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Soul खोल With देवदत्त पट्टनायक: नेता आपको गुलाम तो नहीं बना रहे?

‘राजा हमारे लिए जीता है, हम राजा के लिए नहीं’

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वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया

इलस्ट्रेटर- मेहुल त्यागी

प्रोड्यूसर- प्रबुद्ध जैन

हमारे आसपास नेता, सांसद, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री अक्सर कहते सुनाई देते हैं कि वो जनता के लिए हैं. लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है? या ये सिर्फ उन जुमलों का हिस्सा है जो यूं ही दशकों से चले आ रहे हैं. Soul खोल के इस एपिसोड में पौराणिक कथाओं को नए नजरिए से देखने वाले बेस्टसेलिंग लेखक देवदत्त पट्टनायक बता रहे हैं कि आपकी यानी जनता की इस लोकतंत्र में क्या हैसियत और अहमियत है. हमने देवदत्त से पूछा ये सवाल?

जो नेता और राजा अपनी आलोचना सुनने को तैयार ही नहीं, जो वोट पाने के लिए खुद आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हैं, क्या उन पर यकीन किया जा सकता है जब वो कहते हैं कि तुम मेरे पीछे चलो, मैं तुम्हारी जिंदगी बदल दूंगा.

देवदत्त इस सवाल का अपने जाने-पहचाने अंदाज में बड़ा ही दिलचस्प जवाब देते हैं.

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जिंदगी में हमेशा लेन-देन की बात

हम कम ही इस बात पर ध्यान देते हैं कि अगर कोई हमारी किसी समस्या का समाधान बता रहा है तो वो बदले में क्या चाहता है? देवदत्त कहते हैं कि जिंदगी, लेन-देन का नाम है. हमें ये देखना और समझना होगा कि मसीहा की तरह हमारी सारी परेशानियों को दूर करने का दावा करने वाला बदले में क्या चाह रहा है. क्या वो हमारी वफादारी, हमारा वोट चाहता है? क्या वो सिर्फ तब तक साथ है जब तक हम उसकी तारीफ, उसके गुणगान कर रहे हैं. देवदत्त का साफ इशारा नेताओं की ओर है. जो अक्सर जनता की सभी दिक्कतों का ‘जादुई चिराग’ वाला हल होने का दावा करते हैं और बदले में उनसे वोट और वफादारी चाहते हैं. कहीं इस सारे चक्कर में वो आपको अपना गुलाम बनाना तो नहीं चाहते?

कवि और विदूषक की परंपरा कहां गई?

माइथोलॉजिस्ट देवदत्त बताते हैं कि पुराने जमाने में राजदरबारों में कवि और विदूषक की परंपरा थी. कवि राजा का गुणगान करता था और विदूषक, मजाकिया लहजे में राजा की कमियों की ओर इशारा करता था. लेकिन नए दौर के ‘राजा’ विदूषक को मारने में यकीन रखते हैं ताकि वो सिर्फ और सिर्फ कवियों की तारीफें सुन सकें.

ये भी देखें- Soul खोल with देवदत्त पट्टनायक: नेता को चापलूसी पसंद या आलोचना?

दिक्कत ये है कि ऐसा करने से राजा, हकीकत से कोसों दूर हो जाता है. देश-समाज में चल क्या रहा है, जनता क्या चाहती है, इन सवालों का उसे कोई इल्म नहीं रह पाता.
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दुनिया को बचाने वालों का ‘मायाजाल’

Soul-खोल का मतलब है इस मिथ्या को समझना कि कुछ राजा, कुछ एक्टिविस्ट कैसे दुनिया को बचाने के नाम पर खेल रहे हैं. मायाजाल से विद्या तक का सफर तय करना होगा. राजा हमारे लिए जीता है, हम राजा के लिए नहीं. राजा खुद को सेवक बताते हैं, लेकिन वैसे व्यवहार नहीं करते. वो सिर्फ हमसे वोट से पहले नमस्ते करते हैं. हमें अपना नेता खुद बनना होगा. खुद के भीतर के राजा को जगाना होगा. बाहर का राजा नहीं, अंदर का राजा दुनिया बदलता है.

ये भी देखें- Soul खोल with देवदत्त पट्टनायक:ये किस ‘युद्ध’ में उलझ गए हैं नेता

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