वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया
इलस्ट्रेटर- मेहुल त्यागी
प्रोड्यूसर- प्रबुद्ध जैन
एक लड़ाई सी छिड़ी है. चारों तरफ. मैं बनाम तुम की. देशभक्त बनाम देशविरोधी की. इन अहम सवालों को माइथोलॉजिस्ट और बेस्टसेलर लेखक देवदत्त पट्टनायक कैसे देखते हैं. उनका नजरिया कैसे आम सी दिखने वाली चीजों को, वाकयों को खास बना देता है. Soul खोल के इस एपिसोड में चर्चा इन्हीं बड़े सवालों के इर्द-गिर्द है. हमने देवदत्त पट्टनायक से पूछा ये सवाल:
ज्यादातर जगह लड़ाई ‘मैं बनाम तुम’ की है. हम की गुंजाइश नहीं दिखती. देशभक्त-देशविरोधी, सांप्रदायिक-सेक्युलर जैसी बहसों से और बंटवारा हो रहा है. इस सबसे देश-समाज में क्या बदलाव आ रहा है?
देवदत्त बेबाकी से इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हैं.
प्रकृति में मत्स्य न्याय
कुदरती तौर पर माना जाता है कि मत्स्य न्याय मौजूद है. यानी, बड़ा, छोटे को निगल जाता है. देवदत्त के मुताबिक एक कॉन्सेप्ट है- भेड़ और भेड़िए का. इसमें अच्छा कौन, बुरा कौन की बात हो तो पाश्चात्य सभ्यता कहती है कि भेड़ के साथ ईसा मसीह खड़े हैं तो वो अच्छी है और भेड़िए के साथ शैतान खड़ा है तो वो बुरा है.
लेकिन भारतीय परंपरा कहती है कि भेड़ और भेड़िया दोनों ही प्रकृति के हिस्से हैं. दुनिया में दोनों का ही काम है. ज्यादा भेड़-बकरियां हो गईं तो धरती पर घास नहीं बचेगी और भेड़िए ज्यादा हो गए तो भेड़ खत्म हो जाएंगी और कुदरत का नुकसान होगा. तो ये एक संतुलन है जो बना हुआ है.
‘भूख’ के नजरिए से दुनिया देखना
पश्चिम में भले भेड़-भेड़िए को अच्छा बनाम बुरा की बहस में उलझाया जाए लेकिन भारतीय नजरिए में हर चीज भूख से तय होती है. फिर चाहे वो भेड़ और भेड़िए की भूख हो या इंसान की. देवदत्त कहते हैं, “आज के दौर में राजा धर्मयुद्ध में उलझा है, राजधर्म की नहीं सोच रहा, भूख की बात ही नहीं हो रही. वो किसकी भूख मिटाने में लगे हैं-अपनी पार्टी की, खुद की या देश की?”
इसलिए अपने आसपास आंख-कान खोलकर देखिए. भूख के भारतीय नजरिए को अपनाइए. फिर देशभक्त-देशविरोधी, सांप्रदायिक-सेक्युलर जैसी बहसों से ऊपर उठकर आपको अपने बुनियादी सवालों के जवाब शायद मिल सकेंगे.
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