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अपने जिंदगी का अब एक्के मकसद है, बिधायक बनना, बहुते डिमांड है

विधायक बनने के लिए PPP मॉडल

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

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राजस्थान में जो हो रहा है उससे हमरा संकलप और मजबूत हो गया है. विधायकों की खरीदारी, सॉरी खातिरदारी देखकर हमने फिर से सोच लिया है कि अपने जिंदगी का अब एक्के मकसद है, विधायक बनना. विधायक का भौकाल अलग, बिजनेसमैन लोग की तरह खरीद-फरोख्त, हाईफाई रिजॉर्ट-होटल का सैर अलग. समझे. हमरा चुनाव चिन्ह् होगा चूना. पान में लगाया तो मजा, दुनिया को लगाया तो सजा.. हमने तो अपना हैश टैग भी सोच लिया है #बिधायक_जी_बिकाऊ_हैं या फिर #बिधायक_ऑन_सेल

देखिए आप लोग गलत मत समझिए ये सब हम अपने लिए नहीं देश के लिए कर रहे हैं, देश सेवा में. हम सबसे मिलकर ई देश बनता है, मतलब हम ठीक तो देश ठीक. अगर आपको नौकरी नहीं मिलेगी तो कहेंगे ना कि देश में बेरोजगारी बढ़ गई है, तो बदनामी किसकी? देश की हुई. उसी तरह, अगर हम बिधायक नहीं बनेंगे तो दुनिया क्या कहेगी? इसलिए हमने फैसला किया है कम में रहेंगे लेकिन खुश रहेंगे, इसलिए हमें सांसद नहीं बनना है. बस बिधायक ही रहना है. ता उम्र.

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यहां जानिए विधायक बनने का मैथेमैटिक्स, बिल्कुल फ्री

देखिए सांसद बनने में खर्चा ज्यादा, मुनाफा कम. इंवेस्टमेंट ज्यादा और रिटर्न जो है व डिपेंड ऑन मंत्रालय. इसके अलावा 'MA in entire गुंडई' के कोर्स में डिस्टिंकशन होना चाहिए, या 'MA in भड़काऊ बयान' में जिला टॉपर. फिर टिकट के लिए करोड़ों दो लेकिन फिर भी मंत्रालय मिलने का चांस जीरो. क्योंकि मंत्री पद तो बड़का लोग को मिलेगा.

ऐसे में सबसे बेस्ट है ‘बिधायक बाबू’.. देखो जैसे गर्लफ्रेंड-बॉएफ्रेंड लोग ‘मेरा शोना बाबू’ बोलते हैं वैसे ही बिधायक में बाबू लगा.. ‘बिधायक बाबू’.. सासंद बाबू बोलते हुए किसी को सुना है?

विधायक बनने के लिए PPP मॉडल

एक बात और इसमें PPP मॉडल पर काम होता है. ऊ पब्लिक प्राइवेट पार्टनर्शिप नहीं बल्कि पैसा, पकड़ और मौका देखकर पलटने की कला. सरकार गिरे ना गिरे बस डर बनाए रखना है. बस कहते रहना है गोवा भेजिए नहीं तो सरकार गिरा देंगे. यकीन ना हो तो खद देखिए.

गुजरात में राज्यसभा चुनाव से पहले विधायकों को कभी कर्नाटक तो कभी पिंक सिटी जयपुर की सैर पर भेजा गया, कर्नाटक में जब घुड़ दौर शुरू हुई तो रिजॉर्ट बुक होने शुरू हो गए, राजस्थान वाले खुदई के यहां टूरिज्म का मजा ले लिए, मध्य प्रदेश वाले गोवा चले गए. इतना घूमने का चांस तो ट्रैवेल ब्लॉगर को भी नहीं मिलता होगा.
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साथ ही इसमें सबसे बेस्ट है कि विचारधारा का कोई क्राइटेरिया ही नहीं है. बस 'अचार धारा' की कला होनी चाहिए. ऐसे भी राजनीति में विचार का अचार ही तो लगता है.

'अचार-धारा' क्या है?

एक होती है विचारधारा,एक 'अचार-धारा', जो समय के साथ बदलती है. जैसे-

  • ये मौसम के साथ मजा बदलती है.
  • इसमें खट्टापन हमेशा होता है, पता वक्त आने पर चलता है.
  • इसमें असली अचार की तरह ही ज्यादा हाथ लगाने से फुफंदर लग जाता है.
  • बस तेल सही मात्रा में दीजिएगा तो 'अचार-धारा' टेस्टी होगी, नहीं तो ये भी विचारधारा की तरह मजबूत और ना खराब होने वाली बन जाएगी.

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