षा कवच क्यों? और वो भी तबतक जबतक उन्हीं के सहयोगी सर्टिफिकेट ना दे दें!
फिलहाल भारी विरोध के बाद भले ही इस बिल को सिलेक्ट कमिटी के पास भेज दिया गया है. लेकिन पहले इसे विधानसभा में पेश कर वसुंधरा राजे सरकार अपनी मंशा जाहिर कर चुकी है. सरकार ने बता दिया है कि वो माई-बाप है और खबरदार जो किसी ने उंगली उठाई! डेमोक्रेसी की ऐसी की तैसी इसे ही कहते हैं.
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