वीडियो प्रोड्यूसर: अनुभव मिश्रा
वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
2014 में, गुजरात ने आम चुनाव के दौरान अपने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को खूब वोट दिया. पार्टी ने सभी 26 लोकसभा सीटों पर अपना कब्जा जमाया. 2018 में, मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन गुजरातियों खासकर दक्षिण गुजरात में वो पीएम से ज्यादा खुश नजर नहीं आ रहे हैं.
दक्षिण गुजरात में ना सिर्फ खेती के लिए उपजाऊ जमीनें हैं, बल्कि ये देश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में से एक है. फिलहाल दक्षिण गुजरात में राष्ट्रीय महत्व के तीन प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट चल रहे हैं. किसानों को चिंता है कि इससे उनके हाथ से उपजाऊ जमीनें निकल जाएंगी और उनकी आय को भी नुकसान पहुंचेगा.
ये प्रोजेक्ट हैं- अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट, मुंबई-अहमदाबाद एक्सप्रेस, वेफ्रीट कॉरिडोर
क्विंट का चौपाल यहां पहुंचा है. क्विंट ने किसानों से बातचीत की और जानने की कोशिश की कि इन सारे प्रोजेक्ट्स से उन्हें फायदा अधिक है या नुकसान ज्यादा?
रोड बनती है, रास्ता बनता है, रेलवे को सुविधा होती है. हम उसके खिलाफ नहीं है, लेकिन सवाल ये उठता है कि हमारे पूर्वजों की जमीन हमेशा के लिए चली जाती है. जो हमें जमीन का भाव मिल रहा है, उसमें बहुत बड़ा विवाद है. मान लीजिए, एक गांव की जमीन का भाव सरकार ने ही कलेक्टर के सिग्नेचर से रखा है करीब 2,000/स्कैवयर मीटर और इसके बगल में किसान की जमीन आती है जिसकी कीमत है 250/स्कैवयर मीटर तो हमारा सवाल ये है कि एक ही गांव में 2 रेट कैसे हो सकते हैं?निपुल पटेल, अंकलेश्वर
एक और किसान इस बारे में विस्तार से बताते हैं-
एक प्रावधान है कि अगर 2018 में आपको मुआवजा देना है तो आपको 2016, 2017, 2018 की बाजार कीमत को ध्यान में रखकर मुआवजा देना होता है. सरकार ने ये प्रक्रिया नहीं की. सरकार हमें जो मुआवजा दे रही है वो 2010, 2011, 2012 के रेट के मुताबिक, 2018 में दे रही है.
इस बार आपका वोट किसकी तरफ रहेगा? विकास की तरफ रहेगा, बीजेपी की तरफ रहेगा? इस पर किसान कहते हैं कि या तो किसान, किसानों में से ही एक उम्मीदवार खड़ा करेंगे या NOTA का इस्तेमाल करेंगे.
हम लोग ये सोच रहे हैं कि हम किसानों में से ही एक उम्मीदवार खड़ा करेंगे और उसी का समर्थन करेंगे, जो हमारी बात सुने. गुजरात में बीजेपी का शासन है. बीजेपी ने हमारी बातों पर ध्यान नहीं दिया है. विपक्ष में कांग्रेस है, वो भी कुछ खास कर नहीं रही है इसलिए ज्यादातर लोग NOTA चुनेंगे. मगर अब मंदिर-मस्जिद की बात नहीं चलने वाली है. कौमी नफरत की बात नहीं चलने वाली है.जगदीश पटेल, अंकलेश्वर
चौपाल में शामिल अन्य किसान भी ऐसी ही राय रखते हैं.
अगर बीजेपी को 2014 के चुनाव का प्रदर्शन दोहराना है तो उसे किसानों की जमीन अधिग्रहण से जुड़ी समस्याओं को सही तरीके से समझना होगा.
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