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“घर दो या इच्छामृत्यु”: मकान बचाने की गुहार लगाते शाहबेरी निवासी

ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी इलाके में उजड़ते मकान

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कैमरापर्सन: आकांक्षा कुमार

वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

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अलीगढ़ के एक रिटायर्ड टीचर राधे श्याम साल 2018 में अपने बेटे के लिए खरीदे नए फ्लैट में शिफ्ट हुए. 67 साल के इस बुजुर्ग ने रिटायरमेंट फंड की पूरी रकम ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी में फ्लैट लेने के लिए खर्च कर दी.

आठ महीने बाद, उनकी दुनिया उलट गई, जब जुलाई 2019 में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (GNIDA) ने घोषणा की, कि शाहबेरी में 400 से ज्यादा ‘अवैध’ इमारतों को ध्वस्त कर दिया जाएगा.

अब GNIDA की घोषणा से पहले के घटनाक्रम पर एक नजर डालिए.

  • 2008: शाहबेरी में जमीन की बिक्री के लिए GNIDA ने जारी की नोटिफिकेशन.
  • शाहबेरी की जमीन किसानों की थी. किसानों ने GNIDA की ओर से अधिग्रहण को चुनौती दी.
  • 2011: अलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमीन वापस लौटाने का आदेश दिया.
  • सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश का समर्थन किया.
  • 2011-12: महागुन, आम्रपाली, सुपरटेक ने प्रोजेक्ट रद्द किया. किसानों ने छोटे बिल्डरों को जमीन बेचनी शुरू की.
  • 2013: शाहबेरी में शुरू हुआ अनधिकृत कंस्ट्रक्शन, जो 2019 तक बिना जांच के जारी रहा.

हताश राधे श्याम गुप्ता कहते हैं,

“हमें बिल्डर्स ने ये नहीं बताया कि किसानों के खिलाफ कोई केस लड़ा जा रहा है. या जो भी हुआ, उसके संबंध में हमें कोई भी जानकारी नहीं दी. जो भी पैसा था हमने लगा दिया. बच्चे कहां जाएंगे. जिंदगी में जिसने भी एक मकान बना लिया तो सबकुछ बना लिया. हमारे प्रधानमंत्री 2022 तक हर गरीब को मकान देने की बात कर रहे हैं और हमारे साथ हमारे आशियानों को उजाड़ने की बात हो रही है. आत्महत्या करने की तो हमारी मजबूरी होगी. हम बच्चों को लेकर जाएंगे कहां? हम ही आत्महत्या नहीं करेंगे, बल्कि बच्चों को लेकर मरेंगे.” 

इन दिनों राधे श्याम बाकी निवासियों के साथ धरने पर बैठे हैं.

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राधे श्याम के पड़ोस में रहने वाली विजया नेगी भी मकान बचाने की उम्मीद खो चुकी हैं.

“प्राधिकरण वाले कह रहे हैं कि हम इन मकानों को तोड़ देंगे. डर इस चीज का है कि हमने एक-एक पैसा जोड़कर मकान लिया है, तो अब हम कहां जाएंगे?”
विजया नेगी, शाहबेरी निवासी

विजेंदर कुमार, जो रेलवे के रिटायर ड्राइवर हैं, उनकी भी परेशानी एक सी है. GNIDA के फैसले को मानना इनके लिए काफी मुश्किल है.

“न तो सो सकते हैं अच्छे से...ना ठीक से खा सकते हैं. सुसाइड करना पड़ेगा, यही काम करना बाकी रह गया है.”  
विजेंदर कुमार, रिटायर्ड रेलवे ड्राइवर

उन्होंने राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए खत तैयार किया है, जिसमें शाहबेरी के निवासियों की ओर से सामूहिक इच्छामृत्यु की मांग की गई है.

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