वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया
इलस्ट्रेटर- मेहुल त्यागी
प्रोड्यूसर- प्रबुद्ध जैन
हमारे देश की राजनीति में राजधर्म की जगह धर्मयुद्ध की गूंज क्यों सुनाई देती है? ये वो सवाल है जो करोड़ों आम भारतीयों के जेहन में उठता होगा लेकिन जवाब नहीं मिलता. Soul खोल के इस एपिसोड में माइथोलॉजिस्ट और बेस्टसेलर लेखक देवदत्त पट्टनायक बता रहे हैं इस पूरे खेल के पीछे का खेल.
सवाल ये है कि:
क्या हमारे नेताओं को अपनी गलतियों का ठीकरा किसी और के सिर फोड़ने के लिए हमेशा एक बलि के बकरे की जरूरत होती है? क्या उन्हें असल मुद्दों जैसे मेरी खुशी, मेरी नौकरी, मेरे भविष्य की कोई चिंता नहीं रह गई है?
देवदत्त के महीन जवाब में आपको उन तमाम सवालों के जवाब भी मिल जाते हैं जो इस राजनीतिक माहौल को बेहतर समझने में मदद करते हैं.
दुनिया को बचाना एक नशा है
देवदत्त कहते हैं कि जब आप दुनिया को बचाने की बात करते हैं तो ये आदत एक नशे में तब्दील हो जाती है. जिसकी गिरफ्त में आकर आप सोचने लगते हैं कि मुझे दुनिया को शैतानों से, खलनायकों से बचाना है. आप उनकी तलाश में निकल पड़ते हैं बिना ये सोचे समझे कि हो सकता है खलनायक आपके भीतर हो. लोग आईना देखना नहीं चाहते. क्योंकि हो सकता है ऐसा करने पर खलनायक भीतर ही नजर आ जाए.
राजधर्म नहीं धर्मयुद्ध
इसी तरह राजनीति में नेता राज्य की बजाय गद्दी पर ध्यान देते हैं. वो राजधर्म की बात छोड़कर धर्मयुद्ध की बात ज्यादा करते दिखाई देते हैं. इस रणनीति में उलझकर उनका फोकस जीत पर होता है, शासन चलाने पर नहीं. चुनाव क्यों जीतना है, उसके बाद क्या करना, ऐसे सवाल उन्हें बेमानी लगते हैं.
देवदत्त कहते हैं, बात जनता की करें तो हम अक्सर नहीं सोचते कि नेता का काम क्या है? क्योंकि हम खुद भी ये नहीं सोचते है कि अगर शरीर हमारा राज्य है तो क्या हम उसके भीतर बैठकर ठीक से राज्य कर रहे हैं या सिर्फ बाहर के राजा, बाहर के शैतान में सारी गलतियां ढूंढ़ रहे हैं?
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